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बीकानेर : छह बैंकों में 17 लोगों के नाम से 38 फर्जी खाते खुलवाकर करोड़पति बन बैठे युवक की रिपोर्ट तैयार

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बीकानेर : छह बैंकों में 17 लोगों के नाम से 38 फर्जी खाते खुलवाकर करोड़पति बन बैठे युवक की रिपोर्ट तैयार

बीकानेर। शहर के एक युवक ने 6 बैकों में 38 फर्जी खाते खोलकर करोड़ो रुपये का काला कारोबार किया। जानकारी के अनुसार शहर की बैक ऑफ बडौदा बैंक में फर्जी खाते खोलकर काला धन जमा कर नामी कंपनियों में डीमेट अकाउंट के द्वारा करोड़ों रुपये का काला कारोबार उजागर हुआ है। सीआईडी सीबी ने इसे अपनी जांच में मनी लॉन्ड्रिंग मानते हुए 8100 पेज की जांच रिपोर्ट पुलिस मुख्यालय भेजी है। मामले की जांच अब एसओजी को सौंप दी गई है।
कोटगेट पुलिस थाने में वर्ष 2018 में बैंकों में फर्जी अकाउंट खोलकर करीब दो करोड़ रुपए का लेनदेन करने के तीन मुकदमे दर्ज हुए थे। मामले की जांच सीआईडी सीबी को सौंपी गई। जांच सवा साल चली। इस के दौरान सीआईडी सीबी ने एफ आईआर नंबर 55 में 3800, 33 में 2800 और 49 में 2500 यानी कुल 8100 पेज की सबसे बड़ी इनवेस्टिगेशन रिपोर्ट तैयार की। जांच से पता चला है कि मेहता इक्विटीज प्रा.लि. के सब ब्रोकर ने अपने मुनीम और अन्य साथियों के साथ मिलकर छह बैंकों में 17 लोगों के नाम से 38 फर्जी खाते खुलवाकर काला धन जमा किया। उसके बाद अपने ही जानकारों के खातों में पैसा ट्रांसफर करके 9 नामी शेयर/कोमोडिटी कंपनियों में 35 डीमेट/ ट्रेडिंग अकाउंट खोलकर 2009 से 2014 के बीच आठ से दस करोड़ का कारोबार किया था।
बाद में सभी अकाउंट बंद कर दिए गए। इनमें केवल चार लोग ऐसे थे, जिनके दस्तावेजों में कांटछांट कर फर्जी अकाउंट खोले गए थे। इसके अलावा बाकी 14 अकाउंट काल्पनिक नाम से थे, जो कंप्यूटर पर फर्जी तरीके से राशन कार्ड तैयार कर खुलवाए थे। सीआईडी सीबी के एएसपी प्यारेलाल शिवरान ने जांच के बाद शेयर कंपनी के सब ब्रोकर मनीष छाजेड़ के विरु द्ध धोखाधड़ी के साथ ही मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध साबित माना है।
उसके मुनीम राजेंद्र ओझा के खाते में भी करोड़ों का लेनदेन सामने आया है। बड़ौदा बैंक की स्टेशन रोड शाखा के तत्कालीन मैनेजर विनोद कुमार, आईसीआईसीआई बैंक के कर्मचारी राजेश भाटी तथा इंडसइंड बैंक के कर्मचारी प्रफुल्ल कुमार झा को जालसाजी का दोषी माना गया है।
2009 में फर्जी दस्तावेज पेश कर बैंक ऑफ बड़ौदा और आईसीआईसीआई में फर्जी अकाउंट खुलवा दिए। दरअसल इस कहानी की शुरुआत 2006-2007 में हुई थी। इन चारों ने शेयर का कारोबार करने के लिए कौशल शेयर ब्रोकिंग प्रालि में डीमेट अकाउंट खुलवाए थे, लेकिन ज्यादा समय तक लेनदेन नहीं किया। इसलिए उनके राशन कार्ड और पास बुक की कॉपी सब ब्रोकर के पास थी।
जिनकी मदद से उसने फर्जी तरीके से पेन कार्ड बनवाए। कंपनी का नाम बदलकर बाद में मेहता इक्विटीज कर दिया गया। सीआईडी सीबी ने गहराई से मामले की जांच की तो इस बात का पता चला। सीआईडी सीबी ने बैंक खातों की डिटेल निकलवाई। जमा पर्ची और चेक देखे। सेल्फ चेक पर काउंटर साइन राजेन्द्र ओझा, छगनलाल और आरिफ के थे।
तीनों मनीष के बैंक संबंधी काम करते थे। इनमें से राजेंद्र को आरोपी बनाया गया। क्योंकि ज्यादातर काउंटर साइन उसी के थे। उसके खुद के खाते से भी करोड़ों का लेनदेन मिला। इतना ही नहीं काला कारोबार करने के लिए मनीष ने 13 काल्पनिक व्यक्तियों के नाम से फर्जी राशन कार्ड कंप्यूटर से तैयार कर डमी पेन कार्ड बनवाकर बैंकों में खाते खुलवाए थे।
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