Type Here to Get Search Results !

धनंजय मुनि के ग्रंथ का लोकार्पण समारोह






*खबरों में...*🌐



🖍️धनंजय मुनि के ग्रंथ का लोकार्पण समारोह सम्पन्न 
महाप्रज्ञ अध्यात्म के हिमालय-- डाॅ नीरज के पवन
-


-






औरों से हटकर
सबसे मिलकर

Home / Bikaner / Latest / Rajasthan / Events / Information

© खबरों में बीकानेर 

https://bahubhashi.blogspot.com
https://bikanerdailynews.com
®भारत सरकार UDAYAM REGISTRATION NUMBER RJ-08-0035999









--


... खबर 👇नीचे पढ़ें...


















--






-

महाप्रज्ञ अध्यात्म के हिमालय-- डाॅ नीरज के पवन
•••••••••••••••••••••••••••••
धनंजय मुनि के ग्रंथ का लोकार्पण समारोह सम्पन्न 
------------------------------------- 


श्रीडूंगरगढ़। रविवार को अपराह्न विद्वान संत धनंजय मुनि की सद्य प्रकाशित पुस्तक *आचार्य महाप्रज्ञ : समाज, राष्ट्र और धर्म* का लोकार्पण ओसवाल पंचायत भवन में समारोहपूर्वक हुआ। कार्यक्रम के अध्यक्ष संभागीय आयुक्त डाॅ नीरज के पवन ने इस अवसर पर कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ ऐसे महामना थे, जिन्हें अध्यात्म के हिमालय कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है। उनकी पुस्तकें सच्चे अर्थो में जीना सिखाती हैं। हम उनकी थोड़ी सी बातें भी आत्मसात करलें तो हमारा जीवन धन्य हो सकता है। उन्होंने कहा कि मेरा जुड़ाव तेरापंथ धर्म संघ के साथ रहा है। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि बीकानेर के जिला कलेक्टर भगवतीप्रसाद कलाल ने कहा कि महाप्रज्ञ जी न केवल बड़े संत थे बल्कि वे समाज सुधारक भी थे। उनके पास समाज में व्याप्त विषमताओं को मिटाने के अनेक आध्यात्मिक उपाय थे। ऐसा कोई विषय नहीं था, जिन पर उन्होंने दृष्टिपात नहीं किया। 
प्रारंभ में उपस्थित जनों का स्वागत करते हुए रिटायर्ड आई ए एस लालचंद सिंघी ने कहा कि महाप्रज्ञजी के इस ग्रंथ का लेखन करनेवाले मुनि धनंजय कुमार ने अद्यावधि साठ से अधिक उत्तम कोटि के ग्रंथों का प्रणयन किया है, वहीं उनका जीवन तप तथा संयम की साधना से आप्लावित है। समूचा धर्म संघ मुनि श्री के प्रति श्रद्धा रखता है। 


सम्मानित अतिथि प्रो सुमेरचंद जैन ने कहा कि वर्तमान पीढ़ी अपने पुरातन संस्कारों को विस्मृत करती जा रही है। महाप्रज्ञ जी का साहित्य हमारे संस्कारों को उन्नत बनाता है। यह हमारा सौभाग्य है कि महाप्रज्ञ जी के सर्वाधिक ग्रंथों का संपादन श्री धनंजय मुनि ने किया है। 


संपादक- प्रकाशक दीपचंद सांखला ने अपनी स्पष्ट और मौलिक शैली में कहा कि हम आयोजनों के माध्यम से केवल कहने और सुनने की औपचारिकताओं को पुष्ट करते हैं, लक्ष्य पर दृष्टि नहीं रहती। महाप्रज्ञजी के ग्रंथों का जैसा सुघड़ संपादन धनंजय मुनि ने किया है, उतनी मेहनत और लगन दूसरों से संभव नहीं है। मुनि श्री की भाषा आतंकित नहीं करती है।

 साहित्यकार श्याम महर्षि ने कहा कि प्राचीन समय से श्रीडूंगरगढ़ के अनेक गांवों में जैन धर्म का बोलबाला था। यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि महाप्रज्ञ जी तेरापंथ के सबसे विद्वान संत थे। महाकवि दिनकर ने ठीक ही कहा था कि मैं महाप्रज्ञ जी को दूसरे विवेकानंद के रूप में देखता हूं। 


समारोह के अंत में धनंजय मुनि ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज का दिन महान है। आज ही के दिन 29 जनवरी 1931 को महाप्रज्ञ जी ने संन्यास दीक्षा ग्रहण की थी। दीक्षा दिवस पर इस ग्रंथ का लोकार्पण बहुत आह्लादकारी है। भले ही तेरापंथ समाज की संख्या कम है, पर महाप्रज्ञ जी ने संपूर्ण भारतीय समाज को प्रभावित किया। वह शिष्य महान होता है जो गुरु का मस्तक ऊंचा करता है। विगत 1500 वर्षों के इतिहास में आचार्य तुलसी और महाप्रज्ञ जैसी गुरु शिष्य परंपरा नहीं दिखाई देती।

 महाप्रज्ञ जी को अपने संपूर्ण जीवन में आठ बार भी आवेश नहीं आया। वे राग-द्वेष से रहित सच्चे अर्थों में संत थे। मेरा सौभाग्य रहा है कि मुझे 32 वर्षों तक उनका सान्निध्य प्राप्त हुआ। कार्यक्रम के समापन पर श्री माणकचंद सिंघी ने आभार ज्ञापित किया। मंच का संचालन युवा साहित्यकार रवि पुरोहित ने किया। 

इस अवसर पर नगर के मीडिया कर्मी शुभकरण पारीक, राजू हीरावत, अशोक पारीक, अनिल धायल, प्रशांत स्वामी, राजेश शर्मा को साहित्य भेंटकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में मंगलाचरण गीतिका सुमित बरड़िया ने प्रस्तुत की।

-


Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

Hollywood Movies