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राजूवास को बायोगैस, जैव ईंधन और जैव-उर्वरक जैसे गाय-आधारित पाठ्यक्रम का प्रस्ताव






- राजूवास को बायोगैस, जैव ईंधन और जैव-उर्वरक जैसे गाय-आधारित पाठ्यक्रम का प्रस्ताव 


*खबरों में बीकानेर*




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राजूवास को बायोगैस, जैव ईंधन और जैव-उर्वरक जैसे गाय-आधारित पाठ्यक्रम का प्रस्ताव 

 हेम शर्मा

       राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपित आचार्य मनोज दीक्षित के समक्ष राजस्थान में बायोगैस, जैव ईंधन और जैव-उर्वरक जैसे गाय-आधारित विषयों पर अध्ययन के पाठ्यक्रम का प्रस्ताव रखा।

 कुलपित से गो आधारित उत्पादों का उपयोग करके कृषि प्रथाओं, पोषण सुरक्षा और ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाने के लिए सैद्धांतिक और व्यावहारिक ज्ञान पर अध्ययन संकाय शुरू करने का प्रस्ताव जीसीसीआई वाइस प्रेसीडेंट ने औपचिरक बातचीत में दिया। राजस्थान में वेटरनरी विश्व विद्यालय ने पहले से ही गोबर से खाद और गो मूत्र से कीट नियंत्रक बनाने का प्रशिक्षण पाठ्यक्रम चालू शैक्षिणक सत्र से प्रस्तावित है। 

इन पाठ्यक्रमों से पशुपालन, डेयरी फार्मिंग, गोबर, गोमूत्र और पंचगव्य उत्पादों और अन्य नवीन क्षेत्रों सहित गौ आधारित अर्थव्यवस्था के माध्यम से ग्रामीण समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार से स्टार्ट-अप के रूप में युवाओं के लिए नए रोजगार पैदा होंगे। गौ आधारित उद्योगों में अनुसंधान और कैरियर विकास युवाओं और समाज को गायों के पर्यावरणीय, आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व के बारे में जागरूक बढ़ेगी। राजस्थान में गो उद्यमिता के क्षेत्र में यह नवाचार होगा। 


 भारत 2023-2024 में 198.4 एमएमटी दूध उत्पादन के साथ दूध उत्पादन में वैश्विक स्तर पर अग्रिम पंक्ति में है। देश गौ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बनाए रखने में विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं । 

21 अक्टूबर, 2024 को सौराष्ट्र विश्वविद्यालय, राजकोट में जीसीसीआई और सौराष्ट्र विश्वविद्यालय की संयुक्त पहल के तहत गुजरात की विश्वविद्यालयों में "कामधेनु चेयर" स्थापित करने के लिए विश्वविद्यालय के कुलपतियों के साथ एक संगोष्ठी का आयोजन किया है। अगला आयोजन राजस्थान में होगा। कामधेनु चेयर देशी गायों के वैज्ञानिक संरक्षण और विकास को बढ़ावा देगी, साथ ही छात्रों को गौ आधारित आजीविका के आर्थिक, पर्यावरणीय और आध्यात्मिक महत्व के बारे में भी जागरूक करेगी।  


राजस्थान में भी जीसीसीआई और राजस्थान गो सेवा परिषद के संयुक्त तत्वावधान में कामधेनु चेयर स्थापित करके इसके माध्यम से गौ आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए युवाओं के लिए नए स्टार्ट-अप और रोजगार बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। 


   राजकोट,: ग्लोबल कन्फेडरेशन ऑफ काउ सेंट्रिक इंस्टीट्यूशंस (जीसीसीआई) और सौराष्ट्र विश्वविद्यालय की और से गुजरात के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में “कामधेनु चेयर” स्थापित करने के लिए एक विशेष संगोष्ठी 21 अक्टूबर 2024 (सोमवार) को सौराष्ट्र विश्वविद्यालय केम्पस , राजकोट में आयोजित की है । 

इसका उद्देश्य विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के हिस्से के रूप में कामधेनु पीठों को शामिल करने को प्रोत्साहित करना है । अगले चरण में यह कार्यक्रम जीसीसीआई वाइस प्रसीडेट की ओर से राजस्थान में प्रस्तावित किया गया है। 


   जीसीसीआई के संस्थापक डॉ. वल्लभभाई कथीरिया ने कामधेनु चेयर के निर्माण पर चर्चा करते हुए कहा कि कामधेनु चेयर छात्रों को कृषि, स्वास्थ्य और पर्यावरण में स्वदेशी गौ प्रजनन के महत्व के बारे में शिक्षित और प्रेरित करेगी।

 यह भारतीय गौवंश, उनके उत्पादों और गौ-आधारित कृषि में उनकी भूमिका पर उन्नत शोध करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करेगा, वैज्ञानिक गौ-पालन के माध्यम से उत्पादकता बढ़ाने के लिए ग्रामीण आबादी को तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान करने, नई उद्यमिता और रोजगार के अवसर पैदा करने में मदद करेगा । गरीबी उन्मूलन और रोजगार सर्जन में योगदान देकर गौ आधारित अर्थव्यवस्था में व्यवसाय के अवसर तलाशने के लिए महिला और युवा उद्यमियों को सशक्त बनाना है ।


   कामधेनु चेयर गौ को केन्द्र मे रखके माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्रभाई मोदी के मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत, हरित भारत, स्वस्थ भारत, स्टार्टअप इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसी राष्ट्रीय पहलों को संरेखित करेगी और पर्यावरण-विकास को बढ़ावा देगी। इसके अतिरिक्त, NEP दिशानिर्देशों के अनुसार कामधेनु चेयर के तहत प्रासंगिक कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए छात्रों को क्रेडिट अंकों पर विचार किया जाएगा।


  कामधेनु चेयर पहल के राष्ट्रीय महत्व के बारे में डॉ. कथीरिया का कहना है कि डेयरी के साथ-साथ गोमूत्र और गोबर आधारित उद्योगों में भारत का नेतृत्व स्वदेशी गायों के आर्थिक महत्व को प्रतिबिंबित करेगा। 

 कामधेनु चेयर गौ संरक्षण और ग्रामीण आजीविका को बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक रूप से संचालित कार्यक्रमों की आवश्यकता पर ध्यान देगी। यह संबंधित सरकारी विभागों के साथ साझेदारी में स्वदेशी गाय की नस्लों के संरक्षण, संवर्धन और उपयोग के लिए एक एकीकृत पारिस्थितिकी तंत्र भी बनाएगा।

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