गर्जना होती मचता द्वन्द्व


चारों ओर रेत ही रेत

कभी छाते बादल

बरसते और...
थमती रेत

बिजली चमकती
मसले बनते

गर्जना होती
द्वन्द्व मचता

बिखरे स्वप्न इकट्ठा होते

गांठ बंधती

कारीगर रोंधते जमीन

खोदते विगत

नींव हिलती

इमारत ढहती

चलती आंधी

रह जाती

चारों ओर रेत ही रेत


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