चुनाव : पर्दे के पीछे - सट्टा बाजार वह बता रहा जो पार्टियां भी नहीं बूझ सकी !
- मोहन थानवी
जो अनाधिकृत है। गैर कानूनी है। उसकी बातें अधिकृत मानते हुए कैसे लोग अपनी जेबें दांव पर लगा देते हैं। पसीने की कमाई पल भर में गवां देने वाले ऐसे काम को ना तो प्रचारित किया जाता है और ना ही इसकी सूचना सार्वजनिक होती है। बावजूद इस के लोग इसकी ओर आकर्षित रहते हैं। जी हां, इसे सट्टा ही कहा जाता है।
इन दिनों एक खास प्रवृत्ति के लोगों में सट्टा बाजार की चर्चाएं गर्म हैं।
चुनावी माहौल में जहां लोग राजनीतिक दलों की जीत हार और प्रत्याशियों की क्षमता पर चर्चाएं कर रहे हैं वही इस अनाधिकृत काम की चर्चा भी एक सीमित वर्ग में बहुतायत से होती देखी जाती है।
मजे की बात यह है कि इस अनधिकृत काम को रोकने के भरसक प्रयास पुलिस प्रशासन करता रहा है बावजूद इसके इस काम के चर्चे मीडिया और सोशल मीडिया पर गाहेबगाहे होते रहते हैं। और जब राष्ट्रीय स्तर के न्यूज़ चैनल तक सट्टा बाजार के रुझान पर चर्चा करते हुए राजनीतिक दलों की अनुमानित जीत हार पर प्रयास लगने लगे तो पुलिस प्रशासन को इस और अधिक सजगता से कार्रवाई करते हुए सट्टे की गतिविधियों पर प्रभावी अंकुश लगाने के नए तरीके भी ईजाद करने ही चाहिए।
लोग तभी जुबान में यह कहने से नहीं चूक रहे की राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 के चलते जहां अब तक करोड़ों अवैध रुपए पाए गए वहीं सामग्री भी करोड़ों की जप्त की गई है। लेकिन चुनाव पर जो सट्टा चल रहा है उसके धरपकड़ की सुगबुगाहट यदि होती भी है तो चंद घंटे में ही दब जाती है।
यूं तो देश भर से सट्टे की खबरें सुनाई दे जाती है लेकिन राजस्थान के फलोदी का सट्टा खास तौर पर चर्चा में अपनी जगह बनाए हुए हैं। लोग इसीलिए राजस्थान में करोड़ों रुपए जप्त होने और अवैध सामग्री जप्त होने के बावजूद सट्टा बाजार की गतिविधियों पर अंकुश न लग पाने की चर्चा में मशगूल भी दिखाई देते हैं। हम तो अपने पाठकों को यही सलाह देंगे कि ऐसी गतिविधियों की भनक यदि आपको लगती है तो तुरंत पुलिस तक जानकारी पहुंचाने का अपना दायित्व निर्वहन करें।
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