खबरों में बीकानेर

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— Mohan Thanvi / खबरों में बीकानेर 🎤 🌐 (@Mohanthanvi) February 23, 2025
हेम शर्मा
बीकानेर संभाग मुख्यालय पर पांच विश्वविद्यालय है। राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान वि.वि., कृषि वि.वि., तकनीकी वि.वि., महाराजा गंगा सिंह वि.वि. और ग्लोबल यूनिर्वसिटी इन सबसे हर वर्ष हजारों विद्यार्थी शिक्षित होकर निकलते है। हर वर्ष दीक्षांत समारोह भी होते है। दीक्षांत समारोह का अभिप्राय विद्याध्ययन के बाद विद्यार्थी को उस विद्या के समाज, राष्ट्र और मानवता के कल्याण में सदुपयोग की शपथ के साथ समाज में भेजा जाना है। प्राचीन गुरुकुल पध्दति में गुरू शिक्षा के बाद विद्यार्थी की परीक्षा लेकर दीक्षा देते थे। विद्यार्थी को राष्ट्र की सेवा का आव्हान करते थे। आज दीक्षांत समारोह इस मूल भावना के कितना नजदीक है ? क्या विद्यार्थियों में दीक्षित होने की भावना का संचार हो पा रहा है? दीक्षा समारोह तो भव्य किया जाता है। कुलाधिपति महामहिम राज्यपाल आते हैं। कुलपति अतिथि भी वुलाते हैं। व्यवस्थाएं चाक चौबंद होती है। महामहिम और दीक्षांत समीरोह में आए अतिथियों पर पूरा दीक्षांत समारोह केन्द्रित रहता है। विद्यार्थी केवल डिग्री लेने की औपचारिकता का हिस्सा रहते हैं। असल में दीक्षांत समारोह अपने मूल अभिप्राय से इतर दूसरे मुद्दों पर केन्द्रित हो गया है। ये दूसरा ध्येय समाज और व्यवस्था के समाने है।
कुलपित इस मंच से अपने कार्यकाल की उपलब्धियां बताते हैं। इस मंच का उपयोग प्रशासनिक और राजनीतिक रिलेशन को बनाने, अप्रत्यक्ष रूप से खुद को स्थापित करने में करते हैं। दीक्षांत समारोह में विद्या और विद्यार्थी की बात कितनी होती है रिकार्ड उठाकर देख लीजिए। विद्यार्थियों की संख्या अधिक होने से कुछ चुनिंदा विद्यार्थियों को डिग्री दी जाती है। दीक्षांत समारोह का मूल ध्येय का लोप होता जा रहा है। इस मंच से आयोजक इतर उद्देश्यों को पूर्ति में लगे हैं जो समाज से छिपा नहीं है। बीकानेर के एक वि.वि. के दीक्षांत समारोह में कुलाधपति का तो भाव भीना स्वागत किया ही उनके ओ.एस.डी और सार्जेंट का भी उतनी ही मुश्तेदी से मंच से स्वागत किया गया। पुस्तकों का विमोचन, अतिथियों का व्यक्तित्व गान और मेहमान नवाजी में विद्यार्थी और विद्याध्ययन के बाद दीक्षा का महत्व गौण ही रहता है। जिस व्यवस्था में कुलपतियों की नियुक्तियों पर सवाल उठते रहे हैं। विधानसभा तक में कुलपतियों की नियुक्ति मुद्दा बना है। वहां कोई कैसे उम्मीद कर सकता है कि दीक्षांत समारोह की मूल भावना का ध्यान रखा जा सके। वहां तो दीक्षांत समारोह के पूरे मंच को भुनाने के मैनेजमेंट का ही खेला होगा। कुलाधिपति और कुलपति विचार कर लें कि ये दीक्षांत समारोह का आडम्बर देश और भावी पीढ़ी का क्या दिशा दे रहा है!
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