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8 दिसंबर 2025 सोमवार
खबरों में बीकानेर
✒️@Mohan Thanvi
नेता 'बेचारे' क्या करें, मुंह खोले बिन चले न काम...
जितने मुंह उतनी बातें
(मातृभूमि के साथ-साथ आस्था और विश्वास से जुड़ा वंदे मातरम का मुद्दा)
नेता 'बेचारे' क्या करें, मुंह खोले बिन चले न काम...
जितने मुंह उतनी बातें
युगपक्ष बीकानेर एवं कंचन केसरी जयपुर परिवार का धन्यवाद
(मातृभूमि के साथ-साथ आस्था और विश्वास से जुड़ा वंदे मातरम का मुद्दा)
कहावतों के आइने 3
- मोहन थानवी
बातें हैं बातों का क्या । क्षेत्र कोई भी हो बात सभी जगह लागू होती दिखती है - जितने मुंह उतनी बातें। बात सामाज हित की हो । व्यक्ति हित की हो । परिवार हित की हो या राष्ट्रहित की हो। एक बात के पीछे-पीछे कई बातें सुनाई देने लगती हैं। इसमें कोई बदलाव की गुंजाइश छोड़ी ही नही जाती । लेकिन सच में कुछ मसले ऐसे हैं जिन पर बदलाव के बारे में कतिपय नेताओं का प्रयास अपवाद स्थापित करने में सफलता के झंडे गाड़ देने का प्रतीत होता है। जैसे कि मातृभूमि के साथ-साथ आस्था और विश्वास से जुड़ा वंदे मातरम का मुद्दा । इस पर माननीयों के वक्तव्य दोनों बड़े सदनों में हम इन दिनों सुनेंगे। जबकि बीते दिनों में इस विषय पर टीवी चैनलों पर नेताओं के श्रीमुख से भांति-भांति के मत हमने सुने। उधर, पश्चिमी बंगाल में चुनावी पृष्ठभूमि में पुष्ठ होता एक अवांछित मुद्दा जितने मुंह उतनी बातों की गूंज में गर्माता नजर आ रहा है। कह सकते हैं कि "तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग।
सबसे हँस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग॥" का मंत्र हम लोग भूल रहे हैं। इससे इतर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुताबिक वर्ष 2025 बदलावों का वर्ष रहा है । इस वर्ष कुछ प्रमुख बदलाव हुए हैं, जैसे की जीएसटी और आयकर सीमा का बढ़ना। हम सभी जानते हैं कि इन दोनों प्रमुख बदलावों को लेकर जितने मुंह उतनी बातें चर्चा में रही है। इससे हटकर, विश्व-राजनीतिक जगत में भी इन दिनों रूस के राष्ट्रपति के भारत-दौरे को लेकर जोरों की चर्चा है। इस दौरे के विभिन्न पहलुओं को लेकर जितने मुंह उतनी बातें देश-विदेश तक
सुनाई दे रही हैं। इसके अलावा मतदाता सूची के शुद्धिकरण को लेकर एस आई आर संबंधित गतिविधियां और इसी विषय को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों के विभिन्न नेताओं की बातें भी चर्चा में हैं। इस विषय को लेकर तो जितने मुंह उतनी बातें करने वाले नेताओं में से कुछ तो व्यवस्था पर ही सवालों की बौछार लगाने के प्रयासों में दिखाई देते हैं। ऐसे तथाकथित नेता खेजड़ी, सौर ऊर्जा, सड़क-सफाई, पानी निकासी आदि सदाबहार मसलों पर मुंह में दही जमाकर बैठे दिखते हैं। राजनीतिक जगत में पार्टी एकता के सूत्र में बंधी होती है। पार्टी अपनी विचारधारा के मुताबिक कार्य करती है । पार्टी लाइन पर चलते हुए पार्टी से जुड़े नेता भी अपनी पार्टी की विचारधारा की मुताबिक अपनी राय प्रकट करते हैं । सुझाव देते हैं । योजनाएं प्रस्तावित करते हैं। लेकिन यदि ऐसी पार्टियों का समूह ही एकता के सूत्र में बंधा ना हो तो आलाकमान और अन्य नेताओं के विचार भी अलग-अलग मायनों के व्यक्त होने लगते हैं। बिहार चुनाव से पहले और जीत हार के नतीजे आने के बाद ऐसी बातें मुखर होकर गूंजने भी लगी हैं। इस राजनीतिक जगत में यदि एकता का सूत्र ही मजबूत ना हो तब हालात कुछ ऐसे हो जाते हैं जैसे अपनी ढफली अपना राग प्रतियोगिता में जीत हासिल करना ही इन नेताओं का लक्ष्य है। इन दिनों टीवी चैनलों की बहसों और सोशल मीडिया पर सक्रिय कुछ पार्टियों के नेताओं के मुखारविंद से होने वाली अनर्गल शब्द-बौछार से लगता है ऐसे बेचारे नेताओं का काम मुंह खोले बिना चलता ही नहीं है। जनता को ऐसे हंगामें नहीं चाहिएं। जनता को तो बदलाव की जरूरत है, और बदलाव सभी नेता मिलकर शीघ्र ला सकते हैं।
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