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राग दरबारी गूंजता रहा है... गूंजता रहेगा


राग दरबारी गूंजता रहा है... गूंजता रहेगा

 इस गूंज में सुनाई देते स्वरों को श्रोताओं पाठकों तक पहुंचाने का जिम्मा संजय का है। 

( काला सूरज उपन्यास से )

जिसे कपिल अपने विरुद्ध राजनीति समझ रहा था, वह तो अखबार के काम में उसके प्रति संपादकजी का विश्वास निकला। कपिल ने सोचा - संपादकजी ने प्रयोग भी करना चाहा तो मुझ पर। प्रश्न भी पूछ लिया तो क्लू साथ दे दिया। अब वह मुस्कुरा रहा था। संपादकजी ने उसकी मुस्कुराहट के उत्तर में अपने होंठों को फैलाया।
बेआवाज हंसी ने उन दोनों को प्रफुल्लित कर दिया। कपिल के अपनी कुर्सी से उठने की क्रिया को नजरअंदाज करते उन्होंने कहा - बच्चू तुम्हें पढ़ा हुआ याद होगा कि  संविधान सभा में भाषण देते हुए डॉ आम्बेडकर ने कहा था कि राजनीति के क्षेत्र में समानता को अपनाने के बावजूद अगर सामाजिक-आर्थिक संरचना में भी समानता को सुनिश्चित नहीं किया जा सका तो हम विरोधाभासी जीवन जीने की बाध्यता में फंसे रहेंगे। राजनीतिक जनतंत्र तब तक टिकाऊ नहीं हो सकता जब तक उसकी आधारशिला के रूप में सामाजिक जनतंत्र न हो। आम्बेडकर सामाजिक जनतंत्र को
स्वाधीनता, समानता और भ्रातष्त्व को जीवन-सिद्धांत के रूप में मान्यता देने वाला मानते थे।
संपादकजी आज मूड में थे और कपिल को अपनी प्रसन्नता में शामिल करने के लिए उसे अपने विचारों से अवगत करा रहे थे। बोले - चाहे हम किसी भी क्षेत्र में काम करने वाले हों, कुछ सिद्धांत अपने होते हैं तो कुछ सिद्धांत उस संस्थान के भी होते हैं जिनमें हम काम करते हैं। देश के प्रति भी हमारा कर्तव्य होता है। समाज के प्रति हमारी जिम्मेवारियां होती हैं। तुम और मैं पत्रकार हैं। हमारे लिए समय की महत्ता सर्वाेपरि है। आज और अभी के समाचार के फर्क को हम बेहतर समझते हैं। हमें ही नहीं सभी को मालूम है कि समाज को कृष्ण की जरूरत सदा रही है।
कपिल की प्रसन्नता काफूर हो गई। अच्छी-भली बातचीत में ये कृष्ण महाराज फिर कहां से आ गए भाई। लेकिन वह संपादकजी को क्या कह सकता था।
वे अपनी धुन में ही बोले जा रहे थे - सिद्धांतों को अपनाते हुए समय की चाल पर भी थिरकना पड़ता है। गीता का मर्म जानने वाले यह भी जानते हैं कि हर युग को श्रीकृष्ण की जरूरत रही है। आंखों देखा हाल बताने वाले संजय की महत्ता कभी खत्म नहीं होगी। टीवी चैनल हो या रेडियो-ट्रांजिस्टर या समाचार पत्र। इनमें यथार्थ देखने वाले पाठक भले ही श्रीकृष्ण की कंठ-ध्वनि नहीं सुन पाते हों लेकिन आकाशवाणी और अक्षरवाणी जरूर सुनते, देखते और पढ़ते हैं। संजय पत्रकारों और दूसरे लोगों के लिए भले ही महत्त्व नहीं रखता हो लेकिन श्रीकृष्ण को संजय उतना ही प्रिय रहेगा जितना कि किसी को भी अपना हाथ-पैर और आंख या दिल-दिमाग। क्योंकि श्रीकृष्ण को मालूम है कि संजय ही ने किसी एक के माध्यम से सम्पूर्ण जगत को महाभारत का आंखों देखा हाल बताकर जनता-जनार्दन को युगों-युगों के लिए ‘कौरवों’ की चालों से वाकिफ कराया। कर्मयोग की महत्ता तभी तो होगी जब कोई उसे समझेगा। जानेगा। जीवन में उतारेगा। गीता के ज्ञान को अर्जुन तक सीमित नहीं रहने दिया जाएगा तभी तो समाज में अनेक अर्जुन सामने आएंगे। बच्चू,  भूतकाल कैसा भी बीता हो भविष्य को सुनहरा बनाने की चिंता सभी को होनी लाजिमी है।
वर्तमान में काम करते हुए फल की इच्छा त्यागने का संदेश देने वाले श्रीकृष्ण के विचारोें से लोगों को अवगत कराने के लिए भी किसी की जरूरत सदैव रहेगी। वह चाहे संजय हो, साहित्यकार, प्रवचनकर्ता, महंत, शिक्षाविद् या कि किसी मीडिया ग्रुप से जुड़ा पत्रकार हो। जनता को बताने वाला भी चाहिए कि वर्तमान को कृष्ण चाहिए। अर्जुन सदैव कृष्ण के साथ रहा है। वर्तमान में भी है। महाभारत भले ही दुबारा नहीं हो लेकिन कौरव और पांडव अपने-अपने राज्य की यानी कि सत्ता की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहे हैं तथा रहेंगे। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता। परिप्रेक्ष्य बदलते हैं। दृश्य बदलते हैं। पात्र बदलते हैं। कहानी वही रहती है। राजा-रानी की जगह राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री हो गए। रियाया वही है। मंत्री-संतरी वैसे ही हैं। राज की योजनाएं वैसी ही जनउपयोगी हैं। उनकी क्रियान्विती वैसी ही है। जैसी राजा-महाराजाओं ने सीमित संसाधनों से कराई। तब भी बिचौलिए थे। अब भी भ्रष्टाचारी हैं। बीरबल भी हैं और अकबर भी हैं। बीरबल से जलने वाले दरबारी भी हैं।
राग दरबारी सदैव गूंजता रहा है। गूंजता रहेगा। इस गूंज में सुनाई देते स्वरों को श्रोताओं, पाठकों तक पहुंचाने का जिम्मा संजय का है। मीडिया का है। महाभारत का संजय स्वयं प्रसिद्धि पा सका या नहीं, इसका उदाहरण है उसका नाम। सही हाल बताने पर उसे ऐसी प्रसिद्धि मिली की वह आज भी श्रीकृष्ण की लीला के साथ स्मरण में रहता है। संजय ने यह परवाह नहीं कि महाभारत कैसे रुक सकता है या महाभारत होगा या नहीं, होगा तो परिणाम क्या रहेगा, कौन जीतेगा-कौन हारेगा। उसने जो देखा, महसूस किया, उसे बता दिया। छुपाया नहीं। उसने अपना काम किया। बस। 


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