-जन-राज : रोटियां सेंकने के नैरेटिव...
इनसे क्या हासिल कर लेंगे *वो लोग...हमलोग ?*
जन-राज : रोटियां सेंकने के नैरेटिव...
इनसे क्या हासिल कर लेंगे *वो लोग...हमलोग ?*
- मोहन थानवी
जन-राज यानी जनता का राज। विश्व में लोकतंत्र की मातृ भूमि हमारा भारत है। और आज की तारीख में हम जन-राज के चलते विभिन्न राजनीतिक दलों के नैरेटिव में लगभग उलझे हुए रहने लगे हैं। कभी सत्ता पक्ष के कतिपय नेता विपक्ष के विरोध में ऐसे ऐसे नैरेटिव गढ़ते हैं की लगता है की आने वाले 24 घंटे में ही विपक्ष के कुछ संबंधित नेता कारावास में पहुंच जाएंगे। लेकिन गौर करिए, होता कुछ और ही रहा है।
इसी तरह विपक्ष के कुछ नेता भी सत्ता में बैठे प्रभावशाली कुछ नेताओं के ऊपर ऐसे ऐसे आरोप मंढ़ते हैं की एक बारगी तो हम राजनीति से कोसों दूर रहने वाले आमजन भी चकित रह जाते हैं। भला ऐसे नेता लोग हम आमजन को बताएं तो सही कि ऐसे नैरेटिव बनाने के पीछे वे हम लोगों का किस तरह का भला करना चाहते हैं?
राजनीतिक दल तो अपनी रोटियां सेंकने की उद्देश्य से नैरेटिव सैट करने में लगे रहते हैं। लेकिन जनता यानी हम आम लोग ऐसे नैरेटिव से आज तक ना तो वांछित रोजगार पा सके हैं न बढ़ती महंगाई से हमें राहत मिल पाती है। और न हीं शिक्षा का ढांचा वांछित रूप में सामने आ सका है। इसके अलावा स्वास्थ्य क्षेत्र में भी हम अर्थ तंत्र से घिरे चिकित्सा क्षेत्र के चक्रव्यूह में फंसते चले गए हैं। हालांकि बीते कुछ वर्षों में आम जनता तक स्वास्थ्य की मूलभूत जरूरतें पूरी करने के लिए राज्य एवं केंद्र सरकार ने कुछ राहत भरे कदम उठाए हैं लेकिन कागजी खाना पूर्ति में कितनी कठिनाई का सामना हम लोगों को करना पड़ता है इसका अंदाजा वातानुकूलित कमरों में बैठे जन नेता और नीति निर्धारण करने वाले नहीं लगा सकते।
सच तो यह भी सामने आ जाता है कि शहरों को दो भागों में विभक्त करने वाली रेल लाइन की समस्याओं के निवारण के लिए दूसरी और समस्याएं पैदा कर दी जाती है। जैसे अंडर ब्रिज। ऐसे ब्रिज के कारण बरसात में पानी भराव लोगों की जान लेने पर उतारू हो जाता है। बावजूद इससे सबक लेने के दूसरे शहरों में फिर से समान समस्या के लिए फिर वैसी ही निवारण की ब्रिज-नीति अपनाने के प्रयास होने लगते हैं।
यूं नैरेटिव शब्द के मायनों में
बयान, रिवायत, कथा, कहानी, दास्तान, क़िस्सा, अहवाल, इतिहास, वर्णन, अफ़साना शामिल हैं। कोई कहानी घटनाओं के क्रम के साथ बयां करना भी नैरेटिव की श्रेणी में है। हालांकि ऐसे नैरेटिव का उद्देश्य जानकारी देना होता है। लेकिन राजनीतिक जगत के परिप्रेक्ष्य में आम लोगों द्वारा यह स्पष्ट महसूस किया जा सकता है कि नैरेटिव प्रतिद्वंद्वियों को आरोपों के घेरे में लेकर उनकी छवि धूमिल करने का प्रयासभर है। और मकसद येन-केन-प्रकारेण सत्ता की कुर्सी पर विराजमान हो जाना है। और सत्ता पर काबिल होने का ऐसा खेल केवल चुनाव के दिनों में ही नहीं खेला जाता बल्कि यह खेल चलता ही रहता है। इसका खमियाजा हम आमजन को भुगतना पड़ रहा है। देश - राज्यों की सरकारों को अस्थिरता की आशंका में भी घिरे रहना पड़ता है। नैरेटिव गढ़ने से बनती ऐसी स्थितियों को समाज, देश के समग्र विकास के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता।
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