-मेलों-मगरियों के महीने में बीकानेर जैसा आनंद और कहां!
मेला विशेष
*मेलों-मगरियों के महीने में बीकानेर जैसा आनंद और कहां!*
सावन मास में बीकानेर के शिवालयों में बम-बम जपने के बाद अब मेरे शहर के जातरु रुख कर रहे हैं मेलों का। भाद्रपद का महीना, जिसे हम सभी भादवे के नाम से भी जानते हैं, यह महीना मेले मगरियों का महीना है।
इस जिले भर में कई मेले भरते हैं। इनमें मुख्य रूप से पीरों के पीर नाम से जन-जन के आराध्य बाबा रामदेव, पूनरासर हनुमान, कोडमदेसर भैरव, सियाणा भैरव, सीसा भैरव और आशापुरा माता मंदिर में भरने वाले मेले प्रमुख हैं। उत्सवधर्मी बीकानेर शहर वासियों के लिए यह मेले किसी त्योहार से कम नहीं होते।
इन मेलों के प्रति श्रद्धालुओं में आस्था का सैलाब होता है, तो मौज मस्ती भी देखने को मिलती है। शहर से मिलों दूर स्थित अपने इष्टदेव के मंदिर तक लोग पैदल यात्रा करते हैं। कई भक्त दंडवत करते हुए मंदिरों की चौखट तक पहुंचते हैं और अपना माथा टेकते हैं। दंडवत करते श्रद्धालुओं के लिए इसमें कोई मुश्किल नहीं होती। लगातार आगे बढ़ने का जुनून इनकी ही इनकी सच्ची श्रद्धा होती है। अपने इष्टदेव की ध्वजा को आकाश की ओर लहराते हुए जयकारा लगाते हुए आगे बढ़ते हैं तो मानो सड़कों पर श्रद्धा, भक्ति और भावनाओं का सैलाब हिलोरे खाता है।
यह दृश्य बड़ा ही मनभावन होता है। इन मेलों को देखने देश भर से लोग सपरिवार आते हैं। रास्ते मे श्रद्धालुओ के लिए खाने-पीने तथा रहने की बेहतरीन व्यवस्थाएं सेवादारों द्वारा की जाती हैं। कदम-कदम पर सेवा के पांडाल दिखते हैं और इनमें डीजे की धुन पर चल रहे भक्ति गीत, जातरुओं की थकावट को पलक झपकते फुर कर देते हैं।
खाने पीने, पहनने, बिछाने से लेकर मेडिकल, नहाने तक की सेवाएं मार्ग में सेवादार देते हैं, जिससे जातरूओं को बेवजह बाधाओं का सामना नहीं करना पड़े। इस दौरान सेवा के भाव भी देखने लायक होते हैं। सेवादार, यात्रियों को भाव से बिठाकर उनकी सेवा करते हैं। यहां नर सेवा, नारायण सेवा की उक्ति सार्थक होती दिखती है। ऐसे उत्सवी माहौल में अपने श्रद्धालु अपने आराध्य देव के मंदिर तक पहुंचते हैं। इन मंदिरों के आगे लगी भक्तों की लंबी कतारें भी किसी उत्सव से कम नहीं होती।
यहां हजारों लोग एक साथ अपने इष्ट का जयकारा लगाकर नई ऊर्जा संचरित कर देते हैं। इन कतारों में ध्वजाबंदधारी ने खम्मा', अटल छत्र की जय और भैरू मतवालो जैसे जयकारे सुनने को मिलते हैं। यह जयकारे पंक्तिबद्ध होने की थकान को खत्म कर देते हैं और अपने आराध्य के दर्शन कर मानो जातरू का रोम रोम प्रफुल्लित हो उठता है और उसे बीकानेरी होने पर अभिमान होता है। और मेले की समाप्ति के बाद पूरे साल फिर से इसका इंतजार रहता है।
वास्तव में, बीकानेर और बीकानेरीयत का कोई विकल्प नहीं है।
-लोकेश चूरा
संस्कृतिकर्मी
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