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नागौर के टाउन हॉल में राजस्थानी भाषा की दशा और दिशा पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन में युवा लेखकों ने भरी हुंकार


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नागौर के टाउन हॉल में राजस्थानी भाषा की दशा और दिशा पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन में युवा लेखकों ने भरी हुंकार

वक्ताओं ने बताया राजस्थानी भाषा का महत्व और विस्तार से दी राजस्थानी भाषा के इतिहास की जानकारी

सभी ने कहा कि : नागौर का नाम राजस्थानी मान्यता के लिए आज स्वर्णाक्षरों में लिख दिया

नागौर/बीकानेर : 28 नवंबर। नागौर का टाउन हॉल शनिवार 27 नवम्बर, 2021 को एक ऐतिहासिक कुंभ का साक्षी बना। यहां राजस्थान के कोने कोने से आए राजस्थानी के नामचीन कवियों, लेखकों और युवा शोधार्थियों ने लंबी चर्चा कर राजस्थानी की दशा और दिशा पर मंथन किया। राजस्थानी हितचिंतकों के इस कुंभ में राजस्थानी की मान्यता का मुद्दा भी जोर शोर से उठा। वक्ताओं ने इसके लिए एकजुट होकर सरकार के समक्ष अपनी मांग को पुरजोर शब्दों में उठाने की आवश्यकता जताई। वहीं कुछ वक्ताओं ने राजस्थानी भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए नए सिरे से मजबूती के साथ अपनी मांग रखने की आवश्यकता भी जताई। राजस्थान के ख्यातनाम कवियों, आलोचकों व साहित्यकारों ने इस राजस्थानी कुंभ में हिस्सेदार दिखाई। दो सत्र में चली राजस्थानी भाषा: दशा और दिशा विषयक इस संगोष्ठी का आयोजन नागौर नगर परिषद और स्कूल शिक्षा के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। 

इस दौरान वक्ताओं ने राजस्थानी भाषा के इतिहास, उसके व्याकरण की विशेषताएं और मान्यता मिलने के बाद राजस्थान में पैदा होने वाले रोजगार के अवसरों की भी विस्तार से जानकारी दी। 

जिला कलेक्टर डा. जितेन्द्र कुमार सोनी की अध्यक्षता में आयोजित हुई इस संगोष्ठी के मुख्य अतिथि और मुख्य वक्ता जाने माने राजस्थानी कवि और आलोचक डॉ.. अर्जुनदेव चारण थे जबकि संगोष्ठी का बीज भाषण जयनारायण विश्वविद्यालय के बाबा रामदेव शोध पीठ के डा. गजेसिंह राजपुरोहित ने दिया। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में जाने माने पर्यावरण प्रेमी पदमश्री हिम्मताराम भांभू थे। मंच पर अतिथियों के रूप में समाजसेवी डॉ. हापूराम चौधरी, जिला परिषद सीईओ हीरालाल मीणा, नगर परिषद आयुक्त श्रवणराम चौधरी, जिला शिक्षा अधिकारी राजेन्द्र कुमार शर्मा आदि मौजूद थे। संचालन डॉ . रामरतन लटियाल व्याख्याता राजस्थानी साहित्य ने किया। 

इस दौरान वरिष्ठ साहित्यकार देवकिशन राजपुरोहित, राजेन्द्र जोशी, लक्ष्मणदान कविया, सतपाल सांदू, पवन पहाड़िया सहित अनेक साहित्यकार व शोधार्थी मौजूद थे।



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