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लेखन के लिए भीतरी उमंग जरूरी- रवि पुरोहित


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लेखन के लिए भीतरी उमंग जरूरी- रवि पुरोहित
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*लेखन प्रशिक्षण कार्यशाला का दसवां दिवस*
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श्रीडूंगरगढ़। पन्द्रह दिवसीय लेखन प्रशिक्षण कार्यशाला के दसवें दिन साहित्यकार रवि पुरोहित ने नव लेखकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि लेखन ऐसी विधा है, जिसे सिखाया नहीं जा सकता, वह तो भीतर की उमंग से सीखी जाती है। जैसे भक्ति में समर्पण आवश्यक है, वैसे ही लेखन भी बिना समर्पण के कहां संभव होता है? जिस रीति से चिकित्सक, इंजीनियर, चार्टेड एकाउंटेंट बनाए जा सकते हैं, वैसे लेखक नहीं बनाए जा सकते। लेखन की यात्रा कभी पूरी नहीं होती। कोई यह नहीं कह सकता कि अब वह पूरा लेखक बन गया। यह तो स्वयं को सतत् मांजने की कला है। पर एक भेद की बात यह है कि पुस्तकालय लेखक बनने में बेहद मददगार होते हैं। एक लेखक का प्रस्थान बिंदु पाठक होना होता है। एक पाठक बने बिना लेखक बनने की मंशा, बिना आटे के रोटी बनाने जैसी है। एक पाठक ही जान पाता है कि सम सामयिक जगत में क्या नया रचा जा रहा है। 
कुछ नव लेखक, कथा संग्रह 'बाई म्हारी चिड़कोली' पर समीक्षात्मक टिप्पणियां लिखकर लाए। 
इससे पूर्व प्रशिक्षक डाॅ चेतन स्वामी ने समझाया कि नए लेखकों को रचना में बार बार सुधार करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। रचना के सुधार में लगाया परिश्रम कभी बेकार नहीं जाता। एक रचना पाठक को संतुष्टि प्रदान करे, उससे पहले लेखक स्वयं उससे संतुष्ट होना चाहिए। 
नव लेखकों से राजस्थानी रचनाएं पढवाई गई, उन्होंने पूर्व अभ्यास न होने के बावजूद सुगमता से पाठ किया। लेखन प्रशिक्षण कार्यशाला के सहभागियों को लिखने के साथ-साथ बोलने का भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है। कल उन्हें बाल कहानियां लिखकर लाने को कहा गया है।








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