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डॉ अम्बेडकर की 132 वीं जयंती की पूर्व संध्या पर सामाजिक समरसता मंच द्वारा ''समरसता समागम'' कार्यक्रम हुआ
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डॉ अम्बेडकर की 132 वीं जयंती की पूर्व संध्या पर सामाजिक समरसता मंच द्वारा ''समरसता समागम'' कार्यक्रम हुआ
स्थानीय धरणीधर मैदान में सामाजिक समरसता मंच द्वारा समरसता समागम कार्यक्रम में अध्यक्षता मोहन लाल सिंगल और मुख्यवक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्रीय प्रचारक निम्बाराम रहे। मंच पर इनके साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग संघचालक टेकचंद बरड़िया रहे।
आज के कार्यक्रम में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री सिंघल ने कहा कि सविधान गीता रामायण की तरह सभी के घर मे होनी चाहिये, जिससे आने वाली पीढ़ी उनके पद चिन्हों पर चलना सीखे।
वहीं मुख्यवक्ता के रूप में निम्बाराम जी ने कहा कि वैसे तो देश, समाज और विभिन्न वर्ग अपने अपने तरीके से कार्यक्रम करते है। जिनमे बदलाव गत 8 से 10 वर्षों में विशेष रुप से आया है। फिर भी ऐसे कार्यक्रमों की संख्या बढ़ानी चाहिए।
उन्होंने अपने उदबोधन में बाबा साहेब के गुरु कृष्णा जी साथ साथ अम्बेडकर जी जीवनी, उनके द्वारा किये गए कार्यों और जीवन संघर्षों पर विशेष जानकारी दी। बाबा साहेब ने कष्ट सहन कर किस प्रकार शिक्षा प्राप्त की और उन्होंने देश समाज को सूत्र दिया कि सभी को शोध करके बोलना चाहिये। वे एक श्रेष्ठ अर्थशास्त्री थे, समाज वैज्ञानिक और देश के जानेमाने विधिवेत्ता थे, एक पत्रकार, लेखक थे।
उन्होंने भगवान बुद्ध को आदर्श माना था वे हिन्दूविरोधी नही थे, वे पाखंड़ के विरोधी थे और कथनी करनी में अंतर का विरोध किया। उन्होंने जहां सावरकर जी के अम्रत वचनों का जिक्र किया था। उन्होंने बुद्ध, कबीर, महात्मा फुले को अपना आदर्श माना।
जब बाबा साहेब 1938 में पहली बार संघ के शिविर में गए तो उनको पता चला कि संघ में कोई नही पूछता की कौन किस जाति का है। जिसको उन्होंने सराहा। कार्यक्रम के अंत मे सभी उपस्थित प्रबुद्धजन का आभार धन्यवाद उमेश व्यास ने दिया।
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