चुनाव : पर्दे के पीछे - प्रजा हुई गौण, महत्वपूर्ण बनी दलों की प्रतिष्ठा !!
- मोहन थानवी
चुनावी माहौल के चलते राजनीतिक परिदृश्य में दिखाई तो दे रहा है प्रजा के हित पर चिंतन। लेकिन जागरूक प्रजा पर्दे के पीछे बहुत कुछ देख रही है। मतदान की तिथि आने के साथ ही प्रजा को दिखाई देने लगा है कि उसे और राष्ट्रीयता की भावना तक को गौण किया जा रहा है। राजनीतिक शख्सियतों की निजी प्रतिष्ठा को दलों से भी ऊपर उठाने के प्रयास भी सामने आ रहे हैं। ऐसे प्रयासों के चलते इमोशनल कार्ड तक खेले जा रहे हैं।
ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि राजनीतिक गतिविधियों से दूर समाज हित में विमर्श करने वाले प्रबुद्ध नागरिकों के चिंतन से ऐसी बातें सामने आ रही है। लोकतंत्र की धुरि जागरूक नागरिक यह प्रकट करने से हिचकते नहीं की आमजन की पीड़ा और जन समस्याओं के निराकरण के प्रयास करने पर बल देने के बजाय राजनीतिक दल अपनी छवि को दशकों पहले की घटनाओं के साथ जोड़ते हुए धवल बनाने के भरसक प्रयास में जुटे हैं।
चंद चेहरे सत्ता पर काबिज रहने के लिए प्रतिद्वंद्वी की छवि धूमिल करने पर आमादा हैं। वे आक्षेप लगाते हुए भाषा पर नियंत्रण तक खोते जा रहे है। राजनीतिक जगत के ऐसे कतिपय चेहरों की वजह से समग्र राजनीतिक परिदृश्य की अपनी गरिमा और गौरव ही तार-तार होता दिखाई रहा है।
शनिवार को मतदान होगा। लोकतंत्र के इस महापर्व में आज का जागरूक मतदाता राजनीतिक जगत की बीते दिनों की हलचल के आधार पर निर्णय नहीं करेगा। मतदाता तो अपने विवेक से निर्णय लेते हुए अपने हित में काम करने वालों को सत्ता सौंपेने के लिए मतदान करेगा। जैसा की लोकतंत्र में होते रहने की परंपरा है। क्योंकि लोकतंत्र की नींव प्रजा की महत्ता है। राष्ट्रहित सर्वोपरि है। राष्ट्र है तो समाज और धर्म की पताका की आन बान और शान कायम है। राष्ट्र से ऊपर प्रजा पर राज करने के ध्येय से गठित चंद लोगों का कोई संगठन या दल कतई नहीं हो सकता।
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