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आजादी के बाद घटी शोध की गुणवत्ता, मिले कम नोबल पुरस्कार, गंगासिंह विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय लेखनशाला सम्पन्न

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आजादी के बाद घटी शोध की घटती  गुणवत्ता, मिले कम नोबल पुरस्कार
गंगासिंह विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय लेखनशाला सम्पन्न

बीकानेर 17 दिसम्बर।  महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय के आंतरिक गुणवत्ता प्रमाणन प्रकोष्ठ के तत्वावधान में सोमवार को राष्ट्रीय लेखनशाला का आयोजन किया गया।  प्रकोष्ठ के निदेशक प्रो. एस.के.अग्रवाल ने बताया कि लेखनशाला के मुख्य वक्ता वर्द्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय के प्रो. दिनेश गुप्ता रहे।
इस अवसर पर अपने उद्बोधन में प्रो. अग्रवाल ने लेखनशाला की उपादेयता पर प्रकाश डालते हुए आंतरिक गुणवत्ता प्रमाणन प्रकोष्ठ की महत्ता के बारे में बताया।  प्रो.अग्रवाल ने बताया कि विश्वविद्यालयों में शोध की गुणवत्ता सुधारने हेतु ही इस लेखनशाला का आयोजन किया गया है।  लेखनशाला मे उद्घाटन सत्र के अतिरिक्त दो तकनीकी सत्र आयोजित किये गये जिसमें प्रथम सत्र में शोध प्रारूप तथा द्वितीय सत्र में पीएच.डी. शोध ग्रन्थ लिखने के विभिन्न पहलुओं के बारे में शोध निर्देशकों एवं शोधार्थियों को अवगत कराया गया।  प्रो. अग्रवाल ने अपने उद्बोधन में शोध अंतराल, शोध परिकल्पना तथा विभिन्न शोध जर्नल्स एवं टूल्स के उपयोग के बारे में शोधार्थियों को जानकारी भी दी।लेखनशाला में कॉलेज शिक्षा के सहायक निदेशक डॉ. दिग्विजय सिंह, डूंगर कॉलेज के डॉ. राजेन्द्र पुरोहित, डॉ. प्रकाश आचार्य, डॉ. बृजरतन जोशी, डॉ. विक्रजीत सहित विभिन्न महाविद्यालयों के 100 से भी अधिक शोधार्थियों तथा संकाय सदस्यों ने भाग लिया।
मुख्य वक्ता प्रो. दिनेश गुप्ता ने शोध प्रारूप को लिखने के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए यूजीसी रेगुलेशन 2009 एवं 2016 के बारे में शोधार्थियों को अवगत कराया। उन्होंने देश की आजादी के पश्चात भारत को बहुत ही कम नोबल पुरस्कार मिलने का एक कारण शोध की घटती  गुणवत्ता बताया।   उन्होंने कहा कि किसी भी शोध कार्य का लाभ समाज के हर वर्ग को मिलना चाहिये।  शोध का उद्देश्य केवल पीएच.डी. डिग्री प्राप्त करना ही नहीं होना चााहये। डॉ. गुप्ता ने कहा कि शोध साहित्य को एकत्र करने से पूर्व उसके स्रोत का ज्ञान होना बेहद आवश्यक होता है। शोध गंगा नाम स्रोत में लगभग सवा दो लाख पीएच.डी. शोध ग्रन्थ के आंकड़े तथा शोध गंगोत्री नामक स्रोत में  असंख्य पीएच.डी. प्रारूप के आंकड़ उपलब्ध हैं जिन्हें की पूर्णतया उपयोग किया जाना चाहिये।  शोधार्थियों को इसके अलावा भी अनेक प्राथमिक स्रोतों की जानकारी दी जिनका उपयोग शोध लेखनी में बेहद आवश्यक होता है।
उद्घाटन समारोह में अतिथियों ने मां सरस्वती की प्रतिमा के आगे दीप प्रज्वलन कर लेखनशाला का उद्घाटन किया। इस अवसर पर विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता प्रो. अनिल छंगाणी ने कहा कि शोध आलेखों में अंग्रेजी भाषा के पूर्ण समावेश की कमी रहती है तथा इस प्रकार की लेखनलशाला के आयोजन से शोध ग्रंथों में उच्च स्तरीय प्रकाशन को बढ़ावा मिलेगा।  कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो. नारायण सिंह राव ने कहा कि वर्तमान में चल रहे शोध केवल द्वितीयक आंकड़ों पर ही निर्भर हो रहे हैं जबकि इसके लिये प्राथमिक स्रोत को विशेष महत्व दिया जाना चाहिये।  उन्होनें शोध ग्रन्थों में हो रही पुनरावृत्ति पर चिंता व्यक्त की। उद्घाटन समारोह के दौरान ही आगामी 17 व 18 जनवरी को होने वाले रामायण विषयक सेमिनार के ब्रोशर की भी विमोचन किया गया।


लेखनशाला का संचालन इतिहास विभाग की डॉ. अम्बिका ढाका ने किया तथा प्रो. धर्मेश हरवानी ने आगन्तुओं का आभार व्यक्त किया।
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( - ✍️ मोहन थानवी )


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