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राजस्थानी अकादमी सहित इन्होंने डॉ. तैस्सितोरी के समाधि-स्थल पर पुष्पांजलि अर्पित की


















राजस्थानी अकादमी सहित इन्होंने डॉ. तैस्सितोरी के समाधि-स्थल पर पुष्पांजलि अर्पित की

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भारत-यूरोप के मध्य सांस्कृतिक, साहित्यिक व भाषिक सेतु थे डॉ. तैस्सितोरी- केवलिया


बीकानेर, 22 नवम्बर। राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी की ओर से राजस्थानी भाषा-संस्कृति के अमर साधक डॉ. एल. पी. तैस्सितोरी की पुण्यतिथि पर उनके समाधि-स्थल पर बुधवार को पुष्पांजलि अर्पित की गई। अकादमी कार्मिकों द्वारा डॉ. तैस्सितोरी के कृतित्व से प्रेरणा लेकर मायड़ भाषा के संवर्द्धन-उन्नयन के लिए पूर्ण निष्ठा से कार्य करने का संकल्प लिया गया। 


          इस अवसर पर अकादमी सचिव शरद केवलिया ने कहा कि डॉ. तैस्सितोरी महान् पुरातत्ववेत्ता व बहुभाषाविद् थे।


 उन्होंने भारत व यूरोप के मध्य सांस्कृतिक, साहित्यिक व भाषिक सेतु के रूप में कार्य किया। इटली निवासी डॉ. तैस्सितोरी ने भारत आकर भारतीय संस्कृति, भाषा-साहित्य, पुरातत्व के क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान दिया। उन्होंने बीकानेर आकर इस क्षेत्र का ऐतिहासिक सर्वेक्षण किया व अमूल्य प्राचीन ग्रंथों, प्रतिमाओं आदि की खोज की।


       इस अवसर पर अकादमी कार्मिकों ने डॉ. तैस्सितोरी की समाधि पर पुष्प अर्पित किये व मोमबत्तियां जलाईं। इस दौरान श्रीनिवास थानवी, शालिनी कल्ला, आदित्य व्यास, कानसिंह, मनोज मोदी उपस्थित थे।

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*डॉ. तैस्सितोरी की राजस्थान की मरूधरा एवं मरूवाणी की संस्कृति एवं साहित्य के प्रति असीम अनुरक्ति थी : पुरोहित* 


 बीकानेर / 22 नवम्बर / सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट , बीकानेर के तत्वावधान में इटली मूल के राजस्थानी विद्वान डॉ. एल. पी. तैस्सितोरी की 104वीं पुण्यतिथि पर बुधवार को स्थानीय म्यूजियम परिसर स्थित डॉ. तैस्सितोरी की प्रतिमा पर पुष्पांजली ,उनके व्यक्तित्व एवं कृत्तिव्व पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के कोषाध्यक्ष, कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने की तथा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डूँगर महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ. राजेन्द्र पुरोहित थे एवं कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ संस्कृृतिकर्मी एन. डी. रंगा एवं व्यंगकार-सम्पादक डॉ. अजय जोशी रहे।



 कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों , सामाजिक कार्यकर्ताओं , शिक्षाविदों, साहित्यकारों एवं शोधार्थियों ने डॉ. तैस्सितोरी की मूर्ति पर माल्यार्पण किया ।
 कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राजेन्द्र जोशी ने कहा कि इटली निवासी राजस्थानी भाषा के विद्वान डॉ. तैस्सितोरी बीकानेर में रहते हुए राजस्थान के इतिहास , संस्कृति , साहित्य तथा पुरातत्व संबंधी शोध कार्य में तत्पर रहे । जोशी ने कहा कि उन्होनें यहां के ऐतिहासिक साहित्य हस्तलिखित ग्रन्थ , शिलालेख एवं जैन साहित्य को एक सूत्र में पिरोकर साहित्य मर्मज्ञों के लिए प्रस्तुत किया ।


जोशी ने कहा कि डॉ. तैस्सितोरी राजस्थानी लोकगीतों के प्रेमी थे, वे मूमल , मरवण , पद्मिनी आदि कथाऐं और गीत सुनते और रातभर गांवों में रहकर वहां की भाषा और संस्कृति का अध्ययन करते रहे । जोशी ने कहा कि पल्लू गांव की दसवीं-ग्यारवी शताब्दी के दौरान सरस्वती प्रतिमा ( 10वी -11वीं शती ) को तलाशने का श्रेय भी डॉ. तैस्सितोरी को ही जाता है ।
मुख्य अतिथि डाॅ. पुरोहित ने कहा कि डॉ. तैस्सितोरी की राजस्थान की मरूधरा एवं मरूवाणी की संस्कृति एवं साहित्य के प्रति असीम अनुरक्ति थी, यही कारण है कि वे शनैः-शनैः यही के होकर रह गये । पुरोहित ने कहा कि डूंगर महाविद्यालय जनवरी माह में डाॅ. तैस्सितोरी के कृतित्व पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया जायेगा।


