-जेब काबू करें, बाजार बुलाएगा - हम खर्चेंगे, आ रहा खर्चीला "अक्टूबर"
जेब काबू करें, बाजार बुलाएगा - हम खर्चेंगे, आ रहा खर्चीला "अक्टूबर"
- मोहन थानवी
इस वर्ष अक्टूबर महीना खर्च का महीना कहा जाएगा। क्योंकि नवंबर के प्रथम सप्ताह तक पांच दिवसीय दीपोत्सव की धूम तो रहेगी ही बल्कि उससे पहले अक्टूबर के पूरे महीने में हम सभी लोग खुशियों भरे त्यौहार मनाते रहेंगे । और यह सर्वे विदित है कि त्योहार बिना खर्च किए मनाना लगभग नामुमकिन है। ऐसे में निम्न व मध्यम आय वर्ग को अपनी जेब संभाल कर रखना लाजिमी है।
इसके पीछे कारण यह भी है की बाजार आपको पैसा खर्च करने के लिए अपनी ओर बुलाएगा। आकर्षित करेगा। लुभावने ऑफर सामने आएंगे। जो सामर्थ्यवान होंगे वह तो कुछ अधिक सोच विचार किए बिना भी यदि जेब ढीली कर देते हैं तो उन्हें अधिक फर्क नहीं पड़ता। लेकिन निम्न आय वर्ग और मध्यम आय वर्ग के हम लोग जहां पाई पाई संभाल कर खर्च करते हैं वहां इस त्यौहारी सीजन के अक्टूबर महीने में आकर्षित करने वाली चीजों को बिना सोचे समझे खर्च करने से बचने की लाख कोशिश भी करें तो कम नहीं होगा।
ऐसी सावधानी रखने के पीछे वैश्विक परिस्थितियां भी सचेत कर रही है। कोरोना काल से ही हमारे आसपास के देशों में स्थितियां आर्थिक नजरिए से नाजुक बनी हुई है। तो इन दिनों कुछ देश लगभग युद्ध के स्थिति में संकट का सामना कर रहे हैं। और यह सर्व मान्य है की विश्व में हो रही गतिविधियों का असर अन्य देशों पर भी पड़ता है। इस नजरिए से भी हमें अपनी जेब को संभाल कर रखना जरूरी महसूस होने लगा है।
अभी सितंबर का महीना पूरा खत्म नहीं हुआ है । लेकिन नौकरी पेशा वर्ग ने अपने अपने खाते संभालने शुरू कर दिए हैं। 1 अक्टूबर तक उनके खातों में उनकी मेहनत का पैसा सरकार की ओर से आ जाएगा। जिसे वेतन कहा जाता है। उधर, सरकार ने भी स्पष्ट रूप से तो नहीं लेकिन बाजार के सूत्रों के संकेत से बता दिया है कि दीपावली के अवसर पर वेतन भोगी वर्ग को खुशियां मिलने वाली है।
ऐसी सूचनाओं से न केवल 10 से 5 बजे तक ऑफिस में काम करने वाले वर्ग को बल्कि बाजार में लगभग 24 घंटे अपने सामान की बिक्री के लिए तत्पर और सचेत रहने वाले व्यापारी वर्ग को भी बहुत सी उम्मीदें झिलमिलाती हुई नजर आने लगी है। ऐसा हो भी क्यों ना। अक्टूबर का महीना त्योहारों का महीना जो है। 2 अक्टूबर को अमावस्या पर श्राद्ध पक्ष पूर्ण हो जाएगा। इसी के साथ नवरात्र महोत्सव शुरू होंगे । फिर दशहरा और इस तरह दीपावली तक खूब खुशियों के साथ त्यौहार मनाए जाएंगे। और खुशियां बिना खरीदारी के पूरी नहीं होती।
अपनी-अपनी जरूरत के मुताबिक लोग अपनी रोजमर्रा की चीजें तो खरीदेंगे ही। साथ ही नए कपड़े बनवाना नए सूट बूट तैयार करवाना नए वाहन लेना और सामर्थ्य के अनुसार आभूषण भी बनवाना लाज़िमी हो जाता है। इससे आगे बढ़े तो मकान बनाने की ओर भी कदम उठाए जाते हैं। जिसकी शुरुआत भूखंडों के क्रय से होती है। इन सब खरीदारी के कारण बाजार में आर्थिक चक्र तेजी से घूमता है। खुशियां चहूं और दिखाई देती है।
लेकिन कुछ ऐसे क्षेत्र भी होते हैं जिन तक ना बाजार की नजर पहुंचती है न सरकार उस ओर ध्यान देती है। वह क्षेत्र है गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले हमारे भाई बहनों का। झुग्गी झोपड़ियों और स्लम एरिया में निवास करने वाले अधिकांश ऐसे लोग अशिक्षित भी होते हैं। दैनिक मजदूरी करके अपना जीवन यापन करते हैं। ऐसे क्षेत्र में निवास करने वालों के बच्चों की शिक्षा दीक्षा वांछित नहीं हो पाती। और उनकी प्रतिभा को निखारने के लिए साधन संसाधन भी नहीं होते अथवा बमुश्किल उपलब्ध हो पाते हैं। ऐसी परिस्थितियों में जब बाजार से जुड़े लोग और वेतन भोगी वर्ग के लोग पैसा खर्च के खुशियां बिखेरेंगे तब स्लम एरिया के लोगों की आय सीमित रहने की वजह से वे लोग त्योहारी सीजन का वैसा आनंद नहीं ले पाएंगे जैसा उन्हें भी मिलना चाहिए।
ऐसे में उनके जीवन में भी त्योहारी खुशियों के मौसम में मुस्कान लाने के प्रयास हम सभी की ओर से किए ही जाने चाहिए। हां, कुछ भामाशाह और कुछ संवेदनशील व्यक्तित्व के धनी व समर्थ लोग सहयोग की भावना रखने वाले उस क्षेत्र के निवासियों की ओर अपने कदम बढ़ाकर उन्हें भी समाज की मुख्य धारा में मनाई जा रही खुशियों में शामिल करने का प्रयास अवश्य करते हैं। ऐसे व्यक्तित्व के धनी लोगों को साधुवाद।
और हां, हमारा प्रयास रहे कि हम अपनी जेब संभाल कर खर्च करें और इससे बचाए पैसे से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के परिवारों तक कुछ खुशियां पहुंचाने का भरसक प्रयास करें।
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