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‘‘व्यक्तित्व निर्माण व आचार्य तुलसी’’ विषय पर संगोष्ठी आयोजित
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व्यक्तित्व निर्माण के लिए स्वयं की परीक्षा जरूरी: मदन गोपाल मेघवाल
आचार्य तुलसी की मासिक पुण्यतिथि पर ‘‘व्यक्तित्व निर्माण व आचार्य तुलसी’’ विषय पर संगोष्ठी आयोजित
गंगाशहर। नैतिकता के मायने बहुत बडे़ हैं। यह सीमा क्षेत्र इत्यादि से परे हैं, यह केवल धर्म क्षेत्र में ही लागू नहीं होता है। नैतिकता के मायने हर जगह, हर क्षेत्र, हर धर्म, हर सम्प्रदाय में लागू होता है। नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर चलने के लिए नैतिकता का अहम योगदान है। यह विचार गंगाशहर स्थित नैतिकता का शक्तिपीठ पर आचार्य तुलसी की मासिक पुण्यतिथि पर ‘‘व्यक्तित्व निर्माण एवं आचार्य तुलसी’’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता सेवानिवृत्त आईपीएस मदन गोपाल मेघवाल ने कही। उन्होंने कहा कि व्यक्तित्व का निर्माण तब होता है जब आप अपनी परीक्षा कड़ाई से लेते हैं। जो व्यक्ति ज्यादा उदार होता है तो वह अपना व्यक्तित्व निर्माण अच्छी तरह से नहीं कर सकता। लेकिन अगर वह अपने पर संयम पा लेता है वह व्यक्तित्व निर्माण कर सकता है। उन्होंने कहा कि अवगुणों से बचें और गुणों को अपने जीवन में धारण करने की कोशिश करें। हिंसा बुरी चीज है। बदला लेने की प्रवृत्ति से बचें, इसका कोई अन्त नहीं है। चाहे दुनिया खत्म हो जाएं पर फिर भी बदला लेने का कोई छोर नहीं होगा। मेघवाल ने कहा कि महापुरूषों को जानिए व उनके गुणों को अपने जीवन में उतारिये। स्वस्थ तर्क-वितर्क करें पर कुतर्क से बचें।
मुख्य वक्ता सीईओ स्काउट जसन्वत सिंह राजपुरोहित ने कहा कि बालक-बालिकाओं को सृजनशील बनने के लिए प्रेेरित करना चाहिए। व्यक्तित्व का निर्माण करना सबसे कठिन कार्य है। आचार्यश्री तुलसी और बेडेन पार्वोल ने जीवन भर लोगों के व्यक्तित्व विकास में लगे रहे और उन्होंने बहुत से लोगों को प्रेरित किया। उन्होंने ने कहा कि व्यक्तित्व विकास की बहुत सी कक्षाएं लगती है। जिनमें कपड़े, घड़ी, सजावट आदि के बारे में विद्यार्थी को उनके उपयोग के बारे में समझाया जाता है। भारतीय धारणा में व्यक्तित्व आत्मा के मौलिक ज्ञान ही नहीं अन्दर का भौतिक ज्ञान भी बढ़ावा मिलता है। क्योंकि भौतिक ज्ञान से व्यक्तित्व का निर्माण होता है। आचार्यश्री तुलसी व पॉवेल ने सकारात्मक रहने, सहनशील बनने व उपयोगी बनने के लिए सभी को प्रेरित किया।
शासनश्री मुनिश्री मणिलालजी स्वामी ने कहा कि व्यक्ति का विकास तब होगा जब हमारे भीतर में शान्ति होगी, जब शान्ति होगी तब सुख होगा और जब सुख होगा तो ही विकास संभव होगा। उन्होंने कहा कि व्यक्ति अपने भीतर देखें और भीतर शान्ति व सुख की खोज करें। अपने अभिमान को छोड़े, अभिमान छोड़कर ही व्यक्ति के जीवन में शान्ति आ सकती है और तब ही विकास संभव होगा। उन्होंने का अहं व अर्हम् में र का अन्तर है परन्तु इसके न होने से व्यक्तित्व का विकास नहीं हो सकता।
मुनिश्री देवेन्द्रकुमारजी ने कहा कि भारत संतों की पवित्र भूमि है। यह भूमि साधना की भूमि है। 20वीं सदी में आचार्यश्री तुलसी एक महा मानव के रूप में उजागर हुए। क्योंकि आचार्यश्री तुलसी ने आमजन को अनेक आयाम दिए। मानवता के लिए अणुव्रत के द्वारा व्यक्तित्व का सुधार कैसे होता है उनके बारे में बताया। अणुव्रत आन्दोलन के माध्यम से संयम और नैतिकता को जन-जन तक पहंुचाने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि गुणों का विकास करें, सकारात्मकता का प्रयास करें, जीवन में अच्छे गुणों का विकास करने से ही व्यक्तित्व का विकास होगा।
