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खबरों में बीकानेर 🎤 🌐
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श्रीडूंगरगढ़. यहां की राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति एवं राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय राजस्थान की समकालीन हिन्दी कहानी समारोह के दूसरे दिन रविवार को दो दशक की हिन्दी कहानी शिल्प और संवेदना के आईने में राजस्थान के सन्दर्र्भ में विषय पर सत्र शुरू हुआ। समारोह के मुख्य अतिथि चिड़ावा के श्याम जांगिड़ ने कहा कि भाषा ही कहानी का साहित्य है। ऐसे में भाषा सबसे महत्वपूर्ण है। कहानी समय को लपेटते हुए चलती है और समय की परिस्थितियों को नापते हुई लिखी जा रही है। अध्यक्षता करते हुए डॉ. चेतन स्वामी ने कहा कि कहानी कल्पना से बुनी हुई होती है और तेजी से अपनी शिल्प बदल देती है। कहानी व्यापक व पूरे पकाव के रूप में सामने आनी चाहिए। आशाराम भार्गव ने पत्र वाचन करते हुए कहा कि हिन्दी कहानी का आज भी अपना प्रमुख स्थान है और आगे भी रहेगा। श्रीभगवान सैनी ने कहानी रूपाली व स्नेहलता शर्मा ने कहानी अंधी गली का वाचन किया। साहित्यकार सत्यदीप ने संचालन करते हुए वर्तमान समय में कहानी की भूमिका पर अपने विचार व्यक्त किए।
इस समारोह के समापन अवसर पर मुख्य अतिथि प्रो. भंवर भादानी ने कहा कि कहानी के लिए सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में सामग्री उपलब्ध है। कहानी लिखने के लिए किसी भी साहित्यकार के पास कहानी लिखने का उद्देश्य व विषय वस्तु का होना जरूरी है। अध्यक्षता करते हुए मनमोहनसिंह ने कहा कि लेखक साहित्य का सृजनकार है और साहित्य समाज का दर्पण है। कहानी में अमानवीय घटनाओं से समाज को क्षति पहुंची है। विशिष्ट अतिथि मोहम्मद फारूक ने बताया कि कहानी का मूल रूप ऐसा हो कि मानवीय संवेदना की जिज्ञासा इसमें बनी रहे। संचालन करते हुए लेखिका मोनिका गौड़ ने कहा कि सोच कर लिखना सृजन नहीं बल्कि निष्क्रियता है। इस दौरान क्षेत्रीय विधायक गिरधारी महिया ने कहा कि साहित्य अपने आप में एक अमूल्य धरोहर है। इस तहसील का सौभाग्य है कि यहां सृजन के क्षेत्र में पूरे देश में पहचान बनी है। संस्था अध्यक्ष श्याम महर्षि ने संस्था की आगामी कार्य योजना के बारे में बताया। मंत्री बजरंग शर्मा एवं रवि पुरोहित ने आगन्तुक अतिथियों का आभार जताया। इस अवसर पर रामचन्द्र राठी, सीताराम महर्षि, श्रीकृष्ण खण्डेलवाल, करणीसिंह बाना, सत्यनारायण स्वामी, शान्ति प्रकाश बड़थ्वाल, गजानन्द सेवग, पवन कुमार शर्मा, मनीष कुमार शर्मा, तुलसीराम चौरडिय़ा, बुद्धराम विश्नोई सहित कई साहित्यकार मौजूद थे
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