बीते 2 अप्रैल 2018 को बंद का आव्हान किसने किया ? यह तो फिर भी मालूम है लेकिन उस दिन जो कुछ भी हुआ वह विकृत चेहरा था उन लोगों का जो बंद के पीछे अपना उल्लू सीधा करने में जुटे थे ।
भोली-भाली जनता और आह्वान करने वाले शायद इनके बहकावे में आए। भारत की छवि बिगड़ी । भारत के आपसी सौहार्द का वातावरण बिगड़ा और बमुश्किल दो-तीन दिन ही बीते होंगे कि फिर से शोशा छोड़ा गया 10 अप्रैल को बंद का । लेकिन इस बार यह शोशा किसने छोड़ा ? आह्वान किसका है यह किसी को नहीं मालूम। यही वह विकृत चेहरा है जिसकी तलाश आपको हमें और हम सबको करनी है । 
यह विकृत चेहरे भारत की छवि बिगाड़ने में लगे हैं। आपकी हमारी छवि  बिगाड़ने में लगे हैं। यह भी कहा यह जाता रहा है कि अच्छी बातें बहुत देर से ग्रहण की जाती है जबकि बुरी बातों को जल्दी ग्रहण करने का एक अलग ही है ग्राफ है । इस ग्राफ को छोड़ना तोड़ना होगा। यह सिद्ध कर देना होगा कि हम सुनी सुनाई बातों पर अपना विवेक नहीं खोते। विवेक होने के नतीजे 2 अप्रैल को सामने आ चुके हैं । इसकी पुनरावृति हुई तो समझिए यह भविष्य का संकट का संकेत है। भविष्य के संकट को हम दस्तक देते सुन रहे हैं। संकट द्वार नहीं खोलना हमारे हाथ में है । संकट द्वार खोलना न खोलना भीड़ की उस मनोवृति/ मानसिकता के हाथ में है जिस भीड़ की मानसिकता ने कभी आंदोलन किए थे सच्चाई के लिए। जिस भीड़ ने अभी क्रांति रची थी देश के लिए । यदि वह भीड़ भी आज स्वयं को ही तोड़ने के लिए जाएगी तो उसके दोषी हम भी होंगे आप भी होंगे हम सब होंगे। ऐसे में आने वाली पीढ़ी हमें कतई माफ नहीं करेगी । यह विवेक जाग्रत करके दूसरों को भी जागरुक होने का संदेश देने का समय है । बंद के पीछे छिपे देश के दुश्मनों व विकृत चेहरों को सामने लाने का समय है । सोशल मीडिया पर जो बेनामी मैसेज प्रसारित हो रहे हैं उन के स्रोत तक पहुंचने के सोशल मीडिया पर ग्रुपों के एडमिन को चाहिए कि वे ऐसे नंबरों से ऐसे व्यक्तियों की पहचान करें जो विकृति फैला रहे हैं। उनको अपने ग्रुप से निकाल दे । लोगों को भी बताएं कि यह नंबर यह व्यक्ति हमसे आप से हम सब से हमारे देश से ऐसा बर्ताव कर रहे हैं । 
- मोहन थानवी