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इन तीनों का सम्मान करना मां, महात्मा और परमात्मा- आचार्य विजयराज


खबरों में बीकानेर



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दिनांक – 14/08/2022               
  इन तीनों का सम्मान करना मां, महात्मा और परमात्मा-  आचार्य विजयराज जी म.सा.*
              *जो साता पहुंचाए वही साधक -1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा.*
        बीकानेर। जो मनुष्य प्राणी मात्र के हित की, सुख की कामना करे वही सत्य है। ज्ञानीजनों ने कहा है कि सुखी रहे सब जीव जगत, कोई नहीं घबराए। जब हम सब जीवों की सुख की कामना करते हैं, हमें साता (सुख) की प्राप्ति होती है। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने जिनवाणी का श्रवण करते हुए यह बात कही। आचार्य श्री ने कहा कि जब हम दूसरों के हित की कामना करते हैं, उस हित और सुख की प्राप्ति हमें भी होने लगती है। इसकी शुरूआत अपने घर- परिवार से करनी चाहिए। जो व्यक्ति अपने घर- परिवार के सुख की, शांति की, हित की कामना नहीं कर सकता, वह दूसरे के हित के बारे में सोच भी नहीं सकता।
ज्ञानीजनों ने कहा है कि सत्य की पूजा करो।महाराज साहब ने कहा कि सत्य की पूजा कैसे की जाए..?,सत्य का कोई आकार तो है नहीं, ना कोई मूर्ति होती है। फिर कैसे सत्य की पूजा हो, इसका जवाब देते हुए उन्होंने बताया कि सत्य की पूजा हम उसे आत्मसात करके ही कर सकते हैं। संसार में सत्य ही भगवान है। जो व्यक्ति इसे धारण कर लेता है, वह फिर इंसान नहीं रहता, इंसान के रूप में भगवान बन जाता है और आत्मा से परमात्मा बन जाता है। इसलिए हमें सत्य के प्रति निष्ठा, आस्था, विश्वास रखना चाहिए।
  आचार्य श्री ने कहा कि पापकर्मों से छुटकारा पाने के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थल धर्मस्थल है। झूठ बोलना भी पापकर्म है और आजकल लोग बात-बात में झूठ बोलते हैं। धर्म स्थल में भी झूठ बोला जाने लगा है। महाराज साहब ने कहा आप और कहीं पर और किसी से डरो, मत डरो, लेकिन झूठ से तो डरो, आज हम असत्य में जी रहे हैं। असत्य में रमण कर रहे हैं, लेकिन याद रखो असत्य पराजित है। अगर आपने सत्य का पालन किया है तो आपकी जीत होगी, असत्य में कोई ताकत नहीं, भयभीत और कमजोर होता है। गलती करने वाले को अपनी गलती स्वीकार कर लेनी चाहिए। धर्म स्थान में किया गया पाप कर्म वज्र लेप के समान होता है। महाराज साहब ने शारीरिक साता और मानसिक समाधी संसार के सभी प्राणी चाहते हैं। लेकिन साता मिलती उसी को है जो दूसरों को साता पहंचाते हैं। हमें संसार के हर प्राणी को साता पहुंचानी चाहिए। जो साता पहुंचाता है, वही साधक होता है, यहां विराजित सब साधक हैं आप भी साधक हैं और मैं भी साधक ही हूं। लेकिन हमें अराधक बनना है। अराधक वही बनता है जो सत्य का जीवन जीता है। हमें सत्य का जीवन आना चाहिए। यह याद रखने योग्य है कि धर्म की उत्पति सत्य से होती है और धर्म का विनाश क्रोध और लोभ होता है।

आचार्य श्री ने उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं से कहा कि परिवार में संस्कार बहुत जरूरी है,अपने बच्चों को संस्कार देना चाहिए। जिन परिवारों में संस्कार होते हैं वही परिवार और उसमें जन्म लेने वाले बच्चे अपने माता-पिता को वंदन करते हैं। बच्चों को सत्य का संस्कार देना चाहिए, यह बहुत बड़ा संस्कार है, सत्य की साधना बहुत बड़ी साधना है। महाराज साहब ने कहा कि यह सदैव याद रखें संसार में तीन ही बड़े हैं मां, महात्मा और परमात्मा, इन तीनों का सम्मान करना चाहिए। महाराज साहब ने बताया कि सत्य में रमण करने वाला शक्तिशाली होता है। *स्वर्ण तिलक लगा अतिथियों का किया स्वागत    
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब के चातुर्मास को लेकर संपूर्ण देश के श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ में उत्साह का माहौल व्याप्त है। युवा संघ के कार्यकारी अध्यक्ष व प्रचार मंत्री विकास सुखाणी ने बताया कि रविवार को विभिन्न शहरों से संघ बसों, निजी वाहनों और ट्रेन से बीकानेर पहुंचा, जहां श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक युवा संघ की ओर से आचार्य श्री के स्वर्णिम दीक्षा वर्ष पर सुनहरा ( गोल्डन ) तिलक लगाकर स्वागत किया गया। सूरत, अहमदाबाद, मुंबई, दिल्ली के पश्चिम विहार, कोल्हापुर रोड, विजयनगर, ब्यावर, इंदौर, अजमेर, चित्तौडग़ढ़ , निम्बाहेडा , मैसूर, मंगलवाड चौराहा , उदयपुर से सैकड़ों की संख्या में श्रावक-श्राविकाएं आचार्य श्री के दर्शनार्थ एवं उनके मुखारबिंद से जिनवाणी का लाभ लेने के लिए पधारे।             दश्वैकालिक सूत्र पर व्याख्यान बुधवार को 
श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि बुधवार 17 अगस्त को विश्व भारती शान्ति निकेतन (प.बंगाल)के *प्रोफेसर जमनाराम भट्टाचार्य* जैन दर्शन के मूलागम पर दश्वैकालिक सूत्र पर व्याख्यान देंगे। दश्वैकालिक सूत्र की नियुक्ति, टीकाएं, भाष्य, चूर्णि विषय पर गहनता से प्रकाश डालकर श्रावक-श्राविकाओं को ज्ञान दर्शन देंगे।










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