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संविदा पर चल रहा नगर निगम, अधिकारी नहीं लेते कोई जिम्मेदारी ? एटीपी होने के बावजूद संविदाकर्मी को बनाया डीटीपी


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संविदा पर चल रहा नगर निगम, अधिकारी नहीं लेते कोई जिम्मेदारी ?
एटीपी होने के बावजूद संविदाकर्मी को बनाया डीटीपी ..

बीकानेर, 10 जून 2022 
बीकानेर नगर निगम पिछले काफी समय से सुर्खियों में हैं, एक ओर आयुक्त और महापौर की लड़ाई तो दूसरी ओर काँग्रेस के पार्षदगणों का आपसी गुटबाजी निगम को सुर्खियों में बनाए रखता हैं | इस खींचतान के मध्य निगम से एक ऐसी खबर सामने आई हैं नगर निगम बीकानेर में अधिकारियों और कर्मचारियों के अजीब रवैये के कार्यभार संविदा कर्मी पर आ जाता हैं | वर्तमान में प्रशासन शहरों के संग अभियान भी संविदा कर्मियों के भरोसे ही नजर आ रहा हैं जिसमे मुख्यरूप से उप नगर नियोजक का कार्यभार भी एक संविदाकर्मी को नियमों के विरुद्ध में दे रखा हैं | 

बताया जा रहा हैं एटीपी के पद पर कार्यरत  को पहले डीटीपी का कार्यभार दिया गया था लेकिन उनके कार्यशैली से नाखुश होकर नियमों के विरुद्ध जाकर एक संविदाकर्मी  को डीटीपी का कार्यभार दे दिया |


पट्टा अभियान के तहत हैं अनफिट या ज्यादा होशियार हैं पदासीन.. ? 
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार संविदाकर्मी बिना किसी आदेश से ही डीटीपी का कार्य संपादित कर रहे हैं क्युकी महापौर द्वारा की शिकायत के जवाब में आयुक्त यह तो मान चुके हैं की गलत आँकड़े दे दिए थे, तो अपनी छवि को बचाने के चक्कर में मौखिक आदेश से ही संविदाकर्मी को डीटीपी बना दिया, जबकी उसके बाद हुई कलेक्टर सभागार में बैठक में संविदाकर्मी पीछे बैठे नजर आए और एटीपी आगे बैठे नजर आए, ऐसे में ये मानना की कोई आदेश होगा सिर्फ गलतफहमी प्रतीत होती हैं |

 राज्य सरकार द्वारा प्रशासन शहरों से संग अभियान में नगर निगम की स्थिति किसी से अनजान नहीं हैं, जिसके हजारों मौखिक शिकायते पदासीन  के खिलाफ पूर्व और वर्तमान आयुक्तों को की जा चुकी हैं, जिसके तहत 4 जनवरी 2022 को आयोजित कार्यशाला में उनको फटकार भी पड़ी थी परंतु उसका असर कही दिखाई नहीं दे रहा हैं |

 जिसमे पदासीन द्वारा हर आम आदमी को एक ही जवाब दिया जाता हैं की “ मैंने ठेका नहीं ले रखा हैं पट्टे बनाने का, सरकार तो रोज नए आदेश जारी करेगी, हम क्या आदेश मानते रहे क्या ? ” , उन का ये रवैया काफी असंतोषजनक है जिसके संदर्भ में पहले भी कई पार्षदों द्वारा मुख्यमंत्री से शिकायत कर दी गई थी | क्युकी अभियान शुरू से लेकर आज तक सर्वाधिक पत्रावली डीटीपी रिपोर्ट पर अटकती हैं जिसमे गलत रिपोर्ट या अकारण पत्रावली को रोक ली जाती हैं, जिसमे लगभग एक दर्जन से अधिक आवेदनों के पैसे जमा हूए दो सप्ताह से अधिक बित चुके हैं जबकि उनके द्वारा उन पर कोई कार्यवाही नहीं की गई | साथ ही कार्य न करने चक्कर में मौखिक आदेश से ही संविदाकर्मी को डीटीपी का कार्यभार सौंप दिया जबकि बैठक में खुद भाग लेते हैं | जबकि नगर निगम में पहले से एटीपी के बाद वरिष्ठ प्रारूपकार भी निगम में पोस्टेड हैं तो ऐसे में एक संविदाकर्मी के भरोसे बड़े पद को छोड़ना बेहद चिंता जनक हैं |

“ मैं तो फ्री हो गया, मुझे क्या मतलब वो क्या करे क्या नहीं ” : सोनगरा 
 वाक्या तब का हैं जब एक व्यक्ति द्वारा तरुन सोनगरा से पूछा गया की आपने ये पद क्यों छोड़ा ? क्या वजह हैं जिसके कारण आपने बिना किसी आदेश के अपना चार्ज उनको सौंप दिया ? बैठकों में अभी भी आगे आप बैठते हो ? जिसको आपने चार्ज हैन्डओवर किया हैं उनपर पहले से कई आरोप भी हैं ? तो थोड़ी देर चुप रहे फिर मुसकुराते हुए बोल उठे की “भैया मैं तो फ्री हो गया, मुझे जितना आयुक्त बोलेंगे मैं उतना ही करूंगा, मुझे क्या मतलब वो करे, पट्टा दे या न दे, कोई गलत काम भी करदे या निगम की जमीन बेच दे, मुझे तो कुछ फरक नहीं पड़ता, मैं तो अब फ्री हो गया हूँ, रही बात नए डीटीपी की तो उनके आदेश हैं लेकिन मैं दिखा नहीं सकता”

सनद रहे नगर निगम बीकानेर की वर्तमान स्तिथि के अनुसार को नगर निगम की भूमिशाखा का बेहद गर्त का समय हैं, जिसका पतन खुद अधिकारियों द्वारा किया जा रहा हैं जिसमें अकारण कार्य न करना उनकी सबसे बड़ी समस्या हैं | जिसके दो ही कारण हो सकते हैं पहला भ्रस्टाचार से ग्रसित होना या दूसरा की कोई राजनैतिक दबाव की जनता का कार्य नहीं करना हैं |




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