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गूंजी कबीर की वाणी, स्वर लहरियों से कलाकारों ने बांधा समां, राजस्थान कबीर यात्रा का रवींद्र रंगमंच पर विधिवत हुआ उद्घाटन






-गूंजी कबीर की वाणी, स्वर लहरियों से कलाकारों ने बांधा समां, राजस्थान कबीर यात्रा का रवींद्र रंगमंच पर विधिवत हुआ उद्घाटन


*खबरों में बीकानेर*




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गूंजी कबीर की वाणी, स्वर लहरियों से कलाकारों ने बांधा समां, राजस्थान कबीर यात्रा का रवींद्र रंगमंच पर विधिवत हुआ उद्घाटन

बीकानेर। 'पायो जी मैंने रामरतन धन पायो...मारगिया बुहारु, पलड़ा बिछाऊ...गुरुजी रा दरसन पाया...सरीखी वाणियों की स्वर लहरियों से बुधवार को रवींद्र रंगमंच का ओपन थियेटर गूंजा उठा। अवसर था राजस्थान कबीर यात्रा के उद्घाटन का। जिला प्रशासन के सहयोग से मलंग फोक फाउंडेशन के तत्वावधान में आयोजित हो रही राजस्थान कबीर यात्रा में कलाकारों ने बेहतरीन, पारम्परिक और सूफी संतों के भजनों की मधुर प्रस्तुतियां दी। कलाकारों ने माहौल को कबीरमय बना दिया। कबीर वाणी को सुनने आए सैकड़ों श्रोताओं ने तालियां बजाकर कलाकारों की हौसलाफजाई की। 
निदेशक गोपाल सिंह के अनुसार रवींद्र रंगमंच के ओपन थिएटर में हुए कार्यक्रम का आगाज जैसलमेर से आए हमीरा ग्रुप ने किया। गायक भलुराम ने कबीर के भजनों से सभी को मंत्रमुग्द कर दिया। इसके बाद पद्मश्री कलाकार अनवर खान ने अपनी विशेष गायन शैली में पायोजी मैंने रामरतन धन पायो, भजन से समां बांध दिया। कलाकार ने कबीर की वाणी और सत्संग सुनाकर श्रोताओं को दाद देने पर मजबूर कर दिया। इससे पूर्व कबीर यात्रा उद्घाटन जिला कलेक्टर श्रीमती नम्रता वृष्णि, पुलिस अधीक्षक श्री कावेन्द्र सागर, नगर निगम आयुक्त मयंक मनीष ने किया। 

*प्रहलाद सिंह ने जमाया रंग*
कार्यक्रम के अगले सोपान में पद्मश्री प्रहलाद सिंह टिपानिया ने विशेष अंदाज में कबीर की वाणी और भजन सुनाकर वाहा-वाही लूटी। कलाकार ने माहौल का कबीरमय बना दिया। लोगों ने तालिया बजाकर उनका अभिनंदन किया। इसके बाद गुजरात से आए मुरारा लाल मारवाड़ा ने भजन सुनाए और कार्यक्रम के अंतिम सोपान में तीन बार के ग्रेमी अवार्ड विजेता कलाकार रिकी केज ने खास प्रस्तुति दी, तो पूरा रंगमंच तालियों से गूंज उठा। 

*यह उद्देश्य है कबीर यात्रा का* 
कबीर यात्रा मुख्य उद्देश्य संत कबीर, मीरा, बुल्ले शाह, और शाह लतीफ सरीखे महान संत कवियों की शिक्षा और उनके संदेशों को जन-जन तक पहुंचाना है। चौहान के अनुसार राजस्थान के लोक संगीत और आध्यात्म की एक बेजोड़ परंपरा है। इसमें लोक महज मनोरंजन नहीं तलाशता बल्कि उस संगीत में एक गहरे दर्शन का भी इशारा है। सत्संग यानी 'सत्य के साधकों' की संगत। जहां सभी एक साथ कबीर और मीरा को गाते हैं। चौक-चौबारों पर गाए जाने वाली ये वाणियां अपने आप में सामूहिकता को समेटे हुए है, यह पूरा विचार ही लोक की समृद्ध परम्परा का जश्न है। ऐसे स्थान सभी प्रकार की लोक गायन धाराओं के सुंदर संगम है। यह भेदभाव से हटकर सभी समुदायों को एक साथ जोड़ते हैं, और जाति-धर्म की सीमाओं को भी तोड़ते है। इन वाणियों के माध्यम से हम लोक की समृद्ध अभिव्यक्ति को समझने की कोशिश करते है, क्योंकि इन गीतों से निकलने वाले संदेश महत्वपूर्ण है।

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