खबरों में बीकानेर 🎤
कभी उसकी अभी इसकी हुई कुर्सी... बाकी कुछ बचा तो GST मार गई !
-✍️ मोहन थानवी
अचकचा कर नेताजी गुफा में चले गए। उनके पीछे-पीछे कुछ खास पिछलग्गू भी गुफा में समा गए। गुफा के बाहर खड़े हमलोग यह नहीं समझ सके कि मतगणना के दो ही घंटे बाद नेताजी एकाएक मायूस क्यूंकर हो गए ! जबकि वोटों की गिनती शुरू से लेकर कुछ देर पहले तक तो वे अपनी टाबर-टोली के साथ खूब चहचहा रहे थे ! हमलोगों ने पास ही खड़े खास नेताजी की ओर देखा, उन्होंने हमारी सवालों भरी नजरों को परख लिया और बोले - देखा, अचकचा गए न नये-नये नेताजी! हमने असमंजस के साथ पूछा - वह तो देखा लेकिन कारण भी तो बताओ? खास नेताजी मुस्कुराए, बोले - अभी भी नहीं समझे? दौड़ में पीछे हो गए हैं नये-नये नेताजी । उनको पीछे रहना पसंद नहीं है । वह हमेशा आगे ही रहना चाहते हैं । इसीलिए जब इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों ने पल भर में यह जता दिया कि वे पीछे जा रहे हैं तो वे मायूस होकर व मंत्रणा के लिए अपने साथियों के साथ गुफा में जा बैठे हैं । हम खास नेताजी की इस बात पर विचार करने लगे । पल भर को लगा कि हां ऐसा ही होगा। लेकिन ऐसा क्यों होगा? जो हुआ वह विस्तार से हम जानना चाहते थे। इसलिए फिर पूछा - इसका कारण भी तो बता दो। खास नेताजी बोले - कारण एक ही है । वह है नेताजी को हेकड़ी मार गई। अपनी- अपनी ही हांके चले गए। और दौड़ में शामिल बाकी धावक नेता आगे निकल गए। हमने खास नेताजी से पूछा कि फेंकने-हांकने के अलावा भी कुछ और कारण तो होंगे? क्या वह दौड़ नहीं पाते थे? खास नेताजी अपनी विशिष्ट शैली में मुस्कुराए और अपने विशेष बालसुलभ भोलेपन से कहा - क्या बात करते हो । देखो एक तरफ बाजार नाराज। दूसरी तरफ किसान, तीसरी ओर कर्मचारियों की जमात तो चौतरफा महंगाई की मार से आमजन नाराज। सभी नाराज। कोई भी साथ चलने को तैयार नहीं । तो भाई साथ दौड़ने को कौन तैयार होगा? हमें बात में दम नजर आया । हमने कुछ और उगलवाने के लिए खास नेताजी की ओर देखा और बोले - तो ये कारण रहा । खास नेताजी फिर मुस्कुराए और चिरपरिचित लहजे में कहने लगे - एक ही कारण पर मैं और क्या बार-बार बिजली की चमकार के साथ बताऊं। हमने उत्सुकता से पूछा - और कारण भी हैं? तब खास नेताजी ने पारंगत गायक की तरह गीत गाते हुए कहा - हां, हैं । कभी उसकी अभी इसकी हुई कुर्सी... बाकी कुछ बचा तो उसे नोटबंदी के साथ जीएसटी मार गई...। हमारे नेत्रों में चमक पैदा हुई । ज्ञान चक्षु खुल गए । हमने दंडवत खास नेताजी को प्रणाम किया व कहा - हे धरा के वनमैन, आप सही कह रहे हो । नोटबंदी और जीएसटी ने फेंकमार राग-दरबारी पर ऐसी मार मारी कि प्रभावितों ने अपने बदन तक उघाड़ कर घाव दिखाए। मगर नये नेताजी अपनी राह चलते ही रहे। खास नेताजी ने हमलोगों के अब सीएम कौन सवाल को टालते हुए आभारी लहजे में कहा - आप लोग समझदार हैं । परिवर्तन के लिए हमारी आवाज और हमारी पॉलिसी को समझते हुए हमारे पक्ष में मतदान किया। इसी का नतीजा है हमारे कार्यकर्ता ढोल नगाड़े के साथ विजयी उद्घोष से जमीन-आसमान एक कर रहे हैं । आ गई आ गई हमारी सरकार आ ही गई । और जीत-हार की इस ऊहापोह से परे दोनों पक्षों के नेताओं के दावों और मतगणना की सूचनाएं टीवी चैनलों पर देख रहे देख रहे लोगों के कोलाहल के बीच हमलोगों को अपने ही अंतर्मन की आवाज सुनाई नहीं दे रही थी। कहां तो चुनावी रुझानों के आने से पहले हम देश के हित की बात सोचते रहे, कहां तो हम आतंकवाद खत्म करने की बात कर रहे थे, कहां हम भ्रष्टाचार से मुक्ति पाने की बात सोच रहे थे और कहां अब हमारी सोच में कुछ भी नहीं आ रहा था । बस हम खुशी से फूले नहीं समा रहे लोगों की खुशी में शामिल हो रहे थे। टीवी पर पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम आने शुरू हो चुके । और हम हैं कि खास नेताजी की खास बातों को ही समझने की कोशिश में लगे हैं। नेताजी तो पहले ही कह चुके हैं की "उनके पास" बाकी कुछ बचा तो जीएसटी मार गई...। और हम यह सोच रहे हैं कि करारी शिकस्त के बाद उनके पास क्या सच में कुछ बाकी बचा भी? क्या सच में नोटबंदी-जीएसटी मार कर गई? क्या यह सब एक मिलीजुली प्रतिक्रिया के रूप में वक्ती तौर पर सामने आ रहा है? या सच में नेताजी अपने पिछलग्गुओं के साथ अपनी हेकड़ी में कुछ और कदम उठाने वाली योजनाओं पर फिर से विचार विमर्श करने के लिए गुफा में मंत्रणा कर रहे हैं? अंदर की बात और मतगणना के परिणाम तो वक्त ही बताएगा । अब क्या नई घोषणा होती है, देखेंगे सुनेंगे रात 8:00 बजे हम लोग।
-✍️ मोहन थानवी
कभी उसकी अभी इसकी हुई कुर्सी... बाकी कुछ बचा तो GST मार गई !
-✍️ मोहन थानवी
अचकचा कर नेताजी गुफा में चले गए। उनके पीछे-पीछे कुछ खास पिछलग्गू भी गुफा में समा गए। गुफा के बाहर खड़े हमलोग यह नहीं समझ सके कि मतगणना के दो ही घंटे बाद नेताजी एकाएक मायूस क्यूंकर हो गए ! जबकि वोटों की गिनती शुरू से लेकर कुछ देर पहले तक तो वे अपनी टाबर-टोली के साथ खूब चहचहा रहे थे ! हमलोगों ने पास ही खड़े खास नेताजी की ओर देखा, उन्होंने हमारी सवालों भरी नजरों को परख लिया और बोले - देखा, अचकचा गए न नये-नये नेताजी! हमने असमंजस के साथ पूछा - वह तो देखा लेकिन कारण भी तो बताओ? खास नेताजी मुस्कुराए, बोले - अभी भी नहीं समझे? दौड़ में पीछे हो गए हैं नये-नये नेताजी । उनको पीछे रहना पसंद नहीं है । वह हमेशा आगे ही रहना चाहते हैं । इसीलिए जब इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों ने पल भर में यह जता दिया कि वे पीछे जा रहे हैं तो वे मायूस होकर व मंत्रणा के लिए अपने साथियों के साथ गुफा में जा बैठे हैं । हम खास नेताजी की इस बात पर विचार करने लगे । पल भर को लगा कि हां ऐसा ही होगा। लेकिन ऐसा क्यों होगा? जो हुआ वह विस्तार से हम जानना चाहते थे। इसलिए फिर पूछा - इसका कारण भी तो बता दो। खास नेताजी बोले - कारण एक ही है । वह है नेताजी को हेकड़ी मार गई। अपनी- अपनी ही हांके चले गए। और दौड़ में शामिल बाकी धावक नेता आगे निकल गए। हमने खास नेताजी से पूछा कि फेंकने-हांकने के अलावा भी कुछ और कारण तो होंगे? क्या