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बाल दिवस पर विशेष
बीकानेर
किसी जमाने में बच्चों को तख्ती पर ॐ, श्री आदि से लिखना पढ़ना सिखाया जाना शुरू किया जाता था। आज के युग में बड़े-बड़े प्ले स्कूल और अंग्रेजी माध्यम के स्कूल बच्चों की पढ़ाई के लिए पसंद किए जाने लगे हैं। पढ़ाई किसी भी पद्धति से हो, बच्चों का भविष्य संवारती है। और अगर आरंभिक पढ़ाई खेल-खेल में हो तो, बच्चों का आईक्यू बढ़ता है और पढ़ाने वाले को भी अधिक आनंद आता है।
दृश्य एवं श्रव्य माध्यम से ज्ञानार्जन बहुत पुरानी बात है। लेकिन दृश्य एवं श्रव्य को प्रस्तुत करने के माध्यम आधुनिक से अत्याधुनिक होते चले गए हैं। किसी जमाने में बच्चों को एक साथ पार्क चिड़ियाघर और ऐसे ही जगहों पर घुमाने ले जाया जाता था। वहां बच्चे तरह-तरह के पक्षियों की आवाज सुनते। उन्हें देखते। फूल पत्तियों की पहचान करते। खेलते मस्ती करते और सीखते थे। वर्तमान में ग्रामीण परिवेश में ऐसा अभी भी संभव है किंतु नगरों महानगरों में अब यह इतिहास में दर्ज बात हो गई है। ऐसे में नर्सरी क्लासेज, प्ले स्कूल और इसी तरह के स्कूल पसंद किए जाने लगे। जबकि बीते लगभग 2 वर्षों से इसमें भी व्यवधान आ गया। और वह व्यवधान आया कोरोनावायरस की वजह से। कोरोना काल में आरंभिक समय तो कुछ ऐसा था कि लगभग पूरा देश ही लॉकडाउन झेल रहा था। अब बीते कुछ दिनों से स्कूल, कॉलेज में गाइडलाइन के साथ कुछ छूट मिली है। इससे सबसे अधिक व्यस्त दो से 4 साल तक के नन्हे बच्चे हो गए हैं। क्योंकि यही वह बच्चे हैं जो पहली बार नर्सरी या प्ले स्कूल जाने की आवश्यकता में है। कोरोना कॉल में इन बच्चों की शिक्षा विधिवत आरंभ ही न हो सकी। कुछ बच्चों को घरों में जरूर ऐसी गतिविधियों से परिचित करवाया गया। लेकिन वह सिखाना न नियमित था और ना पद्धति के मुताबिक। ऐसे में अब शिक्षण व अन्य प्रतिनिधियों में भाग लेना इन बच्चों को बिल्कुल नई बात लगती है। लेकिन अभिभावक और शिक्षक बच्चों को नई बात से परिचित करवाने और इसके अभ्यस्त बनाने के लिए कृत संकल्पित है। ऐसी गतिविधियां अब तेजी पकड़ती जा रही है। और यह ही इन बच्चों के भविष्य को संवारने वाली आरंभिक प्रक्रिया कही जा सकती है।
- मोहन थानवी
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