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चालिया महोत्सव का भव्य समापन : प्रभात फेरी से रात्रि - लिलिपौंड तक उमड़ा सिंधी समाज का जन सैलाब झूलेलाल मंदिरों में छेज, सत्संग, कीर्तन भंडारे में बही सेवा की सिंधु-धारा






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*खबरों में बीकानेर*

चालिया महोत्सव का भव्य समापन : प्रभात फेरी से रात्रि - लिलिपौंड तक उमड़ा सिंधी समाज का जन सैलाब

 झूलेलाल मंदिरों में छेज, सत्संग, कीर्तन

 भंडारे में बही सेवा की सिंधु-धारा 

आज जोगमाया का स्मरण 

बीकानेर । 

बीकानेर सिंधी समाज ने शनिवार को 40 दिवसीय चालिया महोत्सव के समापन पर सुबह से देर रात तक विभिन्न अनुष्ठान किये। रथ खाना सुदर्शन नगर पवनपुरी धोबी तलाई में प्रतिष्ठित झूलेलाल जी के मंदिरों में अभिषेक पूजा अर्चना पल्लव अरदास संकीर्तन आदि से धूम मचाई। 

 अमरलाल मंदिर ट्रस्ट के
अध्यक्ष सतीश रिझवानी ने बताया कि सुबह 5:00 प्रभात फेरी मंदिर से शुरू होकर घर-घर पहुंची। उसके बाद सिंधी डांडिया का प्रोग्राम हुआ शाम को 40 दिवसीय व्रत रखने वाली महिलाओं की समूह में कलश यात्रा निकाली गई। कलश यात्रा पब्लिक पार्क जलाशय में जल के अवतार वरुण देव झूलेलाल को प्रतीक स्वरूप मटकियों का विसर्जन कर संपूर्ण हुई। मंदिर ट्रस्ट संरक्षक दीपक आहूजा ने बताया कि बहराना मंडली द्वारा सुगंध चंद तुलसीयानी, ओम गंगवानी, ईश्वर गोरवानी, राजू मोटवानी, देवानंद केसवानी, गिरधर गोरवानी ने झूलेलाल के भजन- गीत गाए। हेमंत मूलचंदानी, दिनेश, आहूजा, गंगाराम बारिया ने संगीत में सहयोग दिया। चंद्र प्रकाश रामानी, हंसराज मूलचंदानी ने बताया कि अलवर से आई शहनाई पार्टी ने शहनाई वादन द्वारा भजन कीर्तन में माहौल को गूंजायमान कर दिया। समाज के नवयुवकों द्वारा झूलन के दरबार में छेज डांडिया नृत्य किया गया। 

संत कंवरराम धर्मशाला के निज मंदिर में झूलेलाल जी की मूर्ति का पंचामृत से अभिषेक किया
चालिया महोत्सव का भव्य समापन,
गूंजे आयो लाल झूलेलाल के जयकारे

संत कंवर राम सिंधी समाज ट्रस्ट, भारतीय सिन्धु सभा महानगर, मातृ शक्ति सत्संग मंडली एवं जय झूलेलाल सिंधी युवा मंडल के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सिंधी समाज के प्रमुख पर्व चालीहा महोत्सव के अंतिम दिवस आज शनिवार को संत कंवर राम सिंधी समाज ट्रस्ट के निज मंदिर में प्रातः ईष्टदेव झूलेलाल का पंचामृत से अभिषेक, अनुष्ठान आदि समाज की मातृ शक्ति की कमला सदारंगानी, पूनम टिकायानी, गोपी वलीरमाणी, शालू खत्री व अन्य द्वारा किये गये।

इस अवसर पर समाज के वरिष्ठ सदस्यों दीपचंद, रमेश, मनुमल सदारंगानी, टीकम पारवानी व मनीष भगत ने अपने ईष्टदेव को समर्पित भजनों से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। 

भजन-कीर्तन के उपरांत मातृ शक्ति सत्संग मंडली के सदस्यों द्वारा सिंधी छैज (डांडिया) का आयोजन किया गया। जिसकी अनुवाई भारतीय सिंधु सभा की कांता हेमनानी, भारती गुवालानी, मधु सादवानी, वर्षा लखाणी द्वारा की गयी। इसके पश्चात निज मंदिर में भण्डारे का भी आयोजन किया गया था। जिसमें अजय, विजय, हरीश, घनश्याम, तोलाराम, मोहन व श्याम वाधवानी ने अपनी सेवाएं दी।
गोधुलि वेला में निज मंदिर के जलकुण्ड में ज्योति व मोदक का विसृजन तेजप्रकाश लक्ष्मण, राजेश, आदि द्वारा किया गया।

