कुर्सी को मुस्कुराने दो : तब्सरा-ए-हालात

जादूगर जादूगरी कर कर गया। कुर्सी मुस्कुराती रही । बाजीगर देखता ही रह गया । उसके झोले से हमें मानो आवाज सुनाई दी  कुर्सी को मुस्कुराने दो ।  गाय घोड़े पशु पक्षियों के चारा दाना तक में घोटाले हुए । सीमा पर दुश्मन से लोहा लेने के लिए खरीदे जाने वाले अस्त्र शस्त्रों में घोटाले हुए। जनता तक एक रुपए में से मात्र 15 पैसे पहुंचने की बातें हुई मगर कुर्सी मुस्कुराती रही। मगर यह कोई जादू नहीं है  कि पेट्रोल  हमारी गाड़ियों को चलाने के लिए वाजिब दामों में  उपलब्ध होने की बजाय  हमारी जेबों में आग लगा रहा है । पेट्रोल ने जेबों में आग लगा दी  कुर्सी मुस्कुराती रही  । बच्चे मारे गए कुर्सी मुस्कुराती रही।  सीमा पर  हमारे जवान शहीद होते रहे  कुर्सी मुस्कुराती रही  । जाति संप्रदाय  आरक्षण के नाम पर  आक्रोश फैलता रहा  कुर्सी मुस्कुराती रही। करनाटक में बिना जरूरत के भव्य नाटक का मंचन हुआ कुर्सी मुस्कुराती रही। लाखों की आबादी के बीच सरकारी अस्पतालों में कुछ लाख रूपये के संसाधनों के अभाव में मरीज तड़पते रहे और न जाने किस बजट से हजारों करोड़ों रुपयों के ऐसे भव्य कार्य हुए जिनकी फिलवक्त आवश्यकता को टाला जा सकता था मगर कुर्सी मुस्कुराती रही।  अपने 56 साल के जीवन काल की ऐसी कितनी घटनाओं  को याद करूं? जिसमें किसी 56 इंच के सीने वाले ने 56 बार दहाड़ दहाड़ कर देश की जनता को अच्छे दिन लाने का वादा किया हो?  मुझे तो केवल एक ही ऐसा वाकिआ स्मरण में है और वह भी 4 साल पहले का। इससे पहले के जो वाकिये हैं वह है किसी को हटाने के  मतलब गरीबी हटाने के । किसी के लिए खुशहाली लाने के मतलब हरे हरे सपना दिखाकर किसानों के लिए खुशहाली लाने के वादों के दिन। गरीबी हटाओ का नारा खूब चला था। जब मैं पहली बार वोट देने गया था तब मुझे बनियान 56 इंच की भी  छोटी पड़ रही थी। गरीबी हटाओ के अपने देश के महा अभियान का एक हिस्सा अपने आप को समझते हुए बड़ी शान से मतपत्र पर किसी एक जगह ठप्पा लगाया था और दूसरों को भी प्रेरित किया था। गरीबी हटाने के अभियान में सहयोग करने के लिए । ठीक वैसे ही शान से मैंने 4 साल पहले भी एक ठप्पा लगाया था और अपने मिलने जुलने वालों से जिरह भी की थी कि अच्छे दिन आएंगे । आएंगे और जरूर आएंगे।साथ जुड़ जाओ। ऐसे सभी लोग आज मेरे साथ जुड़े हुए हैं मेरे साथ कतार में आगे या पीछे खड़े हैं पेट्रोल भरवाने के लिए।  और हमारी जेब खाली से खाली, खाली से खाली, खाली से खाली होती जा रही है । नोटबंदी का असर हम पर नहीं हुआ क्योंकि हम आम आदमी हैं।  लेकिन नोटबंदी के दिनों में जो असर हुआ उसे भूल नहीं सकते हमारे पैसे बैंकों में थे और हम दवा दारू के लिए या अपने सगे-संबंधियों के शादी विवाह के लिए अपने खुद के परिवार में किसी के जन्मदिन या किसी और कार्य के लिए पैसे का उपयोग नहीं कर पा रहे थे।  वह दिन हम नहीं भूल सकते क्योंकि वह देश के लिए किया गया एक महान कार्य का सहयोगी ऐसा था। लेकिन उसके बाद जीएसटी का असर हम पर क्यों? हमें यह बताया गया कि चीजों के दाम नहीं बढ़ेंगे। मगर दाम बढ़ते गए बढ़ते गए।  जिस चीज के दाम बढ़ने के लिए आश्वासन नहीं मिला था वह पेट्रोल था क्योंकि यह जीएसटी में शामिल नहींं हुआ था। 
 देश की हालत को देखते हुए लगता नहीं अच्छे दिन हमारे आसपास भी आ सकते है  । इस बात का जवाब कभी किसी नेता ने नहीं दिया कि  अच्छे दिन लाने या गरीबी हटाने की बातें तभी क्यों होती है जब कुर्सी गतिमान होती है । गतिमान  । मतलब चुनाव नजदीक हो तो बहुत सी बातें नेताओं को याद आ जाती है और कुर्सी मुस्कुराने लगती है।   कुछ गड़े मुर्दे  फाइलों से निकल आते हैं । कुछ भूली बिसरी बातें  लबों पर लहराने लगती है  । जनता को  50 साल 70 साल पता नहीं कितने कितने सालों के  उन दिनों की याद दिलाई जाती है कि तब ऐसा हुआ था  वैसा न हुआ था। ऐसा वैसा  ही कुछ वादा  और फिर वही काम नेता करते हैं। कुर्सी मुस्कुराती है।  नेता जानते  है राजनीति में वादों के सिवाय कुर्सी नहीं मिलती। कुर्सी तभी मुस्कुराती है जब उसके सामने वादों की फेहरिस्त लहराई जाती है। करनाटक में राजस्थान के एक जादूगर ने जादू दिखा दिया और अब राजस्थान में केंद्र से एक बाजीगर आ रहा है जिसके बारे में सुगबुगाहट है कि वह गुलाबी नगरी में किराए के मकान में यहां दिन बिता बाजीगरी दिखाएगा । कुर्सी को मुस्कुराने दो। 
-- मोहन थानवी

टिप्पणियाँ