सिंधु महल में सिंधी लोक नाटक ससुई पुन्हु का सशक्त प्रभावशाली मंचन
























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सिंधी लोक नाटक ससुई पुन्हु का सशक्त प्रभावशाली मंचन











जोधपुर, सिंधी कल्चरल सोसाइटी ,जोधपुर एवं संस्कृति मंत्रालय ,भारत सरकार, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में
वरिष्ठ रंगकर्मी हरीश देवनानी के मार्ग निर्देशन में सिंधी लोकनाट्य भगत के तहत सिंधी लोक नाटक ससुई पुन्हु का सशक्त प्रभावशाली मंचन अजमेर के युवा भगत लवी कमल के निर्देशन में  सिंधु महल में  किया गया जिसमें सिंधी वेलफेयर एंड मेडिकल सोसायटी भी सहयोग रहा। 


लोककथा "ससुई पुन्हु"सिंधी भाषा के महान साहित्यकार  शाह अब्दुल लतीफ की सत् सुरमियूं के तहत सात प्रेम कथाओं में से एक कथा है जिसे अजमेर निवासी भगत के कलाकार लवी भगत के साथ अन्य कलाकारों ने पारंपरिक वेशभूषा में दर्शकों के सामने इस कथा का मंचन मंचन कर दर्शकों को भाव विभोर कर दिया। सिंधी कलाम, नृत्य तथा संगीतमय संवाद  भरपूर इस प्रस्तुति में दर्शकों को मंत्र मुग्ध कर दिया ।


नाटक के  दर्शाया गया कि ससुई एक ब्राह्मण के घर पैदा हुई और उसने ग्रह नक्षत्र देखे तो वह डर गया। क्योंकि उसका विवाह दूसरे धर्म के युवक से होना लिखा था।बेटी को संदूक में बंद कर नदी में बहा दिया। वह संदूक केच मकरान के मुहम्मद धोबी को घाट पर मिली। वह जब बड़ी हुई तब बलोच शहजादा पुन्हु उस पर फिदा हो गयाऔर मोहम्मद का सहायक धोबी बनकर रहने लगा। पुन्हू के भाईयों ने भंभोर में दिखावा किया कि वे ससुई और पुन्हू के रिश्ते से खुश हैं। भोली ससुई और भोला पुन्हु दोनों बहकावे में आ गए। खुशी में भाइयों ने पुन्हु को मदिरा पान करा आधी रात को ऊंट पर लाद कर केच मकरान ले गए। 


बेचारी ससुई ने तो अपने देवर जान कर आदर सत्कार दिया और खुद गफलत की नींद सो गई।सुबह उसने देखा पुन्हु अपने बिस्तर पर नहीं था, देवर और ऊंट भी नहीं थे। वह नंगे पांव, नंगे सिर पुनहु की खोज में निकल पड़ी।


बहुत दिनों तक वह केच मकरान की दुर्गम पहाड़ियों में भटकती रही। एक शाम अकेली पाकर एक गडरिए के मन में बदनियती पैदा हो गई। ससुई ने ईश्वर को सहायता के लिए प्रार्थना की। अचानक बादल फटा और वह उसमें समा गई, बस उसके वस्त्र की कन्नी बाहर दिख रही थी।
उधर पुन्हु का भी नशा टूटा। अपने मां बाप के लाख मना करने पर भी ससुई से मिलने निकल पड़ा, उसे तब ससुई की कन्नी देखकर के वहां समा जाने का अहसास हुआ, गडरिया भी अपने किए पर पछता रहा था। पुन्हू भी वहीं ढेर हो गया। दोनों एक ही जमीन पर समा गए । 

इस कहानी को कलाकारों ने संगीत, सिंधी कलाम, नृत्य के माध्यम से और संवादों के माध्यम से दर्शको तक पहुंचने में सफलता प्राप्त की। इस भगत  कार्यक्रम में लवी भगत के साथ कोरस कलाकार के रूप में इंद्र भगत, ऑक्टोपैड पर देवेंद्र,  ढोलक पर राधेश्याम, कीबोर्ड पर सुरेंद्र तथा ढोल पर लोकेश ने साथ देकर शानदार क्षमा बांदा जिससे दर्शकों को नृत्य करने पर मजबूर होना पड़ा और सुधि दर्शकों ने विभिन्न प्रसंगों के तहत आनंद लिया तथा दुखदाई घड़ी में आम दर्शक  अपने आंसू नहीं रोक पाए । नाटक की शुरुआत " बेङी मुहिनजि  बेङी सभिनिनजी "  गीत से  की।

इस मौके पर गोविंद करमचंदानी, राजकुमार परमाणी, महेश संतानी, विजय भक्तानी, सुशील मंगलानी,स्मिता थदानी, आरती  मंगलानी, गोविंद राम सबनानी, डिंपल ज्ञानानी, लता धनवानी, रितिका मनवानी, राजेंद्र खिलरानी, प्रभु  टेवानी, राजकुमार भागवानी, प्रेम थदानी, प्रकाश खेमानी सहित अन्य कलाकारों तथा कला प्रेमियों का सहयोग रहा। मंच संचालन जेठानन्द लालवानी ने किया जबकि मंच सज्जा रमा आसनानी, रंग दीपन अशोक कृपलानी का रहा।


संपूर्ण प्रस्तुति में नारी सशक्तिकरण, स्वच्छता अभियान तथा अखंड भारत और विकसित भारत का का भी संदेश दिया गया। संयोजक राजेंद्र खिलरानी ने बताया कि  लुप्त हो रही 'भगत' कला को  दर्शकों के बीच पहुंचाना आज की जरूरत है जिससे कि सिंधी लोक कला एवं संस्कृति से आमजन और खासकर युवा वर्ग आत्मसात  हो सके।


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