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ये रास्ते हैं जीवन के...

ये रास्ते हैं जीवन के...
पुल से स्टेशन विहंगम दिखा । तीनों प्लेटफार्म मानो छू सकता था । वहां गाड़ी की प्रतीक्षा में मौजूद हुजूम से बतिया सकता था । देखते देखते प्लेटफार्म नं एक पर गाड़ी आन पहुंची। कोई खास हलचल नहीं । एक दो ही लोग गाड़ी में जा बैठे । ये पैसेंजर थी। गांव जाने के लिए जरूरी और मजबूरी में ही लोग इसमें यात्रा करते हैं । तभी तीन नं पर गाड़ी के पहुंचते पहुंचते लोग डिब्बों में घुसने लगे । पलक झपकी न झपकी 100-200 लोग गाड़ी में बैठे दिखे । ये बड़े शहरों में जाने वाली एक्सप्रेस है । इससे लोग बिना मकसद दिखावा करने या सिर्फ घूमने के लिए भी जाते हैं । दो नं प्लेटफार्म लऑगों के होते हुए भी शांत दिखा । वहां गाड़ी पहुंची तो कुछ देर तक लोग डिब्बों में झांकते रहे । पसंदीदा जगह दिखी तो 10-15 लोगों ने अपना सामान वहां जमाया फिर खुद भी बैठ गए । ये गाड़ी तीर्थयात्रा स्पेशल थी । इसमें जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर जीने वाले ही यात्रा करते हैं । अपना सामान यानी विचारों का आदान प्रदान कर तीर्थ करते हैं ।
पुल से आहिस्ता आहिस्ता उतर कर नाचीज ने अपना सामान इंजन से चौथे डिब्बे में जमा लिया ।
- मोहन थानवी 28 7 2014 ( Mohan Thanvi 28 july 2014 BKN )

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