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चिंता : हाईजैक मेरा शहर !!

चिंता : हाईजैक मेरा शहर !!
पीबीएम अस्पताल के चारों तरफ से इंटर स्टेट परिवहन के लिए भारी वाहन गुजरते हैं। शहर की सात दशकों से भी अधिक समय से चल रही रेल फाटक समस्या तो हल हुई नहीं कि अब पानी निकासी की समस्या सामने आ खड़ी हुई है। खासतौर से सीवरेज जाम के समय और बारिश के दिनों में यह समस्या और गहरा जाती है।

जय श्री गणेश


bahubhashi.blogspot.com
1 सितम्बर 2025 सोमवार

खबरों में बीकानेर


✒️@Mohan Thanvi

चिंता : हाईजैक मेरा शहर !!
- मोहन थानवी
हाईटेक होते होते लगता है मेरा शहर हाईजैक हो चुका है। बात-बात में जनप्रतिनिधि होने का दावा करने वाले कतिपय नेता भी बीकानेरियन की आम समस्याओं की ओर से आंखें मूंदे रहते हैं। हालांकि इसमें किसी को कोई शक नहीं कि मेरा शहर बीते दशकों की तुलना में विकास की राह पर तेजी से आगे बढ़ा है, लेकिन चांद पर चंद धब्बे उसकी पूरी सुंदरता पर उंगली उठाने का अवसर दे देते हैं। जबकि मेरे शहर पर तो सामने दिखाई देने वाले हिस्सों पर धब्बे ही धब्बे हैं।  दुर्घटनाओं में दिनोंदिन वृद्धि  चिंताजनक है । क्षतिग्रस्त सड़कों, जाम सीवरेज, खुले नालों, मादक पदार्थों की बढ़ती दलदल, दोपहिया, चार पहिया वाहनों के रैलों, जगह-जगह सड़ांध मारते कचरे के ढेरों और कंक्रीट बिछे मैदानों ने मेरे शहर को हाईजैक कर लिया है। मोहल्लों-कॉलोनियों में नाम मात्र के पार्क स्थलों की दुर्दशा भला वहां के निवासी कैसे देखे होंगे ! शहर के उरमूल सर्किल, अंबेडकर सर्किल, गोगागेट चौराहा, कीर्ति स्तम्भ सर्किल, पंचशति सर्किल, मुरलीधर व्यास सर्किल, रेलवे स्टेशन के ठीक सामने सहित प्रमुख प्रमुख लगभग दो दर्जन सर्किल अथवा चौराहों से हम लोग कैसे गुजरते हैं यह भला शहर के अमलदार सरकारी कारिंदे और महंगी वातानुकूलित गाड़ियों में घूमने वाले शहर की जनता के प्रतिनिधि कैसे जान सकते हैं ! आम बीकानेरी का रोष तो तब बढ़ जाता है जब वातानुकूलित कक्षों में सोफों पर पसर कर बीकानेर के विकास की योजनाएं बनाने वाले गोचर को भी आवासीय क्षेत्र में परिवर्तित करने के प्रस्ताव रख देते हैं।
सूरसागर से महिला मंडल की ओर आने वाले रास्ते पर जूनागढ़ की खाई के सहारे बना नाला उधड़ा हुआ पड़ा है। और गंभीर बात यह है कि इस रास्ते से बड़ी संख्या में स्कूली बच्चों के साथ-साथ निदेशालय सहित विभिन्न सरकारी कार्यालयों के लिए आने जाने वाले कर्मचारियों और स्थानीय नागरिकों का आवागमन रहता है । साथ ही निजी बसों का परिचालन भी इस रास्ते पर रहता है ।  हमारे एक वरिष्ठ पत्रकार साथी ने अंबेडकर सर्किल क्षेत्र में अवैध निजी बसों के ठहराव संबंधी समस्या की ओर प्रशासन का ध्यानाकर्षण करवाया था । प्रशासन जाग्रत हो उससे पहले उस क्षेत्र में दुर्घटना घटी जिसमें एक व्यक्ति की अकाल मौत हो गई । इसी क्षेत्र में खान-पान की  दुकानों के बाहर बीच सड़क तक खड़े होने वाले वाहन और लोगों की भीड़ आवागमन को बुरी तरह प्रभावित करती है। ऐसी ही समस्या शहर के अन्य ऐसे खान-पान वाले नुक्कड़ों पर बनी रहती है।
