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वा होवणी चावै मुगत खुद सूं, पण भरोसै रो सूरज ओजूं ई पळपळै उण री आंख्यां
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रवि पुरोहित की स्त्री विमर्श से जुड़ी राजस्थानी कविताओं ने जे एल एफ के पोइट्री ऑवर में धूम मचाई
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वा होवणी चावै मुगत खुद सूं, पण भरोसै रो सूरज ओजूं ई पळपळै उण री आंख्यां
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रवि पुरोहित की स्त्री विमर्श से जुड़ी राजस्थानी कविताओं ने जे एल एफ के पोइट्री ऑवर में धूम मचाई
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बीकानेर ।
वा होवणी चावै मुगत खुद सूं/ पण भरोसै रो सूरज/ ओजूं ई पळपळै उण री आंख्यां। घुटती सांस नै उरळावन अर खुद रै होवण नै बचावण सारू/ वा निसरणी चावै लुगाईजात रै खोळीयै सूं। तल्ख अंदाज़ की ऐसी ही स्त्री विमर्श की राजस्थानी कविताओं ने गुरुवार को जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के संवाद सभागार में आयोजित पोइट्री ऑवर में धूम मचा दी। झमाझम बारिस के बावजूद कवि रवि पुरोहित की काव्य रचनाओं को सुनने के लिए सभागार खचाखच भरा रहा। पुरोहित ने इस अवसर पर मातृभाषा को मान्यता न मिलने की पीड़ा को भी विविध भाषा-भाषियों से साझा किया और समर्थन बटोरा।
भाषा मान्यता की पीड़ा को अपने कवितांश से जोड़ते हुए पुरोहित ने कहा कि -"आज अर विश्वास री सलीबां ठोक, सपनां री हथेलियां में, धीजै री कील, लटका दी जावै अबोल नैनी चिड़कली नै। उसी तरह
हमारी मातृभाषा राजस्थानी की स्थिति तो आज और भी विकट है । यहां साहित्य अकादमी में राजस्थानी के अनुवाद, पुरस्कार आदि तमाम उपक्रम होते हैं पर आठवीं अनुसूची में जुड़ने के लिए वह आज भी राजनैतिक इच्छाशक्ति की मोहताज है । प्रदेश में भले ही इसे शिक्षा का अधिकार में जोड़ लिया गया हो, बच्चों को संस्कारित करने व समझाने के लिए भले ही जमीनी धरातल पर मायड़ भाषा माध्यम बनती हो, भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के विकास के लिए भले ही राज्य सरकार ने पृथक अकादमी बना रखी हो पर प्राईमरी शिक्षा का माध्यम वह आज भी नहीं बन पाई है । अमेरिका ने भले ही लोक समृद्ध भाषा मान लिया हो, टी. वी. चैनल्स ने भले ही धारावाहिकों में राजस्थानी के जरिए अपनी टीआरपी और आर्थिक समृद्धि बना ली हो, मोबाईल कंपनियों ने भले ही कस्टमर केयर में राजस्थानी को संवाद विकल्प के रूप में चुन लिया हो पर स्टेट लैंग्वेज के लिए यह आज भी सत्ता के गलियारों में हांफ रही है ।
पोइट्री ऑवर इवेंट में राजस्थानी विद्वान नंद भारद्वाज, जयप्रकाश सेठिया, इंद्र भादानी, शिवानी पुरोहित सहित अनेक विद्वतजन की उपस्थिति में दिल्ली के कवि सत्यजीत सरना के संयोजन में हुए इस सत्र में अमित मजूमदार, अंशु हर्ष, गोपाल माथुर, कायो चिंगोनयी और प्रिया सरुक्काई चबरिया ने भी पाठकों से काव्य संवाद किया। सरस्वती माथुर की स्मृति में उनकी कुछ कविताएँ अंशु हर्ष ने साझा की।
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