खबरों में बीकानेर 🎤 🌐
✍️
MGSU इतिहास विभाग में कार्यशाला : ... मतलब 3 सभ्यताएं लील गया था भूकम्प...?,
ईसा से 2300 साल पहले भारत में
जस्ता बनाने की कला विकसित थी !
बीकानेर। महाराजा गंगा सिंह
विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में
शुक्रवार को एक दिवसीय कार्यशाला व
व्याख्यान 'जावर और चंद्रावती के
पुरातात्विक स्थलों के उत्खनन का
निष्कर्षÓ विषय पर जे.आर.एन.
विद्यापीठ, उदयपुर से आए प्रो. जीवन
सिंह खड़कवाल ने व्याख्यान प्रस्तुत
किया। इतिहास विभाग की सहायक
आचार्य एवं इस कार्यक्रम की
संयोजिका डॉ. अम्बिका ढाका ने
स्वागत भाषण करते हुए प्रो. जीवनसिंह
के महनीय कार्यों व ज्ञान यात्रा का
विस्तृत परिचय दिया। अपने उद्बोधन
र्में प्रो. जीवनसिंह ने चन्द्रावती
(सिरोही) की पुरातात्विक स्थलों के
विषय में बताते हुए कहा कि यह
चन्द्रावती पुरातात्विक स्थल बनास के
पश्चिमी किनारे पर स्थित है तथा जावर
पुरातात्विक स्थल भी उदयपुर से 40
कि.मी. दूर स्थित हैं। जस्ता, जो कि पूरे
भारत में केवल एक स्थान जावर से ही
प्राप्त होता है इसका उल्लेख चरक संहिता
में भी मिलता है। 2300 साल पहले
जस्ता बनाने के कार्यों में उपयोगी
भट्टियों में 1000 डिग्री से ऊपर जस्ता
व शीशा मिलाकर बनाये जाते थे।
हिन्दुस्तान जिंक प्राईवेट लिमिटेड के
एच.पी. पालीवाल व प्रो. हेगड़े ने
मिलकर इन भट्टियों की खोज की।
इसमें आसवन विधि का प्रयोग किया
जाता था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी
जस्ते की सूचना प्राप्त होती है। हिमाचल
प्रदेश के प्राचीन सिक्कों में जस्ते का
प्रयोग होता था। इस प्रकार जावर की
खानों से निकले जस्ते के प्राचीन
उत्खन्न एवं निर्माण के साक्ष्य प्राप्त होते
है इसमें कोई संदेह नहीं तथा भारत की
प्राचीन समृद्ध सभ्यता को इसका श्रेय
जाता है। पुरास्थल चंद्रावती का उल्लेख
1922 में कर्नल टॉड ने किया। डॉ.
पोखरिया ने चंद्रावती में धान के दानों
को ढूंढा। यहां तीन सभ्यताऐं मिली।
इसका भी भूकंप से नाश होना प्रतीत
होता है। अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो.
बी.एल. भादाणी ने कहा कि जस्ता के
ट्रांसपोर्ट के लिये सरस्वती नदी के मार्ग
से नौकाओं के माध्यम से अन्य
सभ्यताओं को इसका आदान-प्रदान
हुआ होगा। प्रो. नारायण सिंह राव ने
प्रो. जीवन सिंह खड़कवाल
का धन्यवाद ज्ञापित किया।
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MGSU इतिहास विभाग में कार्यशाला : ... मतलब 3 सभ्यताएं लील गया था भूकम्प...?,
ईसा से 2300 साल पहले भारत में
जस्ता बनाने की कला विकसित थी !
बीकानेर। महाराजा गंगा सिंह
विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में
शुक्रवार को एक दिवसीय कार्यशाला व
व्याख्यान 'जावर और चंद्रावती के
पुरातात्विक स्थलों के उत्खनन का
निष्कर्षÓ विषय पर जे.आर.एन.
विद्यापीठ, उदयपुर से आए प्रो. जीवन
सिंह खड़कवाल ने व्याख्यान प्रस्तुत
किया। इतिहास विभाग की सहायक
आचार्य एवं इस कार्यक्रम की
संयोजिका डॉ. अम्बिका ढाका ने
स्वागत भाषण करते हुए प्रो. जीवनसिंह
के महनीय कार्यों व ज्ञान यात्रा का
विस्तृत परिचय दिया। अपने उद्बोधन
र्में प्रो. जीवनसिंह ने चन्द्रावती
(सिरोही) की पुरातात्विक स्थलों के
विषय में बताते हुए कहा कि यह
चन्द्रावती पुरातात्विक स्थल बनास के
पश्चिमी किनारे पर स्थित है तथा जावर
पुरातात्विक स्थल भी उदयपुर से 40
कि.मी. दूर स्थित हैं। जस्ता, जो कि पूरे
भारत में केवल एक स्थान जावर से ही
प्राप्त होता है इसका उल्लेख चरक संहिता
में भी मिलता है। 2300 साल पहले
जस्ता बनाने के कार्यों में उपयोगी
भट्टियों में 1000 डिग्री से ऊपर जस्ता
व शीशा मिलाकर बनाये जाते थे।
हिन्दुस्तान जिंक प्राईवेट लिमिटेड के
एच.पी. पालीवाल व प्रो. हेगड़े ने
मिलकर इन भट्टियों की खोज की।
इसमें आसवन विधि का प्रयोग किया
जाता था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी
जस्ते की सूचना प्राप्त होती है। हिमाचल
प्रदेश के प्राचीन सिक्कों में जस्ते का
प्रयोग होता था। इस प्रकार जावर की
खानों से निकले जस्ते के प्राचीन
उत्खन्न एवं निर्माण के साक्ष्य प्राप्त होते
है इसमें कोई संदेह नहीं तथा भारत की
प्राचीन समृद्ध सभ्यता को इसका श्रेय
जाता है। पुरास्थल चंद्रावती का उल्लेख
1922 में कर्नल टॉड ने किया। डॉ.
पोखरिया ने चंद्रावती में धान के दानों
को ढूंढा। यहां तीन सभ्यताऐं मिली।
इसका भी भूकंप से नाश होना प्रतीत
होता है। अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो.
बी.एल. भादाणी ने कहा कि जस्ता के
ट्रांसपोर्ट के लिये सरस्वती नदी के मार्ग
से नौकाओं के माध्यम से अन्य
सभ्यताओं को इसका आदान-प्रदान
हुआ होगा। प्रो. नारायण सिंह राव ने
प्रो. जीवन सिंह खड़कवाल
का धन्यवाद ज्ञापित किया।
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