कतिपय नेताओं को तो शहर के ऐसे हालात की जानकारी तक नहीं होगी क्योंकि वे तो हवाई मार्ग से उड़ान भर कर दो से तीन शहरों में अपनी सरकारी विकास गाथा गाते हुए तारीख बदलते बदलते किसी नए शहर में पहुंच जाते हैं। एक बारगी तो सुनकर ही हैरानी होती है की हमारे पीबीएम अस्पताल पर सरकार की ओर से तो करोड़ों खर्च होते ही हैं साथ-साथ भामाशाहों की तरफ से भी करोड़ों के विकास कार्य हो रहे हैं। लेकिन पीबीएम परिसर में आवागमन तक सुविधाजनक नहीं है।  न ही अस्पताल में सफाई दिखाई देती है।  ऊपर से अस्पताल भवन में ही एक विभाग से दूसरे विभाग अथवा एक वार्ड से दूसरे वार्ड की ओर आने जाने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। यहां तक की जिस ओर केवल महिलाओं का आना-जाना ही होना चाहिए उस ओर से भी लोग आवाजाही करते दिख जाते हैं। विडंबना तो यह है कि पीबीएम अस्पताल के चारों तरफ से इंटर स्टेट परिवहन के लिए भारी वाहन गुजरते हैं। शहर की सात दशकों से भी अधिक समय से चल रही रेल फाटक समस्या तो हल हुई नहीं कि अब पानी निकासी की समस्या सामने आ खड़ी हुई है। खासतौर से सीवरेज जाम के समय और बारिश के दिनों में यह समस्या और गहरा जाती है। बहुत से ऐसे स्थान है जहां पानी निकासी की समस्या अतिक्रमणों की वजह से और अधिक गहराती हुई दिखती है।
बीते एक दो वर्षों में ही शहर के विकास पर हजारों करोड़ रूपया हमारे जन प्रतिनिधियों की घोषणाओं और प्रदेश के कर्ताधर्ताओं की स्वीकृति से खर्च हो चुका है। मतलब समझें तो शहर में सड़कें बन चुकी है और बनकर फिर क्षतिग्रस्त हो चुकी है !! जबकि, डाक बंगले के इर्द गिर्द के हालात ही शहर का कष्ट झलका देते हैं। बहुत सी जगहों पर यातायात व्यवस्था के लिए हरी पीली रोशनियों पर न जाने कितनी बार मशक्कत हो चुकी है लेकिन कहा यह जाता है कि हमारे शहर में वहां चल सकने वाला चालक इंटरनेशनल ड्राइविंग लाइसेंस पाने का पात्र है। कह नहीं सकते की आला अधिकारियों को यह जानकारी है या नहीं की विरोध प्रदर्शन स्थल यानी कलेक्ट्रेट के ठीक सामने शार्दुल सिंह सर्किल की ओर से आने और गंगा थिएटर की ओर से उस ओर जाने के लिए मोड़ वाला संकरा रास्ता लोगों के लिए कितनी परेशानी भरा है। गनीमत है कि सड़क का वह हिस्सा अधिकारियों की आवाजाही के कारण गड्ढों से मुक्त है।  आज किसी भी सड़क को सीधी-सपाट नहीं बताया जा सकता।  पब्लिक पार्क की सुंदरता को ग्रहण लग गया। सूरसागर मुंह चिढ़ाता दिखता है।  शहर की सफाई व्यवस्था पर करोड़ों रुपया खर्च होता है मगर ताज्जुब यह भी है की कुछ संस्थाएं प्रति सप्ताह स्वच्छता अभियान चला कर और कुछ लोग श्रमदान करके शहर के अलग-अलग स्थलों पर सफाई करते रहते हैं। ऐसी हालत में विकास के सोपान तय करते शहर की चमक-दमक दब जाती है और सार्वजनिक स्थलों पर सहजता से दिखाई पड़ने वाली खामियां शहर के हाईजैक हो जाने की ओर संकेत कर देती हैं। ऐसी समस्याओं के बारे में आम आदमी तो चर्चा करके रह जाता है लेकिन जिम्मेदार वर्ग चर्चा कर समाधान के लिए उपायों-सुझावों को क्रियान्वित करने से बचता दिखता है। जबकि सार्वजनिक समस्याओं का समाधान सामूहिक प्रयासों से ही संभव है। इसके निराकरण के लिए आम आदमी के साथ-साथ जिम्मेदारी निर्वहन करने वाले सरकारी व निजी क्षेत्र के तमाम लोगों की भागीदारी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी की तथाकथित जनप्रतिनिधियों की सकारात्मकता जरूरी है। 






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