 कार्यक्रम में कवि-आलोचक डाॅ. नीरज दइया ने कहा कि बीकानेर के भ्रमण और यहां के इतिहास से प्रेरित हुए ऐसे में बीकानेर की माटी से प्रेरणा लेकर डॉ. तैस्सितोरी ने राजस्थानी भाषा के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया । 


 इस अवसर पर विशिष्ठ अतिथि एन.डी.रंगा एवं डाॅ.अजय जोशी ने कहा कि अब समय आ गया है , जब राजस्थानी भाषा को मान्यता मिल जानी चाहिए । कवि- संस्कृतिकर्मी चन्द्रशेखर जोशी ने कहा कि उदीने एवं बीकानेर को जुड़वां शहर के रूप में स्थापित करने के लिए नगर निगम एवं नगर के साहित्यकारों एवं कला साहित्य एवं संस्कृति जगत के लोगो को प्रयास करने की जरूरत है ।


 राजस्थान राज्य प्राच्य संग्रहालय के शोध अधिकारी डाॅ. नितिन गोयल ने कहा कि शोधार्थियों को डॉ. तैस्सितोरी के शोध कार्य का अध्ययन करना चाहिए और उनके द्वारा किए गये शोध से अपने द्वारा किये जाने वाले शोध को गुणवत्तायुक्त बनाया जा सकता है । गोयल ने कहा कि डॉ. तैस्सितोरी भाषा के प्रति जुड़ाव के प्रेरणा स्त्रोत के रूप में याद किए जाएगें ।
 एडवोकेट महेंद्र जैन ने कहा कि इटली निवासी डॉ. तैस्सितोरी राजस्थानी संगीत के भी प्रेमी थे । 


कार्यक्रम संयोजक साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार ने संस्था की गतिविधियों का परिचय देते हुए डाॅ. तैस्सितोरी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। 


 कार्यक्रम में शोधार्थी डाॅ. नमामी शंकर आचार्य, संस्कृृतिकर्मी डाॅ. मोहम्मद फारुख चौहान, अब्दुल शकूर सिसोदिया, वरिष्ठ कवि जुगल पुरोहित, डाॅ. एम.एल.जागिंड, चैनई निवासी राहुल शर्मा, पुस्तकालय अधीक्षक विमल शर्मा, प्रेमप्रकाश मण्डोरा, सुंदरलाल भजूड़, प्रेमरतन सोनी सहित अनेक महानुभावों ने पुष्पाजंली की।


आभार संस्कृतिकर्मी प्रेमनारायण व्यास ने ज्ञापित किया।



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*टैस्सीटोरी सांस्कृतिक पुरोधा एवं भारतीय आत्मा थे: संजय सांखला*
*टैस्सीटोरी राजस्थानी पुरोधा थे-कासिम बीकानेरी*




स्वर्गीय एल.पी.टैस्सीटोरी की 104वीं पुण्यतिथि पर सृजनधर्मियों ने शब्दांजलि-श्रद्धांजलि कार्यक्रम से उनको नमन किया।

बीकानेर, 22 नवम्बर, 2023
  राजस्थानी भाषा के इटली मूल के महान विद्वान एवं भाषाविद स्वर्गीय एल.पी.टैस्सीटोरी राजस्थानी भाषा के लिए संघर्ष करने वाले महान सपूत थे।


 आप एक सांस्कृतिक पुरोधा एवं महान भारतीय आत्मा थे, आप एक ऐसे बहुभाषाविद् थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन हमारी मायड़ भाषा राजस्थानी को मान-सम्मान दिलवाने के लिए समर्पित कर दिया था। प्रज्ञालय संस्थान और राजस्थानी युवा लेखक संघ द्वारा पिछले साढे चार दशकों से भी अधिक समय से उनकी पुण्यतिथि और जयंति पर उन्हें श्रद्धांजलि आयोजित करके उनके द्वारा किए गए कार्यों को जन-जन तक पहुंचाने का पुनीत कार्य किया जा रहा है। 


 कार्यक्रम के संयोजक संस्कृतिकर्मी हरिनारायण आचार्य ने बताया कि इसी क्रम में आज डॉ. टैस्सीटोरी की 104वीं पुण्यतिथि पर आयोजित दो दिवसीय ‘ओळू समारोह’ के दूसरे दिन प्रातः 10ः30 बजे डॉ. टैस्सीटोरी की समाधि स्थल पर पुष्पांजलि एवं शब्दांजलि का आयोजन रखा गया।


 कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ शिक्षाविद् एवं कवि संजय सांखला ने कहा कि टैस्सीटोरी सांस्कृतिक पुरोधा एवं भारतीय आत्मा थे। उन्होने राजस्थानी मान्यता का बीजारोपण 1914 में ही कर दिया था, परन्तु दुखद पहलू यह है कि आज भी इतनी समृद्ध एवं प्राचीन भाषा को संवैधानिक मान्यता न मिलना साथ ही प्रदेश की दूसरी राजभाषा न बनना करोड़ो लोगों कि जनभावना को आहत करना है। ऐसे में राजस्थानी को दोनों तरह की मान्यताएं शीघ्र मिलनी चाहिए। जिन्होने तीन महत्वपूर्ण किताबें लिख कर राजस्थानी साहित्य को समृद्ध किया आपने उनके द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्यों को विस्तार से सामने रखा।


      कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ शायर कासिम बीकानेरी ने कहा कि डॉ टैस्सीटोरी राजस्थानी भाषा साहित्य-संस्कृति कला आदि को सच्चे अर्थों में जीते थे। वे अपनी मातृभाषा इटालियन से अधिक प्यार राजस्थानी को देते थे। उनके द्वारा राजस्थानी मान्यता का देखा गया सपना अब सच होना चाहिए। तभी उन्हें सच्ची श्रृंद्धाजलि होगी। आपने अपना छोटा सा जीवन हमारी मातृभाषा राजस्थानी के लिए समर्पित कर दिया।


        कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि कवि गिरिराज पारीक ने अपनी शाब्दिक श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए कहा कि स्वर्गीय एल.पी. टैस्सीटोरी जनमानस में राजस्थानी भाषा की अलख जगाने वाले महान साहित्यिक सेनानी थे, जिन्होंने साहित्य, शिक्षा, शोध एवं पुरातत्व के क्षेत्र में अति महत्वपूर्ण कार्य करके हमारी संस्कृति एवं विरासत को पूरे विश्व में मशहूर कर दिया। परन्तु हमारी भाषा को मान्यता न मिलना दुखद पहलू है। अब इस पर शीघ्र निर्णय होना चाहिए।


     संस्कृतिकर्मी डॉ. फारुक चौहान ने उनके द्वारा किए गए कार्यों पर रोशनी डालते हुए कहा कि ये हमारी भाषा के लिए गौरव की बात है कि इटली से आकर एक विद्वान साहित्यकार ने हमारी भाषा के लिए महत्वपूर्ण काम किया।


 वरिष्ठ शायर वली मोहम्मद गौरी ने कहा कि टैस्सीटोरी राजस्थानी मान्यता के प्रबल समर्थक थे हम सबको सामुहिक प्रयास कर मान्यता हेतू सरकार पर दबाव डालना होगा। इसी क्रम में वरिष्ठ कवि जुगल पुरोहित ने कहा कि राजस्थानी के महान् विद्वान के साथ-साथ बहुत बडे भाषा वैज्ञानिक भी थे तो कवयत्री कृष्णा वर्मा ने कहा कि डॉ टैस्सीटोरी राजस्थानी आत्मा थे और उनके रोम-रोम में राजस्थानी भाषा समाई हुई थी।

 शायर शमीम अहमद ‘शमीम’ एवं मोहम्मद मुईनुद्दीन मुईन ने भी राजस्थानी मान्यता शीघ्र मिलने की बात कही। इसी के साथ सभी ने टैस्सीटोरी समाधि स्थल कि दूद्रशा पर रोष प्रकट किया।
 इस अवसर पर युवा रचनाकार आशीष रंगा ने अपनी शब्दांजलि देते हुए कहा कि टैस्सीटोरी समाधि स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए।


 दो दिवसीय ओळू समारोह के तहत आयोजन का केन्द्रीय भाव राजस्थानी भाषा की संवेधानिक मान्यता एवं प्रदेश की दूसरी राजभाषा बने उसी पर केन्द्रित रहा। दोनो दिन आयोजनों में सहभागी रहने वाले सैकड़ों राजस्थानी समर्थकों ने इस बात का पुरजोर शब्दों में समर्थन किया।

 कार्यक्रम में अशोक शर्मा, भवानी सिंह, कार्तिक मोदी, सुनील व्यास, तोलाराम सारण, हरि नारायण आचार्य, घनश्याम ओझा, सय्यद अनवर अली, सैय्यद हसन अली, मोहम्मद जरीफ, मईनुद्दीन मईन, सहित अनेक प्रबुद्ध-जन उपस्थित थे।

 कार्यक्रम का सफल संचालन हरिनारायण आचार्य ने किया एवं अंत में सभी का आभार भवानीसिंह ने जताया।


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