भारतीय सिंधु सभा के किशन सदारंगानी ने बताया कि चालीस दिन तक चलने वाले सिंधी समाज के प्रमुख पर्व चालीहा का आज समापन किया गया। सिंधी समाज के सदस्यों द्वारा अपने ईष्टदेव को रिझाने व मनोकामना पूर्ति हेतु चालीस दिवस तक कठोर व्रत कर आज समापन किया गया। साथ ही उन्होने सिंधी भाषा की शपथ की समाज के सदस्यों को दिलवाई।

आज जोगमाया का स्मरण

श्री कृष्ण भगवान की बहन जोगमाया की महिमा तो हम सभी जानते हैं। लेकिन, यह कहा जाए कि अनजाने में ही अपनी परंपराओं में शब्दों का बदलाव करते हुए हमने खुद ही जोगमाया संबंधित अपनी विरासत को दुनिया से छुपाने में सहयोग किया है।

ऐसा कहने के पीछे कारण और साक्ष्य है जन्माष्टमी से एक दिन पूर्व मनाया जाने वाला जोगमाया को समर्पित थदड़ी पर्व।

हम थदड़ी मना तो रहे हैं लेकिन युवा पीढ़ी को अपनी विरासत बदले हुए शब्दों में पिरोकर पहुंचा रहे हैं। जबकि इस संबंध में पुराण ग्रंथ स्पष्ट रूप से जोगमाया का गुणगान कर रहे हैं और हम हैं कि इंटरनेट पर सहज उपलब्ध हो रहे ज्ञान पर इतराते दिखते हैं।

योगमाया को भगवान कृष्ण की बहन माना जाता है. मान्यता है कि उनका जन्म द्वापर युग में यशोदा के गर्भ से हुआ था, उसी समय जब कंस के कारागार में देवकी के गर्भ से श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. योगमाया को कृष्ण के पिता ने यमुना नदी पार करके लाया था और कृष्ण की जगह पर देवकी के बगल में रख दिया था. ऐसा माना जाता है कि कंस ने योगमाया को भी देवकी के अन्य संतानों की तरह मारना चाहा था, लेकिन योगमाया ने चालाकी से कृष्ण की जगह ले ली और कंस की मृत्यु की भविष्यवाणी की. इसके बाद वह गायब हो गईं और बाद में कृष्ण की छोटी बहन सुभद्रा के रूप में पुनर्जन्म ले लिया. भागवत में कहा गया है कि योगमाया ने श्रीकृष्ण की रक्षा की थी. मान्यता है कि उन्होंने देवकी के सातवें गर्भ को संकर्षण कर रोहिणी के गर्भ में पहुंचाया था, जिससे श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलरामजी का जन्म हुआ था. 

योगमाया को विंध्यवासिनी, महामाया, और एकानमशा के नाम से भी जाना जाता है. वैष्णव परंपरा में उन्हें नारायणी की उपाधि दी गई है और वे भगवान विष्णु की मायावी शक्तियों का अवतार हैं. भागवत पुराण में उन्हें देवी दुर्गा का दयालु रूप माना जाता है और शाक्तों द्वारा उन्हें आदि शक्ति का एक रूप माना जाता है. 

दिल्ली के महरौली में योगमाया का एक मंदिर है, जिसे महाभारत के पांच मंदिरों में से एक माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर महमूद गजनी और मामलुकों के शासनकाल के दौरान नष्ट किए गए मंदिरों में से एक है.

सिंधी समाज, रक्षाबंधन के आठवें दिन थदड़ी पर्व मनाता है. साल 2024 में, सिंधी समाज ने 25 अगस्त को थदड़ी पर्व मनाया. इस दिन, सिंधी परिवारों में महिलाओं में विशेष रूप से उत्साह का माहौल रहता है और पूरा परिवार इस पर्व में शामिल होता है. इस दिन, सिंधी परिवारों में शनिवार को व्यंजन बनाए जाते हैं, जिन्हें ठंडा कहा जाता है. फिर, अगले दिन, यानी रविवार को, ये व्यंजन खाए जाते हैं और घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता. इस दिन, सिंधी आश्रमों में माता शीतला की पूजा की जाती है और उनसे सुख-शांति की प्रार्थना की जाती है. साथ ही, सिंधी बाहुल्य क्षेत्रों में सिंधी पंडितों के घरों में भी महिलाएं पूजा करती हैं और प्रसाद वितरित करती हैं. 

ऐसी मान्यता है कि हज़ारों साल पहले सिंध के मोहनजोदड़ो की खुदाई में माता शीतला की मूर्ति मिली थी. उन्हीं की आराधना में आज तक हर साल थदड़ी का पर्व मनाया जाता है. सिंधी भाषा में थदड़ी शब्द का मतलब होता है, शीतल.
प्रस्तुति - मोहन थानवी 

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