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राजमोहन की स्त्री (बंकिम चंद्र)

नाटक - कितना-सा द्वंद्व :: Pressnote.in

चेहरा देखकर भविष्य जानो

राजस्थानी कवितावां

वाणी प्रकाशन: 'मैं एक हरफ़नमौला'

साझा मंच: वीर शिरोमणी महाराजा दाहिर

गर्जना होती मचता द्वन्द्व

‘‘गुलामी की जंज़ीर’’ से निकले….

ईद है मेरी रहमत है तेरी खुश है जमाना आज ईद है मेरी

बादळ सागै उड़'र बिजली सागै नाचणो / बादल संग उड़कर दामिनी संग नृत्य करना

खामोशी गाती : कविता खामोशी गाती हर रोज रूप बदल कर आता कोलाहल कहता कुछ नहीँ खुद किसी से पर हर किसी से बस अपने बारे मेँ कहलाता ... ध्वनि से श्रव्य और दृश्य से अनुभूत काव्य श्रृँगार का प्रादुर्भाव निश्चय ही किसी काल मेँ 21 मार्च को ही हुआ होगा यह दिवस प्रकृति का प्रिय जो है हरी चुनरी से सजी इठलाती धरा पर नवपल्लव, अधखिली कलियाँ, कुलाँचे भरते मृग-शावक, मँडराते भँवरे, पहाड़ोँ पर बर्फ का पिघलना और धूप की बजाय छाँव मेँ सुस्ताते वन्यजीवोँ के गुँजन से जो अनुभूति हुई उसे आदि कवि खामोशी का गीत = "कविता" की सँज्ञा न देता तो "अहसास" प्राण विहीन हो पाषाण युग से आगे का यात्री नहीँ बन पाता सँवेदनाएँ पाषाण रह जाती प्रकृति कविता न गाती तो मानवता कैसे मुस्काती !

कुछ बहुत कुछ ... बहुत कुछ न कुछ !

बेड़ियां टूटी या प्रतीक बनाए कृष्ण तेरी लीला में रहस्य समाए

खामोशी गाती... कविता

फिर से बचपन पा जाना...

क्रिकेट डे --- मैच रोमांचक क्षणों में था...

राग दरबारी गूंजता रहा है... गूंजता रहेगा

करतार सिंह / सिन्ध ही नहीं पूरे हिन्दुस्तान के बाल-गोपालों के बचपन के दिन अभी खत्म भी नहीं हुए थे कि उन पर जिन्दगी की जिम्मेवारियों का पहाड़ लाद दिया गया

नींद में जागा-जागा- सा...