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झंडा गाड़ने आए नेता अपना ही झंडा उखाड़ने लगे - मोहन थानवी




झंडा गाड़ने आए नेता अपना ही झंडा उखाड़ने लगे 

- मोहन थानवी 





















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झंडा गाड़ने आए नेता अपना ही झंडा उखाड़ने लगे 

- मोहन थानवी 

देश की राजनीति को कोई नेता कहां तक पीछे ले जा सकता है इसकी नजीर इन दिनों देश के केंद्र में दिखाई देने लगी है। कथनी और करनी में जमीन आसमान का अंतर रखने वाले एक नेता और उनकी पार्टी ने मानों हदें पार कर दी है। बियाबान में दिन की रोशनी में जीरो वाट के बल्ब खंबे पर लगाकर वह सारी पहाड़ी को रोशन करने की बात पर अड़ गया है। कानून की किताब को अपने माफिक किस तरह खोलकर कौन सा पन्ना कब इस्तेमाल करना है यह भी वह नेता जानता है। लेकिन बखूबी नहीं जानता। इसी वजह से वह अपनी और अपनी पार्टी की साख अपने ही प्रदेश की जनता के बीच कम करने पर तुला लग रहा है। इसके कितने ही उदाहरण जनता ने देख लिए हैं। समन पर समन मिले लेकिन वह नेता अपने हठ को पकड़े रहा जो कि आमजन भी अनुचित करार देते हिचकेगा नहीं। साथ-साथ राजनीतिक दलों ने भी इनका आनंद लिया। लेकिन राजनीतिक समझ किस कदर वोट बैंक के इर्द-गिर्द घूमने लगी है इसका भी प्रमाण नेता महोदय के आचरण और उनके साथ के सहयोगियों के व्यवहार से जनता के समक्ष आने लगा है। जनता अब हाईटेक हो चुकी है और जानकारी से जागरूकता का सैलाब जनता तक पहुंचने लगा है। इस कारण गफलत में केवल वही रह सकते हैं जो अपने चश्मे बदलते नहीं। धूप में धूप का चश्मा अच्छा लगता है। लेकिन जेल में भी रात के अंधेरे में रंगीन चश्मा चढ़ाकर घूमने वाले औरों की नजर में अपनी महत्ता को कम कर देते हैं। ऐसा लगता है इन नेता ने अपनी अहमियत पर खुद ही मिट्टी डालनी शुरू कर दी। जनता को भी हंसी आती है जब इन नेता की नैतिकता भरी पूर्व में कही गई बातों को टीवी चैनलों और अखबार के माध्यम से या सोशल मीडिया के माध्यम से सुना जाता है। और इस परिप्रेक्ष्य में जब वर्तमान स्थिति में उनकी हठधर्मिता सामने आती है तब हंसी के फव्वारे छूटते हैं। यह सच है की नेता ने अपने कदम राजनीतिक क्षेत्र में अच्छे विचारों और बदलाव लाने के लिए अच्छी पहल के साथ बढ़ाए थे। लेकिन बहुत सी बातें ऐसी सामने आने लगी जिनसे इनकी कथित ईमानदारी संदेह के घेरे में आ गई। अब तो आमजन भी यह कहने लगा है की झंडे गाड़ने की बजाय यह नेता तो अपने ही झंडे उखाड़ने में जुट गए। 

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