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राजाराम के दिल से निकले शब्द-पुष्प : साहित्य के पुरोधा-शब्द-ऋषि भवानीशंकरजी व्यास “विनोद” दिलों में रहेंगे




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3 दिसंबर 2025 बुधवार

खबरों में बीकानेर


✒️@Mohan Thanvi

राजाराम के दिल से निकले शब्द-पुष्प : साहित्य के पुरोधा-शब्द-ऋषि भवानीशंकरजी व्यास “विनोद” दिलों में रहेंगे      




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राजाराम के दिल से निकले शब्द-पुष्प : साहित्य के पुरोधा-शब्द-ऋषि भवानीशंकरजी व्यास “विनोद” दिलों में रहेंगे    

साहित्य के पुरोधा-शब्द-ऋषि भवानीशंकरजी व्यास “विनोद” अब नहीं रहे     

                                                                                   बीकानेर 3 दिसम्बर 2025 बुधवार 

साहित्य के पुरोधा-शब्द-ऋषि भवानीशंकरजी व्यास “विनोद” अब नहीं रहे     
आज सुबह उदयपुर में आपने अंतिम सांस ली। कल सुबह जोधपुर में आपका अंतिम संस्कार किया जाएगा। आपके देवलोक गमन का समाचार आग की तरह फ़ैल गया सभी शोकमग्न आपको श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।

 वरिष्ठ हास्य-व्यंग्य कवि, शिक्षाविद, सम्पादक, विचारक, समालोचक, संचालक, बहुमुखी व्यक्तित्व जिन्होंने अंग्रेजी, हिन्दी और राजस्थानी में विराट लेखन संसार रचा है । जन-जन के हृदय में रचा-बसा कालजयी साहित्य सागर थे भवानीशंकरजी व्यास”विनोद”। आपका जन्म राजस्थान की मरुधरा “बीकानेर” में पुष्करणा ब्राहमण अमरदतजी व्यास के यहां 11 अगस्त 1935 अश्विन शुक्ला सप्तमी विक्रम सम्वत 1992 को हुआ। विनोद ने राजस्थान विश्वविद्ध्यालय, जयपुर से बीए, बी.एड.किया, अंग्रेजी साहित्य में एम.ए.,हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से विशारद तथा अंग्रेजी में विशेष दक्षता राज्य भाषा अध्ययन संस्थान अजमेर व जयपुर से प्राप्त की । आपने राजस्थान सरकार के शिक्षा विभाग में अध्यापक पद से अपनी सेवा शुरु की ! सेवाकाल में अनेक पदों पर पदोन्नत होते हुए प्रकाशन अनुभाग (शिक्षा निदेशालय) में वरिष्ठ सम्पादक “शिविरा” के पद से 31 अगस्त 1993 को सेवानिवृत हुए । सरलचित, मृदुभाषी, सादगीपूर्ण व्यक्तित्व के धनी ”विनोद” में मायड भाषा के प्रति अगाध प्रेम है आपने अंग्रेजी भाषा के शिक्षक होते हुए अपना अधिकतर सृजन राजस्थानी ,हिन्दी में करके इसका मान बढाया है । सरकार ने सेवानिवृत किया, लेकिन आपकी साहित्यिक पाठशाला में आज भी आप युवाओं को साहित्य में प्रोत्साहित कर रहे हैं । युवा आपसे प्रेरणा लें, अच्छा सृजन करके राज्य व देश में अपना और अपने शहर का नाम रोशन करें, यही आपकी कामना हैं ! भवानीशंकरजी ने साहित्य मे विभिन्न विधाओ मे 60 पुस्तकें लिखी है । अनेक ग्रंथों के रचयिता विनोद जी की रचनाएं देश की अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं मे प्रकाशित होती रहती हैं । आपने पांच दशक तक राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बंगाल, आन्ध्रप्रदेश एवं तमिलनाडु के अनेक शहरों में यानी पूरे भारत में अपनी हास्य-व्यंग्य कविताओं से धूम मचाई । यथा जर्दा, इसलिए तोन्द को नमस्कार, चश्मा, रसवंती, गंजा, चमचा, चमची, भोजन भट्ट, हिप्पी, बापू तुम्हारा यहां क्या काम है आज भी श्रोताओं को गुदगुदाती हैं । व्यासजी के सादगीपूर्ण जीवन का मैं कायल हूं और गर्व करता हूं कि बीकानेर वासियों को एक समर्पित प्रखर विद्वान आसानी से उपलब्ध हो जाता है । साहित्यिक यादों को अपने में समेटे बिरले ही लोग होते हैं जो रचनात्मकता से जुडे हों । आज यहां चर्चा हिन्दी, राजस्थानी और अंग्रेजी भाषा के विद्वान आदरणीय गुरूजी भवानीशंकरजी व्यास “विनोद” के बारे में करना चाहूंगा । सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक लोक रंगों से सराबोर ““विनोदजी” के मानस पटल पर अथाह यादों, संस्मरणों का ज्ञान-कोश अंकित है ऐसी विभूति को पाकर बीकानेर धन्य हो गया है । आत्मीय भाव से ओतप्रोत विनोदजी के बारे में अक्सर कहा जाता है कि आप रचनाकारों की तारीफों के पुल बांधते हैं । मेरा मानना है कि गुरुजी बहुत अच्छा कर रहे हैं क्योंकि आज के इस आपा-धापी वाले युग में किसी ने लिखने का मन बनाया है, प्रथम चरण पर ही उसे मास्टर की तरह हडकाने लग गये तो नया सृजनधर्मी अपनी लाइन बदलने की कोशिश करेगा हो सकता है वह साहित्य से ही अपना मुंह मोड ले । भवानीशंकरजी का नए सृजनधर्मियों को समझानें का तरीका बडा शानदार है । वे बडे सलीके से बातों-बातों में उसे सही मार्गदर्शन देते हुए उसकी गलतियों की तरफ इशारा करते हैं, इससे साहित्य सृजनकर्ता का मनोबल बढता है जिससे वह अपनी गलतियों को सुधारते हुए अच्छी रचनाएं समाज को देता है । उदाहरणार्थ वे अपने उद्बोधन में रचनाकार की तारीफ करते हुए कह देते हैं कि अपनी प्रशंसा सुनकर कभी आत्ममुग्ध मत होना । यह आपकी समालोचना की विशिष्ट शैली है ।

