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औरों से हटकर सबसे मिलकर

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जिनका धर्म में मन लगा रहता है, उन्हें देवता भी नमस्कार करते हैं- विनोद मुनि
बीकानेर। श्री शान्त क्रांति जैन श्रावक संघ के श विनोद मुनि ने सेठ धनराज ढ़ढ्ढा कोटड़ी में गुरुवार सुबह धर्मसभा में धर्म को उत्कृष्ट मंगल बताते हुए कहा कि, जिनका धर्म में मन लगा रहता है, उन्हें देवता भी नमस्कार करते हैं। ऐसा उत्कृष्ट जीवन हमें मिला है।आवश्यकता है, उसे जीवन में धारण करने की।
मुनि ने सभा में कहा कि यह जीवन क्यों मिला है, इस जीवन का उद्देश्य क्या है...?, विनोद मुनि ने कहा कि यह जीवन हमें त्याग के लिए, वैराग्य और वितरागता के लिए मिला है। इसलिए त्याग के प्रति हमारे मन में अहोभाव होना चाहिए, वैराग्य का हमारे मन में स्वभाव होना चाहिए और वितरागता के प्रति लगाव होना चाहिए। तभी, हम जीवन का श्रेष्ठ उपयोग कर सकते हैं। मुनि श्री ने श्रावक- श्राविकाओं से कहा कि हमें यह चिंतन करना चाहिए कि जो चातुर्मास हमें मिला, इसमें मेरा कितना त्याग बढ़ा, वैराग्य बढ़ा और वितराग से कितना लगाव हुआ।
विनोद मुनि ने कहा कि संसार में सबसे दुर्लभ संयम में पुरुषार्थ है। विनोद मुनि ने धर्म के चार दुर्लभ अंग पहला मनुष्य होना, दूसरा धर्म श्रवण, तीसरा सुने धर्म पर श्रद्धा और चौथा उस धर्म में पराक्रम यानि कि उस धर्म को आचरण में लाना है। महाराज साहब ने प्रवचन, स्थानक और संत समागम से मिलने वाले लाभ से अवगत कराया।
साथ ही कहा कि जीवन को वितरागता की ओर ले जाने का प्रयास करना चाहिए। प्रवचन से पूर्व भजन ' जगा रहा है, हमें हमारा, गौरव भरा अतीत रे, जिन शासन चमन में पाएं, जीवन का नवनीत रे, अनुशासन पर टिकी हुई है,नींव संघ की है गहरी, वीर प्रभु की मर्यादाएं,पग -पग पर है नित प्रहरी।' सुनाकर भजन का भावार्थ बताया।
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