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आज फिर 5 सवाल कुलबुला रहे उंगली के निशान पर... नंबर 1 सब कुछ तो तुम कह देते हो कुर्सियों पर बैठे हुए लोगों हमें तुम...
Posted by Mohan Thanvi on Wednesday 1 May 2024
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देव ऋषि नारद के बहाने ही सही पत्रकारिता "एथिक्स" के दीप जले - हेम शर्मा
देश में विश्व संवाद केंद्र ने देव ऋषि नारद की जयंती पर भारतीय लोकतंत्र में पत्रकारिता के गिरते स्तर (एथिक्स) की तरफ देश के पत्रकारों, पत्रकारिता संस्थानों और और सरकार का ध्यान आकर्षित किया है। नारद ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे। वे देवता, दानव और मानवों के बीच समान रूप से लोकप्रिय थे। लोक कल्याण की भावना से वे तीनों लोक में भ्रमण करते रहते थे। कहीं भी दो घड़ी से ज्यादा रुकते नहीं थे। वे घटनाओं का यथार्थ चित्रण करते थे। इसलिए आज उनको विश्व का आदि पत्रकार कहा जाने लगा है। उनके कृतित्व की आज की पत्रकारिता और पत्रकारों को लोक कल्याण की सीख लेने की भावना से नारद जयंती मनाई जा रही है। एक प्रतिकात्मक कथा है कि नारद जी आकाश मार्ग से तीर्थ यात्रा पर जा रहे थे। बीच में मेरु पर्वत आया। नारद जी ने मेरु पर्वत से उन्हें जाने का रास्ता देने का आग्रह किया। मेरु पर्वत ने मना कर दिया। साथ ही नारद जी से कहा कि वे मेरी परिक्रमा करके तीर्थ यात्रा पर जाए। नारद जी ने विनम्रता से आग्रह किया कि वे वरुण देवता से कहला देते हैं। इस पर मेरु पर्वत नहीं माना तो नारद जी वरुण देवता के पास गए और मेरु पर्वत के अहंकार की बात बताई। वरुण देवता मेरु पर्वत के अहंकार से क्रुद्ध होकर उस पर आक्रमण कर दिया। अंतत: मेरु पर्वत के शिखर को वरुण देवता ने तूफान से गिरा दिया। यह सिंबॉलिक कथा सत्ता के "अहंकार को पत्रकारिता धर्म से मिटाना है"। पत्रकार सरकारों, लोकशाही, नौकरशाही के अहंकार, मनमानी, अन्याय पर निष्पक्ष, निर्भीक और न्याय की भूमिका में रहता है। लोककल्याण की आवाज बनता है। सबका विश्वास जीतता है। रही आज के जमाने की बात पत्रकारिता एथिक्स खोती जा रही है। पत्रकार लोक कल्याण की जिम्मेदारी पूरी तरह से नहीं निभा पा रहे हैं। राजनेता और राजनीति के पिच्छलगु बन रहे है। पत्रकारिता बाजार का बिकाऊ कर्म बनता जा रहा है। लोक कल्याण और जनहित के मानक पीछे छूटते जा रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थितियां धीरे धीरे बढ़ती ही जा रही है। बीकानेर में रिद्धि सिद्धि भवन के सभागार में विश्व संवाद कार्यक्रम के तहत वरिष्ठ पत्रकारों ने पत्रकारिता के गिरते स्तर पर चिंता जताई। वरिष्ठ पत्रकार संतोष जैन, डीपीईआर सेवा निवृत संयुक्त निदेशक दिनेश सक्सेना, पाथेय गण के सह संपादक श्याम सिंह, विश्व संवाद केंद्र के सुरेंद्र राठी ने वर्तमान पत्रकारिता के समग्र आयामों का अपने अपने नजरिए से विश्लेषण किया। विसंगतियों और विकृतियों को समाज के सहयोग से दूर करने और चुनौतियों को स्वीकार करने की सलाह दी। संवाद कार्यक्रम में सभी ने एक स्वर में कहा कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में अगर पत्रकारिता कमजोर होती है तो समझ लेना चाहिए लोकतंत्र कमजोर हो रहा है। नारद जयंती को पत्रकारिता के एथिक्स का दीपक मानकर सुधार का संकल्प लेना चाहिए। अन्यथा पत्रकारिता के पतन का लोकतंत्र को ही नहीं बल्कि पूरे मानव समाज को परिणाम भुगतना पड़ेगा। सत्य पर आधारित, निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता मजबूत और स्वच्छ लोकतंत्र की नींव है। नारद जयंती पर ऐसा दीप जलाए।
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