फिर से बचपन पा जाना...
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| फिर से बचपन पा जाना... |
बरसात की बूंदों को
अपने में
समेट लेना
बादल
संग उड़कर
दामिनी संग
नृत्य करना
पंछियों के पंख
उधार
मांग कर
हवाओं का ऋण
चुकाना
कागज़ की नाव को
सड़क किनारे
उफनती सरिता की
लहरों पर छोड़ना
धोरों के बीच
*रेशम - सी लाल डोकरी*
खोजना
और
हथेली में
सहेज कर
स्कूल में
*धाक*
जमाना...
कितना अच्छा
लगता है / फिर से बचपन पा जाना...



2 Comments
ReplyDeleteकितना अच्छा
लगता है
फिर से बचपन पा जाना...
वाकई सही कहा आपने ।
आदरणीय भाईजी मोहन थानवी जी
सुंदर कविता है ...
पढ़ कर बचपन की कई यादें साकार हो गईं ...
चलती रहे लेखनी सार्थक सृजन के लिए ...
आपको सपरिवार
बीते हुए हर पर्व-त्यौंहार सहित
बसंत पंचमी तथा आने वाले सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
:)
राजेन्द्र स्वर्णकार
shri Rajendra ji आपको सपरिवार
Deleteसभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए
हार्दिक बधाई और शुभ-मंगल कामनाएं !
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