वह दौड़ नहीं पाते थे? खास नेताजी अपनी विशिष्ट शैली में मुस्कुराए और अपने विशेष बालसुलभ भोलेपन से कहा - क्या बात करते हो । देखो एक तरफ बाजार नाराज। दूसरी तरफ किसान, तीसरी ओर कर्मचारियों की जमात तो चौतरफा महंगाई की मार से आमजन नाराज। सभी नाराज। कोई भी साथ चलने को तैयार नहीं । तो भाई साथ दौड़ने को कौन तैयार होगा? हमें बात में दम नजर आया । हमने कुछ और उगलवाने के लिए खास नेताजी की ओर देखा और बोले - तो ये कारण रहा । खास नेताजी फिर मुस्कुराए और चिरपरिचित लहजे में कहने लगे - एक ही कारण पर मैं और क्या बार-बार बिजली की चमकार के साथ बताऊं। हमने उत्सुकता से पूछा - और कारण भी हैं? तब खास नेताजी ने पारंगत गायक की तरह गीत गाते हुए कहा - हां, हैं । कभी उसकी अभी इसकी हुई कुर्सी... बाकी कुछ बचा तो उसे नोटबंदी के साथ जीएसटी मार गई...। हमारे नेत्रों में चमक पैदा हुई । ज्ञान चक्षु खुल गए । हमने दंडवत खास नेताजी को प्रणाम किया व कहा - हे धरा के वनमैन, आप सही कह रहे हो । नोटबंदी और जीएसटी ने फेंकमार राग-दरबारी पर ऐसी मार मारी कि प्रभावितों ने अपने बदन तक उघाड़ कर घाव दिखाए। मगर नये नेताजी अपनी राह चलते ही रहे। खास नेताजी ने हमलोगों के अब सीएम कौन सवाल को टालते हुए आभारी लहजे में कहा - आप लोग समझदार हैं । परिवर्तन के लिए हमारी आवाज और हमारी पॉलिसी को समझते हुए हमारे पक्ष में मतदान किया। इसी का नतीजा है हमारे कार्यकर्ता ढोल नगाड़े के साथ विजयी उद्घोष से जमीन-आसमान एक कर रहे हैं । आ गई आ गई हमारी सरकार आ ही गई । और जीत-हार की इस ऊहापोह से परे दोनों पक्षों के नेताओं के दावों और मतगणना की सूचनाएं टीवी चैनलों पर देख रहे देख रहे लोगों के कोलाहल के बीच हमलोगों को अपने ही अंतर्मन की आवाज सुनाई नहीं दे रही थी। कहां तो चुनावी रुझानों के आने से पहले हम देश के हित की बात सोचते रहे, कहां तो हम आतंकवाद खत्म करने की बात कर रहे थे, कहां हम भ्रष्टाचार से मुक्ति पाने की बात सोच रहे थे और कहां अब हमारी सोच में कुछ भी नहीं आ रहा था । बस हम खुशी से फूले नहीं समा रहे लोगों की खुशी में शामिल हो रहे थे। टीवी पर पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम आने शुरू हो चुके । और हम हैं कि खास नेताजी की खास बातों को ही समझने की कोशिश में लगे हैं। नेताजी तो पहले ही कह चुके हैं की "उनके पास" बाकी कुछ बचा तो जीएसटी मार गई...। और हम यह सोच रहे हैं कि करारी शिकस्त के बाद उनके पास क्या सच में कुछ बाकी बचा भी? क्या सच में नोटबंदी-जीएसटी मार कर गई? क्या यह सब एक मिलीजुली प्रतिक्रिया के रूप में वक्ती तौर पर सामने आ रहा है? या सच में नेताजी अपने पिछलग्गुओं के साथ अपनी हेकड़ी में कुछ और कदम उठाने वाली योजनाओं पर फिर से विचार विमर्श करने के लिए गुफा में मंत्रणा कर रहे हैं? अंदर की बात और मतगणना के परिणाम तो वक्त ही बताएगा । अब क्या नई घोषणा होती है, देखेंगे सुनेंगे रात 8:00 बजे हम लोग।
-✍️ मोहन थानवी
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