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जनक नंदिनी सीता जी एवं पुलवामा शहीदों को नमन
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बीकानेर 14 फरवरी । फाल्गुन कृष्ण अष्टमी को गंगाशहर रोड,एसबआई बैंक के पीछे स्थित आर्य समाज मे जनक नंदिनी सीता जी एवं पुलवामा शहीदों को नमन करते हुए संस्था की कोषाध्यक्ष श्रीमती रूपा देवी ने कहा कि मिथिलाधिपति राजा जनक की आत्मजा और मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम चंद्रजी की धर्मपत्नी सती शिरोमणी सीता जी एक आदर्श पुत्री व पत्नी के साथ आदर्श माँ भी थी जिन्होंने विषम परिस्थितियों में लव और कुश पुत्रों को जन्म देकर महाबली एवं पराक्रमी बनाया. सीताजी को सरल स्वभाव, सुशील, गुणगान तथा सच्चरित्र वान होने से उन्हें "अनुपमा" भी कहा गया.
श्रीमती उषा देवी, उपमंत्री ने बताया कि
अपहरण के समय सीताजी को अनेक प्रलोभन, नाना प्रकार की यातनाएं देकर डराने धमकाने पर भी उन्होंने अपने आत्म बल के कारण वे "धर्म" से लेश मात्र भी विचलित नही हुई. धर्म ने ही उनकी रक्षा की.
श्रीमती कंचन देवी ने बताया कि राजा जनक के सीता (भूमि) यज्ञ करते समय पुत्री का जन्म होने से उनका नाम सीता रखा गया.
श्रीमती सुनीता देवी ने सीताजी की पवित्र तथा आदर्श जीवनी पर सुन्दर काव्य पाठ से स्मरण करते हुए कहा--
जनकसूता सुन्दरी, शुभा साध्वी सुकुमारी l
सती, सुशीला सदाचारिनी विदुषी नारी,
रामप्रिया, पति भक्ति भूसीता थी वह सीता,
अब तक है हृदयस्थ, काल यद्यपि अति बीता l
संस्था प्रधान महेश आर्य ने आज ही के दिन पुलवामा पर हुए आतंकी हमले में माँ भारती की रक्षा के लिए वीर बलिदानियों के साहस, शौर्य और समरपण को स्मरण करते हुए नमन किया.
कार्यक्रम का प्रारंभ यज्ञ से हुआ जिसमे श्रद्धालूओं ने अथर्व वेद के मंत्रों से आहुतियां दी.
श्रीमती रूपा देवी, उषा देवी, कंचन देवी, नीलू देवी, शांति देवी आदि ने पुलवामा के शहीदों के बलिदान का स्मरण करते हुए भजनों के माध्यम से स्वरांजलि अर्पित की ।
कार्य क्रम का संचालन श्रीमती सुनीता ने किया । कार्यक्रम का समापन शांति पाठ के साथ माता सीताजी और शहीदों के पराक्रम के जयघोष के साथ हुआ ।
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