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खबरों में बीकानेर 🎤 🌐 इस विधायक ने विधानसभा में नोखा में एडीजे कोर्ट व एमजेएम कोर्ट खोलने एवं बीकानेर में हाइकोर्ट बेंच व प्रशासनिक ट्रिब्यूनल कोर्ट की बैंच खोलने की पुरजोर मांग रखी

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राजस्थान विधानसभा के बजट सत्र 2020 में बुधवार को नोखा विधायक बिहारीलाल बिश्नोई ने राजस्थान  अधिवक्ता कल्याण निधि (संशोधन) विधेयक 2020 की चर्चा में भाग लेते हुवे नोखा में एडीजे कोर्ट व एमजेएम कोर्ट खोलने एवं बीकानेर में हाइकोर्ट बेंच व प्रशासनिक ट्रिब्यूनल कोर्ट की बैंच खोलने की पुरजोर मांग रखी ।
श्री बिश्नोई ने कहा नोखा में वर्ष 1981 में एमजेएम कोर्ट खुला था उसके बाद में एसीजेएम कोर्ट कर दिया गया । नोखा में एडीजे कोर्ट की लंबे समय से मांग की जा रही है लेकिन अभी तक नोखा में एडीजे कोर्ट नहीं खुला है ।  एडीजे कोर्ट के लिए 1000 से अधिक मुकदमें होने आवश्यक है । परंतु वर्तमान में नोखा के बीकानेर में 1215 मुकदमें चल रहे है, जो नोखा में एडीजे कोर्ट खोलने के लिए पर्याप्त है । इसके अलावा नोखा एसीजेएम कोर्ट में 4000 से ज्यादा पत्रावलियां पेंडिंग है जिसके लिए नोखा में एमजेएम कोर्ट की भी आवश्यकता है ।
श्री बिश्नोई ने कहा कि आजादी से पहले बीकानेर में हाइकोर्ट हुआ करता था जो आजादी के बाद जोधपुर चला गया था ।
बीकानेर में हाइकोर्ट बैंच की मांग लंबे समय से की जा रही है । इस मांग को लेकर बीकानेर में सन 2009 में 120 दिन तक धरना भी चला था । उस समय के  केंद्रीय विधि मंत्री वीरप्पा मोईली जी व तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से बीकानेर बार एसोसिएशन के प्रतिनिधि मंडल की वार्ता भी हुई थी और उन्होंने आश्वासन दिया था कि राजस्थान में जब भी हाइकोर्ट की बेंच खोली जाएगी, तब सबसे पहले बीकानेर में खोली जाएगी । राजस्थान के सीमावर्ती जिलों श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेरव चुरू की ये महत्वपूर्ण मांग है ।  सीमावर्ती इलाके हिन्दुमल कोर्ट से जोधपुर की दूरी 525 किलोमीटर से भी ज्यादा है । इसलिए सस्ता, सुलभ न्याय की अवधारणा के अनुसार बीकानेर में हाइकोर्ट बैंच बीकानेर संभाग की मांग नही हक है ।
श्री बिश्नोई ने सरकार से कहा कि बीकानेर संभाग के कर्मचारियों की मांग को देखते हुवे  राजस्थान एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (RAT) की बेंच भी बीकानेर में होनी चाहिए । इसलिए बीकानेर में हाइकोर्ट की बैंच व ट्रिब्यूनल कोर्ट की बेंच खोली जाए ।

श्री बिश्नोई ने कहा कि राजस्थान अधिवक्ता कल्याण निधि (संशोधन) विधेयक 2020 ऐसा है जैसे "वकीलों की ही आंख... वकीलो की ही ऊँगली"। अधिवक्ताओं के कल्याण का बिल उसमें सारा का सारा पैसा वकीलों की जेब से ही वकीलों के हित में लगना है । इसमें सरकार का कुछ भी योगदान या अंशदान नहीं है । हमारा सुझाव सरकार को है  कि इसमें कुछ पैसे या कुछ अंशदान सरकार भी करें । क्योंकि पड़ोस के राज्य मध्यप्रदेश में सरकारी सहयोग का प्रावधान है और दूसरी तरफ सरकार को यह भी सोचना चाहिए कि बेरोजगारी आज के वक्त की सबसे बड़ी समस्या है और एलएलबी की डिग्री लेने के बाद यह नौजवान वकालत के पेशे में शामिल होते हैं राजस्थान में जिनकी संख्या 10-20 हजार प्रति वर्ष तक है इसका मतलब हजारों नौजवान इस पैसे को अपनाकर बेरोजगारी की लाइन से बाहर हो जाते हैं जो अपने आप में एक तरह से सरकार की बहुत बड़ी मदद कही जा सकती है । इसलिए सरकार ने अगर इस बजट में इस हेतु प्रावधान नहीं भी किया है तो अब करें या सदन में पूरी चर्चा के बाद अगले बजट में इसमें बजट का प्रावधान किया जाना चाहिए ।
श्री बिश्नोई ने कहा कि सरकार यह जो संशोधन बिल लेकर आई है इसमें धारा 16(5) को लेकर सुझाव यह है कि  पहले जो 17500 फीस रखी गई थी वह बढ़ाकर 30000 कर दी गई और अभी सदन में इस बिल पर चर्चा से पहले एक परिपत्र और आया है जिसमें 30000 को भी बढ़ाकर 100000 कर दिया गया है जोकि बहुत ज्यादा है इसका सुझाव बार काउंसिल ने भी सरकार को नहीं दिया है ।  इसलिए इसमें कुछ कमी की जाए और नए जो प्रैक्टिशनर एडवोकेट्स है उनके शुरुआती संघर्ष को देखते हुए 5 साल तक छूट दी जानी चाहिए ।
श्री बिश्नोई ने दूसरा सुझाव देते हुवे कहा कि इस बिल की धारा 20( 1 ) में वकालतनामें पर स्टाम्प को लेकर संशोधन प्रस्ताव लाया गया है । जहां स्टाम्प शुल्क 25 रुपये से बढ़ाकर नीचे के कोर्टों में  100 रुपए कर दिया और माननीय उच्च न्यायालय में 200 रुपये कर दिया है यह भी बहुत ज्यादा है कि क्योंकि इसका सीधा सीधा भार गरीब परिवादी पर ही पड़ना है । जो सस्ता सुलभ न्याय की अवधारणा के खिलाफ है ।
श्री बिश्नोई ने कहा कि  सरकार इस बिल में अधिवक्ताओ के लिए तीन लाख तक के ईलाज का प्रावधान लेके आई है, जो कम है । उसे कम से कम दस लाख तक किया जाए । एक हमारा सुझाव है कि इस बिल में सरकार को एक प्रावधान या संशोधन यह भी करना चाहिए कि इस अधिवक्ता कल्याण कोष का फायदा लगातार प्रैक्टिसनर एडवोकेट्स को ज्यादा मिले ।





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