विहंगम दृष्टिपात् : चुनाव बाद गठजोड़ से बाहर के दलको ई गुल खिलाएं तो आश्चर्य नहीं

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विहंगम दृष्टिपात् : चुनाव बाद गठजोड़ से बाहर के दलको ई गुल खिलाएं तो आश्चर्य नहीं

आम चुनाव का परिदृश्य काफी कुछ साफ हो गया है। हाल तक लग रहा था
कि देश की तमाम राजनीतिक ताकतों की गोलबंदी सत्ता या विपक्ष के इर्द-गिर्द
ही होगी और इस तरह दो बड़े गठबंधनों के बीच निर्णायक मुकाबला होगा, पर
ऐसा नहीं हुआ। सत्ता और विपक्ष से अलग कोई तीसरा-चौथा मोर्चा भी इस
बार नहीं है। कई राज्यों में बहुकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा। गठबंधन
की राजनीति के दौर में संभवत: पहली बार ही कई अहम पार्टियां अकेले मैदान
में हैं। विपक्षी दलों की एकजुटता के सबसे बड़े पैरोकार के रूप में उभरे
तेलंगाना के मु यमंत्री और टीआरएस नेता के. चंद्रशेखर राव तथा पश्चिम
बंगाल की मु यमंत्री ममता बनर्जी किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं। एक
समय लगा था कि ये लोग कोई न कोई मोर्चा बनाकर रहेंगे। राव ने कहा था
कि वह विपक्षी एकता के अपने अभियान में ओडिशा के सीएम नवीन
पटनायक का सहयोग लेंगे, पर पटनायक भी किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं
हैं। इन तीनों में आज की तारीख में कोई अंडरस्टैंडिंग है, यह कहना भी मुश्किल
है। अपने करियर में हमेशा एलायंस पॉलिटि स की धुरी समझे जाने वाले और
आज भी विपक्ष का झंडा बुलंद किए आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू
नायडू भी किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं। दिल्ली में आम आदमी पार्टी को
भी शायद अकेले ही चुनाव लडऩा पड़े। सबसे विचित्र स्थिति समाजवादी
पार्टी के नेता अखिलेश यादव और बीएसपी सुप्रीमो मायावती की है। इन्होंने
यूपी के लिए गठबंधन जरूर कर रखा है पर कांग्रेस और यूपीए से इनका कोई
लेना-देना नहीं है। टीएमसी या टीआरएस से इनका कोई संवाद है या नहीं, यह
कहना भी कठिन है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि इनका नैशनल अजेंडा क्या है।
ये बीजेपी के विरोध में हैं लेकिन केंद्र में किसकी सरकार बनाना चाहते हैं, यह
साफ नहीं है। कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर में नैशनल कॉन्फ्रेंस, कर्नाटक में
जेडीएस, तमिलनाडु में डीएमके, महाराष्ट्र में एनसीपी, झारखंड में जेएमएम और
जेवीएम तथा बिहार में आरजेडी और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन
किया है। दूसरी ओर बीजेपी ने अपने तमाम पुराने सहयोगियों के साथ यूपी,
महाराष्ट्र, पंजाब और बिहार में गठबंधन किया है। तमिलनाडु में एआईएडीएमके
के रूप में उसे नया साथी मिला है लेकिन पूर्वोत्तर में बना नेडा (नॉर्थ ईस्ट
डेमोक्रैटिक अलायंस) बिखर गया है। असम में एजीपी और बीपीएफ उसके
साथ जरूर हैं लेकिन मेघालय में एनपीपी, त्रिपुरा में आईपीएफटी, मिजोरम में
एमएनएफ और सिक्किम में एसकेएम ने सीटों के तालमेल से इनकार कर दिया
है। वामपंथी पार्टियां एक बार फिर अलग दिख रही हैं। बिहार में वे महागठबंधन
के साथ दिख रही थीं लेकिन जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को
अलायंस का समर्थन न मिलने से रिश्तों में खटास आ गई है। कौन गठजोड़
किस पर भारी है यह तो समय बताएगा, पर चुनाव बाद इनसे बाहर के दल
कोई गुल खिलाएं तो आश्चर्य नहीं!
-✍️
( साभार - संपादकीय, दैनिक युगपक्ष बीकानेर )


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