शहर में ढेर सारी प्रतिभाएँ— फिर भी विकास से अछूता शहर - मनोहर चावला पहले सम्मान और फिर अखबारो में छपने का सुख



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आज फिर 5 सवाल कुलबुला रहे उंगली के निशान पर... नंबर 1 सब कुछ तो तुम कह देते हो कुर्सियों पर बैठे हुए लोगों हमें तुम...

Posted by Mohan Thanvi on Wednesday 1 May 2024

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शहर में ढेर सारी प्रतिभाएँ— फिर भी विकास से अछूता शहर
- मनोहर चावला 
पहले सम्मान और फिर अखबारो में छपने का सुख 

बीकानेर काफ़ी समय से प्रतिभाओं का गढ़ बना हुआ हैं। क्योंकि यहाँ के लोग कवियों, साहित्यकारों, बुद्धिजीवीओ , खेल- खिलाड़ी, और नाटक- रंगमंच के दीवाने और रसिए है। आपने देखा होगा हाल ही में बीकानेर स्थापना दिवस पर कितनी ही विभूतियों का सम्मान हुआ। १५ अगस्त और २६ जनवरी या किसी महान व्यक्ति की जयन्ती पर या फिर पुण्य तिथि पर भी अनगिनत प्रीतभाओ का सम्मान किया जाता रहा है। साल भर कही न कही किसी संस्था- स्कूल- कॉलेज या किसी ऑफिस में सम्मान समारोह चलता ही रहता हैं। देखा ज़ाय तो पिछले कई सालों में कई हज़ारो प्रतिभाओं का सम्मान बीकानेर में हो चुका हैं। बीकानेर में इतनी प्रतिभाओं के बावजूद बीकानेर विकास की दौर में सबसे पिछड़ा हुआ शहर कहा जाता हैं। जबकि कहा यह गया है कि जिस नगर में बुद्धिजीवी, साहित्यकार, कवि, समाजसेवी और रंगमंच प्रेमी हो वो नगर , विकास की दौर में अगरणीय होता हैं। क्योंकि समाज को, लोगो को जगाने का यही लोग तो काम करते हैं। पर यहाँ तो सब कुछ उलट हैं। थोथा चन्ना- बाजे घना वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। जबकि देश- विदेश में यहाँ की प्रतिभाओं ने बीकानेर का नाम ऊँचा किया हैं। लेकिन आज उनको विस्मृत कर नई प्रतिभाओं ने सम्मानित होकर अखबारो में स्थान प्राप्त कर लिया है। अब अक्सर अखबारो में फला को साफ़ा पहनाकर, शाल ओढ़ाकर, नगद राशि देकर, प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया- पढ़ते रहते हैं। उन्होंने शहर, समाज- और देश के लिए क्या योगदान किया। कोई नहीं बताता? कोई नहीं उनसे पूछता ? अब तो यहाँ ऐसी संस्थाएँ बन गई है जो पैसा लेकर सम्मान समारोह आयोजित करवाती है। जिसे चाहे उसका सम्मान करवा लेवे ,साफ़ा, प्रतीक चिन्ह- शाल- माला और भीड़ जुटाने की ज़िम्मेवारी उनकी होती है। उनकी न्यूज़ अखबारो तक पहुँचाने और उसे लगवाने का भी वो ठेका लेते है। पैसा खर्च कीजिए और सम्मानित होइये। अखबारो में फिर आपका ही आपका नाम होगा। अब तो महिलाओं की किटी पार्टियों और पुरुषों की गोटो में भी सम्मानित करने की परम्परा चल पड़ी हैं। ऐसे इस शहर में कई ऐसे शख़्स भी हैं जो कुछ किये बिना ही ऐन- केन- प्रकरण सम्मानित हो ही जाते हैं। और फिर अखबारो में छपने का प्रबंध भी कर लेते हैं। न्यूज़ छपने के बाद उनकी चाल और चरित्र में काफ़ी फ़र्क़ आ जाता हैं। वो अपने आपको अलग और वी आई पी समझने लगते हैं। मुझे यहाँ लिखने में क़तई संकोच नहीं हो रहा कि वर्षों पहले गोस्वामी चौक में एक कवि शास्त्री जी थे छोटी- मोटी कविताएँ लिख लेते थे लेकिन उनकी कविताएँ अखबारो में छप नहीं रही थीं मेरे पास आये और कहा कि मेरी कविता अपनी अख़बार में छाप दो और मुझसे चाय की पार्टी ले लो। शायद मैंने उस उम्र में कुछ ऐसा किया था बराबर छपने के बाद एक दिन समाज ने उन्हें एक महान कवि के रूप में साफ़ा पहना कर- शाल ओढ़ा कर- प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया कि वे इतने भावुक हुए कि मेरे चरण स्पर्श करने लगे।और मैं मन ही मन अपनी नालायकी पत्रकारिता को कोस रहा था। ख़ैर अब वक्त तेज़ी से बदला हैं कुछ करो या न करो सिर्फ़ अखबारो में बने रहो।और अपनी धाक मित्रों और परिजनों पर जमाते रहो। आख़िर आप सम्मानित व्यक्ति जो हो। बाक़ी न आप विकास की बात करो , न सार्वजनिक या समाज सेवा की। सिर्फ़ अख़बार में छपने का सुख प्राप्त करो। यही तो जीवन है और आपके जीवत होने का प्रमाण। साथ में यश प्राप्ति का तरीक़ा। क्योंकि सम्मान में और अख़बार में छपने से सब आपके ऐब छुप जाते हैं। —- मनोहर चावला

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