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'हसीं लम्हों को चुरा लें' काव्य संध्या में काव्य कईं रंग बिखरे
बीकानेर 31 दिसंबर 2019
बीकानेर साहित्य संस्कृति कला संगम और सूर्या कला केंद्र की तरफ़ से दिनांक 31 दिसम्बर की शाम को साल के आख़िरी दिन वल्लभ गार्डन स्थित सूर्या गार्डन में 'हसीं लम्हों को चुरा लें' काव्य संध्या का आयोजन रखा गया | जिसमें नगर के हिंदी,उर्दू एवं राजस्थानी भाषा के रचनाकारों ने अपनी एक से बढ़कर एक रचनाओं के प्रस्तुतीकरण से साल 2019 के हसीन लम्हों को याद किया |
इस काव्य संध्या की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि कथाकार कमल रंगा ने कहा कि दोनों संस्थाओं का यह प्रयास सराहनीय है |नगर के रचनाकार शब्द की तासीर को सवाई कर रहे हैं और क़लम से शब्द को नई अर्थवत्ता दे रहे हैं | आपने अपनी रचना 'बरस दर बरस बदलतो रियो हो भींत टंगियो कैलेंडर' और 'सुणु हूं सगळा कैवे है ओ साल बीत गयो' के माध्यम से नव वर्ष की मंगल कामनाएं की | कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि राजाराम स्वर्णकार ने नगर के साल 2019 में दिवंगत शख़्सियतों को नमन करते हुए अपनी रचनाओं के माध्यम से शब्द की महत्ता यूं बयान की- 'शब्दों की पूजा करता हूं मैं नहीं दलाली करता हूं/कलिष्ठ शब्दों की मैं नहीं जुगाली करता हूं |' कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि कवयित्री मधुरिमा सिंह ने नव वर्ष पर अपनी कविता कुछ ही घंटों बाद नया साल आने वाला है /नए वर्ष का स्वागत तो करना ही होगा' के माध्यम से नववर्ष का स्वागत किया | कार्यक्रम आयोजक संस्था के शायर क़ासिम बीकानेरी ने अपनी ताज़ा ग़ज़ल के इस शे'र के माध्यम से काव्य संध्या को परवान चढ़ाया-'क़जा का वक़्त था उससे जो आंखें चार हुईं /वो एक पल ही मुझे ज़िंदगी में ले आया |' कवियत्री मनीषा आर्य सोनी ने सांवली सी लड़की है अपने रंग से हैरां/हुनर तलाश अपने ज़माना बदल रहा है' के माध्यम से महिलाओं की जागरूकता की बात कही | शाइर वली ग़ौरी ने अपने शे'र के माध्यम से ज़बानों के विरोधाभास की मुख़ालिफ़त की-' अदब में चार यू इनसे उजाला ही उजाला है /मुझे दोनों ज़बानों ने बड़े नाज़ों से पाला है |' वरिष्ठ कवि प्रमोद कुमार शर्मा ने आइए बैठकर अदब की बात करें/ फिर नया साल है नई शुरुआत करें | इंद्रा व्यास ने मुझे कोई ग़म नहीं मुझे कोई गिला नहीं, बाबूलाल छंगाणी ने ज़िंदगी से जो लम्हा मिले चुरा लो, जुगल पुरोहित ने नववर्ष तेरा स्वागत है, विप्लव व्यास ने सूखी अांख्या रा हरियल सपना और हैप्पी न्यू ईयर कविता से काव्य संध्या में नया रंग भरा | कवि हनुमंत गौड़ ने एक ज़मीन थी टुकड़े भी किए थे हमने, कैलाश टाक ने तेरे राजनीति के तंग गलियारे से मेरे शहर की रौनक चली गई, अशोक बिश्नोई ने कभी है शहर ज़िंदगी तो कभी यह गांव लगती है, ईश्वर सिंह ईशु ने इन वीरान खंडहरों में भी एक शहर था साहिब कविताओं से समाज को जागरूक होने का संदेश दिया | कवियत्री मुक्ता तैलंग ने अपनी कविता किताबें भी याद करती है गुज़रा ज़माना के माध्यम से पुस्तकों की दुर्दशा बख़ूबी सामने रखी | कार्यक्रम के आरंभ में सूर्या कला केंद्र के अध्यक्ष डॉ सुरेंद्र नाथ ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया | कार्यक्रम में हरी कृष्ण व्यास, श्री गोपाल स्वर्णकार सहित अनेक लोग मौजूद थे |
📒 📰 📑 पढ़ना और पढ़ाना जीवन सफल बनाना 📚 📖 📓
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