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जो किसी का बुरा नहीं चाहते, उन्हें बुरे लोग भी सताते नहीं - महंत क्षमाराम जी


खबरों में बीकानेर






🆔जो किसी का बुरा नहीं चाहते, उन्हें बुरे लोग भी सताते नहीं - महंत क्षमाराम जी













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संसार मेरे मैं है और संसार में मैं हूं
जो किसी का बुरा नहीं चाहते, उन्हें बुरे लोग भी सताते नहीं - महंत क्षमाराम जी
बीकानेर। भागवत उसी को समझ में आने वाली है, जो मैं और मेरी भावना से बाहर निकलता है। बड़े- बड़े ऋषि मुनि और राजाओं ने इसके लिए क्या-क्या नहीं छोड़ा और फिर भगवान के प्रेम में चले गए। श्री श्री 1008 सींथल पीठाधीश्वर महंत क्षमाराम जी महाराज ने बुधवार को गोपेश्वर- भूतेश्वर महादेव मंदिर में चल रही श्राद्ध पक्षीय श्रीमद् भागवत कथा का वाचन करते हुए यह बात कही। महंत क्षमाराम जी महाराज ने कहा कि जो किसी का बुरा नहीं चाहते, उन्हें बुरे लोग भी सताते नहीं हैं। संसार में बुरा से बुरा आदमी होता है लेकिन  वह संत के लिए बुरा नहीं होता है। नारदजी से भगवान ने कहा संसार की माया से निकलने के लिए भगवान की लीलाएं सुनाओ। आखिरकार परमेश्वर की भक्ति में लोगों की भावना बहे, तेरे मन में यह भावना रहनी चाहिए कि लोगों में भगवान की भक्ति कैसे बढ़े।
महंत क्षमाराम जी महाराज ने जीवन का सद्ज्ञान बताते हुए कहा कि अच्छाई के नाम पर बुराई आती है, उसकी बुराई निकलना मुश्किल है। अगर मान- बड़ाई का क्षेत्र मिल गया तो इससे निकलना बहुत ही मुश्किल है। आज की कथा में जीव का संसार के साथ संबंध कैसे हो गया..?, किसकी गलती से हो गया..?,आत्मा का शरीर से कैसे संबंध बनता है..?, आत्मा का बंधन क्या है..?,मोक्ष क्या है..?, इन सहित अनेक ऐसे प्रश्न जो सुखदेव जी महाराज से पूछे गए, उनके बारे में महंत जी ने विस्तारपूर्वक बताया। महाराज जी ने कहा कि भक्तों को जो भागवत यहां सुनाई जा रही है वे वर्तमान में तीन भागवत का एक साथ आनन्द ले रहे हैं। कथा के पांचवे दिन उन्होंने ब्रम्हाजी के संसार उत्पति की मन में इच्छा होने, भगवान की आकाशवाणी से उन्हें तपस्या करने के लिए कहना, ब्रम्हा जी को अपने अंदर बैकुण्ठ के दर्शन कराने, लक्ष्मीजी का दर्शन ब्रम्हा जी को होने सहित ब्रम्हा जी को भगवान के चार श्लोक जिनमें एक में स्वयं, दूसरी माया, तीसरी जीव और चौथी जगत से संबंधित बातें बताई गई। महंत जी ने बताया कि भगवान कहते हैं कि मैं संसार में हूं लेकिन अव्यक्त रूप से हूं। संसार मेरे मैं है और संसार में मैं हूं। महात्मा कहते हैं कि संसार है ही नहीं और हम कहते हैं कि भगवान है ही नहीं, हमारी और संतो की दृष्टि में यही अंतर है। 








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