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जीवित है माल्हा : बीकानेर में गूंजता है अभी भी माल्हा का डंका










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*खबरों में बीकानेर*



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जीवित है माल्हा : बीकानेर में गूंजता है अभी भी माल्हा का डंका
अपने वजन से ज्यादा भारी पत्थर के माल्हा उठाए

बीकानेर 

अखाड़ों से लगभग विलुप्त होने के कगार पर आ पहुंचे देसी पारंपरिक खेल माल्हा को बीकानेर में जीवित रखे जाने के भरसक प्रयास कामयाब होते जा रहे हैं। दरअसल आधुनिकता के रंग में रंग रहे समाज की विभिन्न गतिविधियों में पड़ रहा पाश्चात्य प्रभाव खेलों की दुनिया पर भी गहराता नजर आता है। ऐसे में जिम संस्कृति ने पारंपरिक अखाड़ों को प्रभावित किया है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन भारतीय संस्कृति और पारंपरिक खेलों से लगाव रखने वाले लोगों के प्रयास ही हैं जो हमारी खेल परंपराओं को सतत जीवंत बने हुए हैं।

 ऐसे ही प्रयासों के तहत यहां अजमीढ महाराज की जयंती पर पहलवानों ने  पत्थर के माल्हा उठाकर प्रदर्शन कर इस देसी पारंपरिक खेल की महत्ता को एक बार फिर से पहलवानों की दुनिया तक पहुंचाया है। 

यहां मेढ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के पूज्य पितृ पुरुष महाराज अजमीढ जी की दो दिवसीय जयंती समारोह के समापन पर  पहलवानों ने एक हाथ से पत्थर के माल्है उठाए।

शक्ति प्रदर्शन जस्सुसर गेट के बाहर स्थित माहेश्वरी कॉलोनी के आगे,पूगल फांटा बस स्टैंड के पास हुआ। 

यह शक्ति प्रदर्शन स्वर्णकार समाज के पहलवान महावीर कुमार सहदेव की टीम के द्वारा पत्थर के चौकी-नुमा बाट जैसी आकृति के माल्हों को उठाकर  किया गया। 

अजमीढ जी महाराज की तस्वीर के समक्ष दीप धूप एवं पुष्प अर्पित कर शक्ति प्रदर्शन का आगाज हुआ। 

 पहलवान महावीर कुमार सहदेव की टीम के बीकानेर चैंपियन रहे जमाल घोसी ने कई खिलाड़ियों से मुकाबला जीतते हुए 55 किलो अपने भार वर्ग में 65 किलो का माल्हा उठाकर श्रेष्ठ प्रदर्शन किया। वहीं टीम के कई और पहलवानों ने अपने-अपने भार वर्ग के अनुसार माल्हो को उठाकर विलुप्त हो रहे इस खेल की महत्ता प्रदर्शित की। 


अखिल भारतीय माल्हा भारोत्तोलन संघ के प्रदेशाध्यक्ष पहलवान महावीर कुमार सहदेव ने बताया कि दो दशक से महाराज श्री की जयंती पर देसी व्यायाम के अंतर्गत आने वाले खेलों का प्रदर्शन  किया जाता है। 

 आयोजन के दूसरे दिन  पहलवान महेंद्र सिंह चौहान एवं नेरसा चांडक को श्रद्धांजलि दी गई। 

 
अजमीढ जयंती समारोह के प्रवक्ता कैलाश सोनी ने शक्ति प्रदर्शन के देसी पारंपारिक आयोजन को स्वर्णकार समाज के लिए गर्व की बात बताया। कहा कि  यह खेल आज जीवित है और पूरे राजस्थान में प्रचलित भी हो गया है।

सर्व समाज के विशिष्ट व्यक्ति इस कार्यक्रम में उपस्थित रहे। 

 

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