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बीकानेर । नोखा, बीकानेर में दुर्लभ रोग पीड़ित जन्म लेने वाले जुड़वा बच्चों की गुरुवार शाम मौत हो गई। इनमें एक लड़की थी। रोग के कारण इनकी त्वचा सख्त थी। नाखून की तरह हार्ड होकर चमड़ी फटी हुई थी। ये बच्चे हार्लेक्विन-टाइप इचिथोसिस नाम की दुर्लभ रोग से पीड़ित थे।
डॉक्टर्स का दावा था कि हार्लेक्विन-टाइप इचिथोसिस बीमारी के साथ पैदा हुए सिंगल बच्चे पहले भी ट्रीटमेंट के लिए आ चुके हैं। लेकिन, जुड़वा बच्चों का यह देश में संभवत पहला मामला था। यह बीमारी रेयर डिजीज में आने वाले रोगों में है। 5 लाख में से एक बच्चे में यह आनुवांशिक बीमारी पाई जाती है।
डॉक्टरों के अनुसार, जरूरी नहीं कि यह रोग माता-पिता को हो चुका हो। क्रोमोसोम संक्रमित होने से माता-पिता से यह रोग बच्चों में आता है।
यानी माता-पिता इसके वाहक तो हैं, लेकिन कौनसी पीढ़ी से यह रोग चला आ रहा है, यह मेडिकल हिस्ट्री के जरिए ही पता लगाया जा सकता है।
इन जुड़वा बच्चों का जन्म 3 नवंबर को बीकानेर के नोखा के प्राइवेट अस्पताल में हुआ था। इनकी स्किन नाखून के हल्के गुलाबी रंग की तरह थी, जो एकदम कठोर थी। इनके बीच की दरारें गहरी थीं, जो अंदर तक फटी हुई थी।
जन्म के बाद गंभीर हालत होने के कारण 5 नवंबर को उन्हें बीकानेर के पीबीएम अस्पताल में रेफर किया गया था। दोनों बच्चों की जान बचाने के लिए हॉस्पिटल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. जीएस तंवर, शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. कविता और चर्म रोग विभाग के डॉक्टरों की टीम लगी थी। दोनों बच्चों को नोखा में 2 दिन चले इलाज
के बाद बीकानेर के पीबीएम अस्पताल लाया गया था।
5 लाख में से 1 को होती है बीमारी
पीबीएम अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर जीएस तंवर ने बताया परिजन गंभीर हालत में बच्चों को लेकर 5 नवंबर को यहां आए थे। इसके बाद से उनका इलाज अस्पताल के हृदृष्ट में किया जा रहा था। हार्लेक्विन-टाइप इचिथोसिस आनुवांशिक बीमारी है, जो 5 लाख बच्चों में से किसी एक को होती है। जुड़वा बच्चों का देश में यह संभवत- पहला मामला था। इस बीमारी के साथ बच्चे डेढ़ साल तक ही जिंदा रह पाते हैं। कई बार 25 साल तक भी... लेकिन, जीवन सरल नहीं होता। पहले साल तक बच्चों की त्वचा लाल रहती है, जोड़ों में सिकुड़न और उनके अंग विकसित होने में देरी होती है। जन्म के समय बच्चों की स्किन से खून का रिसाव भी होता है।
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