मुनिश्री कुशलकुमार जी ने कहा कि बचपन के बाद बुढ़ापा आयेगा, बोली में भी बुढ़ापा आने लग जाएगा। आप भी जीवन जी रहे हैं। मैं भी जीवन जी रहा हूं। जीवन जीने के लिए हमें बहुत सी बातें मालूम नहीं है, हमें सीखने के लिए बहुत प्रयास करने होंगे। मुनिश्री ने कहा कि हमें जीवन ए से शुरू करके जेड तक सम्पन्न नहीं करना है। इससे आगे भी सीखने के लिए बहुत है। जो छोटे-छोटे संकल्प करता है वह अपने जीवन का विकास करता है। उन्होंने कहा कि आपको जीवन में ज्ञानी बनना है। अच्छे विचारों को हमें जीवन में उतारने की जरूरत है। मुनिश्री ने मोबाइल फोन से बचने की प्रेरणा देते हुए कहा कि हमें समय का सदुपयोग करना चाहिए। आजकल लोग मोबाइल के चक्कर में अपने संस्कार भूल गए हैं। उपस्थित छात्रों को गाली नहीं देने, अपशब्द न बोलने का संकल्प करवाया।
चन्द्रशेखर श्रीमाली ने कहा कि कौशल विकास, व्यक्तित्व विकास अपने आचरण से होता है। व्यक्ति के अन्दर व्याप्त संस्कारों से होता है। व्यक्ति को अपने आप को पहचानने का प्रयास करना चाहिए। अपने आप को पहचानने से ही आप दुनिया में बहुत बड़ा परिवर्तन कर सकते है। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी नम्बरों से नहीं संस्कारों से सफल होता है। हर परिस्थितियों में खुश रहने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जीवन में सभी के सामने समस्याएं आती है उनसे भागना नहीं बल्कि उनका सामना करना चाहिए। आचार्यश्री तुलसी ने समस्याओं का सामना करने के लिए हमेशा सभी को प्रेरित किया।
आचार्य तुलसी शान्ति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष जैन लूणकरण छाजेड़ ने सभी चारित्रात्माओं, मुख्य अतिथि, मुख्य वक्ता एवं स्काउट संघ का स्वागत करते हुए कहा कि स्काउट का अर्थ अनुशासित होना है और आचार्य तुलसी ने निज पर शासन फिर अनुशासन का सूत्र दिया। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में कोई न कोई संकल्प अवश्य लेवें। दृढ़ संकल्प से ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है।
कार्यक्रम का शुभारम्भ में मुनिवृन्द द्वारा नवकार मंत्र के उच्चारण से किया। अतिथियों का परिचय एवं विषय प्रवर्तन करते हुए शिक्षाविद् गिरिराज खैरीवाल ने कहा कि स्काउट के जन्मदाता लार्ड वेडन पॉवेल की जन्मतिथि एवं आचार्य तुलसी की मासिक पुण्यतिथि है। दोनों महापुरूष विश्वस्तर के हुए और मानवता के कल्याण के लिए कार्य किया। संगोष्ठी में विनीत बोथरा ने मंगलाचरण का संगान किया। भरत संचेती ने काव्य पाठ किया। मुनिश्री श्रेयांसकुमारजी एवं मुनिश्री आर्जवकुमारजी ने गीतिका का संगान किया।
मुख्य अतिथि मदन गोपाल मेघवाल का जैन लूणकरण छाजेड़, डॉ. पी.सी. तातेड़ एवं इन्द्रचन्द सेठिया ने स्मृति चिन्ह, पताका एवं साहित्य भेंट कर सम्मानित किया। मुख्य वक्ता जसवन्त सिंह राजपुरोहित को अमरचन्द सोनी, मनोहर नाहटा व मानमल सोनी ने सम्मानित किया। विशिष्ट वक्ता चन्द्रशेखर श्रीमाली का सम्मान विमल चौपड़ा, जीवराज सामसुखा ने किया। स्काउट के सहायक राज्य संगठन आयुक्त दिलीप माथुर का सम्मान भवानी जोशी, मनोज सेठिया, देवेन्द्र डागा ने किया। संतोष निर्वाण का आशा शर्मा, जतन संचेती व भरत गोलछा ने सम्मान किया। सीओ गाइड ज्योति महात्मा का मधु मोदी, रेखा जैन एवं करणीदान रांका ने सम्मान किया। संगोष्ठी का संचालन रतन छलाणी ने किया।
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