थारे पाण है जीवण रा रंग सवाया म्हारी धरती-रंगा काव्य रंगत-शब्द संगत का आगाज धरती पर केन्द्रित काव्य धारा से हुआ




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आज फिर 5 सवाल कुलबुला रहे उंगली के निशान पर... नंबर 1 सब कुछ तो तुम कह देते हो कुर्सियों पर बैठे हुए लोगों हमें तुम...

Posted by Mohan Thanvi on Wednesday 1 May 2024

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थारे पाण है जीवण रा रंग सवाया म्हारी धरती-रंगा

काव्य रंगत-शब्द संगत का आगाज धरती पर केन्द्रित काव्य धारा से हुआ

बीकानेर 27 मई, 2024
 बीकानेर की समृद्ध काव्य परंपरा में पहली बार नवाचार के तौर पर प्रकृति पर केन्द्रित पूरे वर्ष भर मासिक श्रृंखला के रूप में ‘काव्य रंगत-शब्द संगत’ आयोजन का आगाज लक्ष्मीनारायण रंगा सृजन सदन नत्थूसर गेट के बाहर काव्य की विभिन्न उपधाराओं की रंग छटा और काव्य रस से सराबोर हिन्दी, राजस्थानी और उर्दू की कविता-शायरी से भव्य काव्य आयोजन का आगाज हुआ।
 कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार एवं राष्ट्रीय केन्द्रीय साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के मुख्य एवं अनुवाद पुरस्कार से समादृत कमल रंगा ने कहा कि प्रज्ञालय संस्थान एवं राजस्थानी युवा लेखक संघ द्वारा अपनी साहित्यिक एवं सृजनात्मक आयोजनों की समृद्ध परंपरा में बीकानेर की काव्य धारा को नए तेवर देने के उपक्रम की 
नव पहल की गई है।
 कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ शायर एवं उर्दू अकादमी के पूर्व सदस्य ज़ाकिर अदीब ने कहा कि ऐसे आयोजन से निश्चित तौर पर बीकानेर की 21वीं सदी की काव्य-धारा को नए आयाम तो मिलेंगे ही, साथ ही 21वीं सदी की बीकानेर की कविता अपना एक अलग मुकाम स्थापित करेगी।
 काव्य रंगत में अपनी धरती पर केन्द्रित नवीन गजल को पेश करते हुए शायर ज़ाकिर अदीब ने पस्ती नसीब है तो/कोई गम नहीं इसे..... धरती के कई रंगों को सामने रखा। इसी कड़ी में वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती इन्द्रा व्यास ने अपनी राजस्थानी कविता धरती की सस्वर प्रस्तुति देते हुए-कई रूप है इण धरती रा/नद-नाळा आद..... इसी कड़ी में वरिष्ठ कवयित्री डॉ. कृष्णा आचार्य ने अपनी धरती पर नव काव्य धारा प्रस्तुत करते हुए धरती की पीड़ा को स्वर दिए तो वहीं कवि जुगल पुरोहित ने अपने राजस्थानी गीत धरती म्हारी माता है.... की सस्वर प्रस्तुति दी।
 परवान चढ़ी काव्य रंगत में राजस्थानी की मठोठ का रंग भरते हुए कवि कमल रंगा ने थारे पाण ही है जीवण रा/सेंग रंग सवाया म्हारी धरती!...... के माध्यम से मानवीय जीवन दर्शन को उकेरा। कवि संजय आचार्य ‘वरूण’ ने अपनी नवीनत्तम गज़ल के शेर प्रस्तुत कर वातावरण को गज़लमय कर दिया। कवि कैलाश टाक ने धरती गोल है/जमीन अनमोल है के माध्यम से धरती के महत्व को रेखांकित किया, तो धरती के प्रति अपना नमन-समर्पण व्यक्त करते हुए युवा कवि गिरिराज पारीक ने धरती मां और पंचतत्वों के महत्व को रखा।
 युवा कवि गंगाबिशन ने धरती की महिमा को पौराणिक संदर्भ में व्याख्याईत करते हुए नई कविता नए रंग में रखी। कवि संजय सांखला ने विज्ञान की शब्दावली के नव प्रयोग के साथ नदियां समुद्र में मिलते ही/डेल्टा पहले बनाती पेश कर धरती से जुड़ी प्रकृति को स्वर दिए। कवि अब्दुल शकूर सिसोदिया ने धरती कविता के माध्यम से अपनी बात कही। तो कवि ऋषि कुमार तंवर ने छंदमय लयात्मकता के साथ अपनी नई कविता अनल कुंड सम धरा जले/बिन श्रम तन से नीर बहे.... पेश की। इसी कड़ी में हरिकिशन व्यास ने धरा थारौ ऊंचौ मुकाम.... गीत पेश किया। 
 प्रारंभ में सभी का स्वागत वरिष्ठ इतिहासविद् फारूक चौहान ने किया। वहीं कार्यक्रम के महत्व को कार्यक्रम समन्वयक संजय सांखला ने रेखांकित किया। कार्यक्रम प्रभारी गिरिराज पारीक ने बताया कि आगामी जून माह की यह काव्य श्रृंखला आभौ, आकाश और आसमान पर केन्द्रित कविता को लेकर माह के अन्तिम सप्ताह में होगी।
 ‘काव्य रंगत-शब्द संगत’ के काव्य रंग से भरे आगाज के साक्षी रहे- डॉ. फारूक चौहान, हरिनारायण आचार्य, राजेश रंगा, अशोक शर्मा, नवनीत व्यास, घनश्याम ओझा, पुनीत रंगा, आशीष रंगा, वासु प्रजापत, रामनिवास, बृजगोपाल पुरोहित सहित कई काव्य रसिक थे।
 कार्यक्रम का काव्य रस के साथ सफल संचालन कवि संजय आचार्य ‘वरूण’ ने किया वहीं सभी का आभार वरिष्ठ शिक्षाविद् भवानी सिंह ने ज्ञापित किया।

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