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भगवान की लीला को कोई नहीं जान सकता - महंत क्षमाराम जी महाराज
बीकानेर। गोपेश्वर बस्ती स्थित श्री गोपेश्वर- भूतेश्वर महादेव मंदिर में चल रही श्री मद् भागवत कथा का सोमवार को ग्याहरवां दिन रहा। जहां व्यासपीठ पर विराजे सिंथल पीठाधीश्वर महंत क्षमाराम जी महाराज ने गोकुल से वृंदावन में आने और फिर वहां पर रहकर उनके द्वारा की गई लीलाओं का वर्णन किया।
महंत जी ने बगुले को मारने, यमुना का जल पीकर मरी सभी गायों और ग्वालों को जीवित करने का, कालिया नाग को यमुना से निकाल कर उसे अपना रूप दिखाने तथा नाग कन्याओं द्वारा उनसे क्षमा दान देने की मांग के बाद उसे रमणक द्वीप में जाकर रहने का आदेश देने और उनके बांसुरी प्रेम और रासलीला के प्रसंग सुनाए , इसके अतिरिक्त भगवान के चर्तुभुज रूप का वर्णन करते हुए , विशेषताएं बताई। महंत जी ने कहा कि भगवान को चर्तुभुज क्यों कहा गया है। क्योंकि वह शंख, चक्र, गदा, कमल चारों को धारण करते हैं। इसलिए चर्तुभुज कहलाते हैं। महंत जी ने कहा कि गदा वायु का , शंख जल का, चक्र अग्रि का प्रतीक है, यह पंच तत्व भी हैं।
भगवान की लीला को कोई नहीं जान सकता, श्री कृष्ण जब वृंदावन पहुंचे तो यह उनकी प्रमुख लीला स्थली बन गया। यहां पर श्रीकृष्ण ने अपनी अनेक लीलाएं दिखाई, रास रचाया और दुनिया को प्रेम का पाठ पढ़ाया। श्रीमद् भागवत में वृन्दावन की उन्हीं महिमाओं का वर्णन किया गया है। महंत जी ने श्रीमद् भागवत के माध्यम से जीवन में सद्कर्म करने, सदाचार रखने, संगठित रहने की बात कही।
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