Type Here to Get Search Results !

डिजिटल युग में आपसी रिश्ते केवल दिखावटी रह गए है - राजाराम स्वर्णकार




--


...






औरों से हटकर
सबसे मिलकर

Home / Bikaner / Latest / Rajasthan / Events / Information

© खबरों में बीकानेर 

https://bahubhashi.blogspot.com
https://bikanerdailynews.com
®भारत सरकार UDAYAM REGISTRATION NUMBER RJ-08-0035999

*खबरों में...*🌐







🖍️

-




--



डिजिटल युग में आपसी रिश्ते केवल दिखावटी रह गए है - राजाराम स्वर्णकार

बदलते रिश्ते पुस्तक पर चर्चा

         अजित फाउण्डेशन सभागार में कथाकार पूर्णिमा मित्रा के कहानी संग्रह ‘बदलते रिश्ते’ पर पुस्तक चर्चा आयोजित की गई। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कवि कथाकार राजाराम स्वर्णकार ने अपने उद्बोधन में कहा कि संग्रह की कहानियां पाठकों को पढने पर मजबूर करती है। डिजिटल युग में आपसी रिश्ते केवल दिखावटी रह गए है। इस विषय वस्तु को लेखिका ने अपनी कहानियों के माध्यम से बखूबी उजागर किया है।
         समीक्षक कहानीकार ज्योति वधवा रंजना ने अपनी समीक्षा में कहा कि यह कहानी संग्रह लेखक और पाठक के बीच गहरा संबंध स्थापित करने में सक्षम है। कहानियां कहानीकार के अन्तर्मन की समीक्षा होती है। जिसको वह अपने शब्दों में कथ्य और शिल्प के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास करती है। उनका मानना है कि पूर्णिमा मित्रा का सृजन ‘‘योग्यता अंधेरे में पनपती है’’ कथन का जीता जागता उदाहरण है।
        समीक्षक सुश्री कपिला पालीवाल ने कहा कि बदलते रिश्ते कहानी संग्रह में सामाजिक कुरितियों और दकयानुशी सोच पर चोट की है। लेखिका ने समय के साथ रिश्तों में आने वाले बदलाव अपनी कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत किया है।
पुस्तक की लेखिका सुश्री पूर्णिमा मित्रा ने अपनी सृजन यात्रा को साझा करते हुए बताया कि मैं अपने आस-पास के परिवेश में जो कुछ घटित होता है उनकी अभिव्यक्ति कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास करती है।
         कार्यक्रम संयोजक व्यंग्यकार सम्पांदक डॉ. अजय जोशी ने कहा कि पूर्णिमा मित्रा की अधिकांश कहानियों का परिवेश सामाजिक ताना-बाना है, जिसे वह अपनी रचनाओं के माध्यम से संप्रेशित करने में सफल रही है।
         शिवकुमार आर्य ने पुस्तक पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि साहित्य की चाहे कोई भी विधा हो उसमें अनुगूंज होनी चाहिए ताकि जितनी बार उस रचना को पढा जाए वह रचना एक नवीनता और ताजगी लिए हुए हो। डॉ. पंकज जोशी ने पूर्णिमा के कहानी संकलन को परिपूर्ण सामाजिक परिपेक्ष्य बताया।
        संस्था कार्यक्रम समन्वयक संजय श्रीमाली ने पुस्तक चर्चा कार्यक्रम के बारे में विस्तार से बताया तथा कार्यक्रम संचालन किया। डॉ. फारूक चौहान ने पुस्तक के प्रकाशन और तकनीकी पक्षों पर अपने विचार व्यक्त किए। इनके अतिरिक्त बाबूलाल छंगाणी, प्रेमनारायण व्यास, संजय हर्ष, डॉ.पंकज जोशी, बी.एल. नवीन ने पुस्तक के विभिन्न आयामों पर अपने समीक्षात्मक विचार प्रस्तुत किए।



--





--


Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

Hollywood Movies