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यह जन्म भोगों के लिए नहीं भक्ति में रमण करने के लिए मिला है- आचार्य विजयराज


खबरों में बीकानेर


यह जन्म भोगों के लिए नहीं भक्ति में रमण करने के लिए मिला है- आचार्य विजयराज जी म.सा.
अराधना दिवस पर किया विजय गुरु चालीसा का वाचन
बीकानेर। भक्ति छोटा सा, ढाई अक्षरों का  यह शब्द  बहुत बड़ी शक्ति रखता है। भावना के बिना भक्ति नहीं आती और भक्ति में रमण करने वाला जीव साता वेदनीय कर्म का बंध करता है। यह सद्विचार श्रीशान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने शुक्रवार को सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में नित्य प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। 

आचार्य श्री ने साता वेदनीय कर्म के नौंवे बोल भक्ति में रमण करता जीव विषय पर अपना व्याख्यान दे रहे थे। महाराज साहब ने बताया कि  भक्ति के तीन रूप हैं। पहला सात्विक, दूसरा राजसिक और तीसरा तामसिक है। जो जीवन में कुछ नहीं चाहता और कुछ चाहता है तो केवल मोक्ष ही चाहता है। वह सात्विक भक्ति है, ऐसी प्रवृति केवल योगियों की होती है।  योगी लोग सात्विक भक्ति चाहते हैं क्योंकि उनमें कोई चाह नहीं होती। लेकिन बंधुओ आप योगी तो नहीं हैं लेकिन लोभी मत बनो, लोभी क्या चाहता है...?, 

संसार का सारा सुख, ऐश्वर्य मुझे मिल जाए। लोभी का पेट बहुत बड़ा होता है। उसका ना तो पेट भरता है और ना ही मन भरता है। इन दोनों की जो बीच की स्थिति है, इसमें हमें कुछ करना चाहिए।  यह जन्म हमें भोगों के लिए नहीं भक्ति में रमण करने के लिए मिला है। इसलिए हमें भक्ति में रमण करना चाहिए और भक्ति के लिए भावना की जरूरत होती है। बगैर भावना के भक्ति नहीं होती। जिनके मन में निश्च्छलता आ जाती है वह  सात्विक भक्ति कर सकता है। फिर उसे भले ही किसी चीज की चाह ना हो, वह भी मिल सकती है।


आचार्य श्री ने फरमाया कि व्यक्ति की तीन मूलभूत आवश्यकताएं हैं। पहली रोटी, दूसरा कपड़ा और तीसरी मकान, यह तीनों बंधुओं सात्विक भक्ति से ही मिल जाती है। बस भक्ति के भाव होने चाहिए।
भक्ति के दो रूप
आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने कहा कि भक्ति के दो रूप हैं। एक सुक्ष्म और दूसरा स्थूल रूप है। स्थूल रूप वह जिसमें आप जाप-तप और ध्यान तो बहुत करते हैँ लेकिन भगवान को जगाने का काम नहीं करते हैं। दूसरा सुक्ष्म रूप है, इसमें व्यक्ति भले ही जप-तप- ध्यान ना करे, लेकिन भगवान की आज्ञाओं का पालन करता है। 

जहां मन में भगवान की आज्ञाओं का पालन नहीं किया जाता है, वहां मन में खोट होती है।
 श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि संघ के आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. के 64 वें जन्मोत्सव पर अष्ट दिवसीय विजय जन्मोत्सव कार्यक्रम के दूसरे दिन शुक्रवार को अराधना दिवस के रूप में मनाया गया। 

इसमें संघ के श्रावक-श्राविकाओं ने दोपहर दो से तीन बजे तक एक साथ सामूहिक विजय गुरु चालीसा का वाचन किया। इसके बाद आचार्य श्री ने सभी को मंगलिक प्रदान की। लोढ़ा ने बताया कि आचार्य श्री के दर्शनार्थ एवं उनके श्रीमुख से जिनवाणी का लाभ लेने नारनोल, पूना,  चैन्नई, सोनीपत से श्रावक-श्राविकाएं पहुंचे। संघ की ओर से नेमीचंद जैन नारनोल वाले, विनोद गर्ग मन्दसौर वाले एवं बीकानेर के कन्हैयालाल भुगड़ी का  मोतियों की माला पहनाकर एवं शॉल ओढ़ाकर स्वागत -सम्मान किया गया। 

औरों से हटकर सबसे मिलकर


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