       विनोदजी राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर की संचालिका के सदस्य रहे हैं तथा अकादमी की ओर से साहित्यकार सद्भाव यात्रा में केरल प्रदेश के सात दिवसीय परिभ्रमण में साहित्यिक चर्चाओं में सक्रिय रुप से भाग लिया ! इसी प्रकार आप केन्द्रीय साहित्य अकादमी नई दिल्ली की जनरल कॉंन्सिल एवं राजस्थानी सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे हैं । केन्द्रीय साहित्य अकादमी से प्रकाशित साहित्यकार भीम पांडिया एवं मुरलीधर व्यास राजस्थानी के मोनोग्राफ आपने लिखे हैं तथा हेनरी इब्सन की पुस्तक “ए डॉल्स हाउस” का अनुवाद भी आप द्वारा किया गया । इस साहित्य पुरोधा का मान-सम्मान देश-प्रदेश की अनेकों साहित्यिक, शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा समय-समय पर किया गया जिनमें अखिल भारतीय स्तर का प्रदीपकुमार रामपुरिया साहित्य पुरस्कार, गणेशीलाल व्यास उस्ताद पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर का विशिष्ठ साहित्यकार सम्मान, राष्ट्र भाषा हिन्दी प्रचार समिति श्रीडूंगरगढ का साहित्य श्री पुरस्कार तथा शिक्षा विभाग का शिक्षक सम्मान पुरस्कार जो 05सितम्बर1974 को जयपुर के रविन्द्र रंगमंच पर दिया गया । इसमें बीकानेर से वरिष्ठ साहित्यकार गौरीशंकर आचार्य “अरुण”,संगीतज्ञ मोतीलाल रंगा तथा साहित्य प्रेमी कृष्ण जनसेवी विशेष रुप से शामिल हुए । इसी तरह अन्य भाषा पुरस्कार के तहत मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, नूरजहां स्मृति सम्मान, राजीव रत्न अवार्ड, मीरां साहित्य एवं संस्कृति सम्मान (मेडता), लोकनायक मुरलीधर व्यास स्मृति संस्थान कोलकाता, जुबिली नागरी भंडार, लॉयंस क्लब, रोटरी क्लब, अम्बेडकर समिति एवं जिला प्रशासन बीकानेर द्वारा सम्मानित हो चुके हैं ! 7 सितम्बर 1974 को विद्वान पंडित विद्ध्याधर शाष्त्री की अध्यक्षता में आचार्य श्री राम विध्यालय में आपका नागरिक अभिनन्दन यादगार रहा । 75 वर्ष पूर्ण करने पर बीकानेर की 51 साहित्यिक संस्थाओं द्वारा बडे हर्षोल्लास के साथ आपका अमृत महोत्सव मनाकर आपके सुखी स्वस्थ, दीर्घायु जीवन की कामना की।

      आज सुबह उदयपुर में आपने अंतिम सांस ली। कल सुबह जोधपुर में आपका अंतिम संस्कार किया जाएगा। आपके देवलोक गमन का समाचार आग की तरह फ़ैल गया सभी शोकमग्न आपको श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।

                                         राजाराम स्वर्णकार

                                        

 

 

 

       

 


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